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2023-24 के बजट की एक बड़ी खासियत लंबे अरसे बाद व्यक्तिगत आय में सीधी और बड़ी राहत की घोषणा रही। कॉरपोरेट कर आदि में भी राहत दी गई मगर चर्चा का केंद्र आयकर राहत ही रही। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और उनकी टीम ने बजट पेश करने के बाद कर व्यवस्था में बदलाव, मुद्रास्फीति, पूंजीगत व्यय समेत तमाम मुद्दों पर संवाददाताओं से बात की। प्रमुख अंश:
वित्त मंत्री: मुझे लगता है कि यह काफी संतुलित बजट है। पूंजीगत निवेश के जरिये वृद्धि की चिंताओं का पूरा ध्यान रखा गया है। हमने सार्वजनिक निवेश पर जोर दिया है और एमएसएमई का भी पूरा ख्याल रख रहे हैं। हमने उन्हें कर में राहत दी है और पहले से अधिक पूंजी हासिल करने का मौका भी दिया है। मध्य वर्ग को भी कर में कुछ राहत की दरकार थी, जिसका बजट में पूरा ध्यान रका गया। इन सबके बावजूद खजाने और राजकोषीय घाटे को नजरअंदाज नहीं किया गया है।
वित्त मंत्री: हम बगैर छूट की नई कर व्यवस्था को इतना आकर्षक बनाना चाहते हैं कि लोगों को यही सबसे अच्छा विकल्प लगे। लेकिन अगर लोगों को अब भी पुरानी व्यवस्था यानी कर छूट वाली व्यवस्था पसंद है तो वे उसी में बने रह सकते हैं। मगर हमारा मकसद नई व्यवस्था को आकर्षक बनाना ही है।
राजस्व सचिव: पहले कॉरपोरेट कर के लिए छूटरहित प्रणाली घोषित की गई थी और आज 60 फीसदी से ज्यादा कंपनियां उसे अपना चुकी हैं। नई व्यक्तिगत आयकर व्यवस्था के लिए हम आंकड़े तो नहीं दे सकते मगर हमें उम्मीद है कि ज्यादातर करदाता इसे अपना लेंगे।
वित्त मंत्री: थोक और खुदरा दोनों तरह की मुद्रास्फीति नीचे आ रही है। ऐसा सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक के कदमों की वजह से हो रहा है। ऐसा नहीं है कि जब महंगाई बढ़ती है तो हम उसे नजरअंदाज करने लगते हैं। हमने उसे काबू करने के लिए पूरी गंभीरता के साथ हरसंभव कोशिश की है।
वित्त सचिव: चालू वित्त वर्ष के लिए संशोधित अनुमान कम है और बजट अनुमान का 97 फीसदी ही है। इसकी वजह है राज्यों को पूंजीगत व्यय के लिए मदद देना। केंद्र का व्यय तो बजट अनुमान से ऊपर ही जाएगा। कुछ राज्य अभी इस व्यय की खेप हासिल करने के लिए जरूरी शर्तें पूरी नहीं कर पाए हैं।
आर्थिक सचिव: कुछ नियम एक खास उद्देश्य से लाए गए थे। बाद में आर्थिक स्थितियां बदल गईं और नियामकों ने खुद ही काम करना शुरू कर दिया। लेकिन अब इसका जायजा लेने की जरूरत है कि कौन से कायदे अर्थव्यवस्था के लिए वाकई जरूरी हैं।
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वित्त सचिव: पिछले साल के मुकाबले उधारी में 8 फीसदी इजाफा किया गया है। इस दौरान अर्थव्यवस्था 15 फीसदी की नॉमिनल रफ्तार से बढ़ी है। उधारी का यही स्तर रहता है तो निजी क्षेत्र को किसी तरह की हिचक नहीं होगी और वह पांव पीछे नहीं खींचेगा। साथ ही इससे निजी क्षेत्र के लिए उधारी की लागत भी नहीं बढ़ेगी।
आर्थिक सचिव: यह कवायद इन बैंकों के निदेशक मंडल का कामकाज सुधारने और निवेशकों के हित की रक्षा के मकसद से की जा रही है। इसे सरकारी बैंकों के निजीकरण से जोड़कर न देखा जाए।