लेखक : शेखर गुप्ता

आज का अखबार, लेख

भाजपा और संघ के वैचारिक साहित्य को पढ़ना आवश्यक

सुर्खियों और साजिशों से भरे इस राजनीतिक माहौल में जोखिम यह है कि हम कहीं तीन अहम बिंदुओं की अनदेखी न कर बैठें, इसलिए सिलसिलेवार ढंग से शुरुआत करते हैं। पहला, जिस दिन अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हो रही थी उस दिन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कई प्रमुख नेताओं ने ‘रघुपति […]

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राष्ट्र की बात: भारतीय गणराज्य और उसकी सही दिशा

इसमें दो राय नहीं है कि 22 जनवरी की तारीख आगामी दिनों में भारत के राष्ट्रीय कैलेंडर में सबसे महत्त्वपूर्ण तारीखों में से एक होने वाली है। दुनिया के सबसे पुराने धर्म के लिए एक बड़े नए त्योहार का आविष्कार हुआ है और यह नरेंद्र मोदी के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। हालांकि कुछ राजनीतिक […]

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राष्ट्र की बात: राजनीतिक इस्लाम के दो अलग-अलग पहलू

एक पल के लिए अपनी नजरें गाजा में मची तबाही, लाल सागर में मची उथल पुथल और ईरान-पाकिस्तान के बीच हो रही आपसी बमबारी और उसके बाद अविश्वसनीय भाईचारे की घटनाओं पर से हटा लीजिए। गहरी सांस लीजिए और दिन की सुर्खियों से नजर हटाइए। आपके नजरिये के मुताबिक आपको यह नजर आएगा कि वैश्विक […]

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मंदिर रूपी परीक्षा में कांग्रेस की विफलता

करीब चार दशकों से एक प्रेत कांग्रेस का पीछा कर रहा है और इस दौरान पार्टी लोकसभा में 414 सीट से घटकर 52 सीट पर आ चुकी है। हालांकि यह आंकड़ा 2014 में उसे मिली 44 सीट से अधिक है। राम मंदिर के निर्माण ने पार्टी को यह अवसर दिया था कि वह इससे पीछा […]

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Opinion: मोदी से मुकाबले का यह नहीं सही तरीका

PM Modi: सबसे पहले उन लोगों को गिनते हैं जिन पर विपक्ष, खासकर कांग्रेस अदाणी मामले में सर्वोच्च न्यायालय में अपनी विफलता के लिए आम तौर पर संदेह कर रही होगी। परंतु विपक्ष तब तक विफल होता रहेगा जब तक वह इस सबसे महत्वपूर्ण सवाल का जवाब नहीं ढूंढ लेता कि मोदी सरकार के खिलाफ […]

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राष्ट्र की बात: डीडीए का एकाधिकार और बाजार का बदला

देश की राजनीतिक अर्थव्यवस्था के विकास को समझने के लिए दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) का उदाहरण बहुत जानकारीपरक है। यह हमें बताता है कि क्या बदलाव हुआ है और क्या नहीं। यह बदलाव अच्छे के लिए है या बुरे के लिए। सन 1957 में अपनी स्थापना के बाद से काफी समय तक डीडीए सर्वशक्तिमान रहा। […]

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राष्ट्र की बात: भ्रामक है उत्तर-दक्षिण विभाजन की दलील

यह दलील बहुत कमजोर है कि भारत की राजनीति दो हिस्सों में बंट गई है। एक भाजपा को पसंद करने वाला उत्तर भारत और दूसरा उसे खारिज करने वाला दक्षिण भारत। गत सप्ताह चार राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद हमारी राजनीतिक बहस में उत्तर-दक्षिण की एक दिलचस्प नई बहस शामिल हो गई है। इस […]

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पन्नू नहीं पंजाब को ध्यान में रखकर काम करे सरकार

यह सही है कि हालात अभी लगातार करवट ले रहे हैं लेकिन गुरपतवंत सिंह पन्नू के मामले के हवाले से भारत-अमेरिका रिश्तों के बारे में कई चीजें सुरक्षित ढंग से कही जा सकती हैं। पहला, दोनों पक्ष नहीं चाहते हैं कि यह बात उनके नियंत्रण से बाहर निकले या भावनात्मक रूप ग्रहण करे। यही वजह […]

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राष्ट्र की बात: विधानसभा चुनावों में खराब विचारों की वापसी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनका दल मौजूदा विधानसभा चुनावों में उन बड़े विचारों का इस्तेमाल नहीं कर रहे जिन्हें वे आमतौर पर प्रयोग में लाते है। तकरीबन एक चौथाई सदी से हमारे राजनीतिक चक्र में एक खास रुझान देखने को मिल रहा है जहां तीन प्रमुख राज्यों में आम चुनाव से करीब छह महीने पहले […]

लेख

Opinion: भारतीय क्रिकेट का उभार और उससे निकले सबक

जब भारत ने इस विश्व कप में अपना अभियान शुरू किया तो उसके आलोचकों और प्रशंसकों दोनों की एक ही शिकायत थी कि उसने पूरे एक दशक से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) की कोई ट्रॉफी नहीं जीती है। आखिरी बार 2013 में बर्मिंघम में चैंपियंस ट्रॉफी में जीत हासिल हुई थी। टीम हमेशा नॉकआउट दौर […]