लेखक : अजित बालकृष्णन

आज का अखबार, लेख

AI के दौर में भारत की कारीगरी फिर गढ़ सकती है ‘मेड इन इंडिया’ की नई पहचान

सन 1960 के दशक के आखिर और 1970 के दशक के शुरुआती वर्षों में जब मैं भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) कलकत्ता का विद्यार्थी था तब उस दौर के सभी कॉलेज जाने वाले बच्चों की तरह मैं भी सामाजिक रुझानों में गहरी रुचि रखता था। उस समय की बौद्धिक बहसों का सबसे बड़ा विषय जानते हैं […]

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टेक बेरोजगारी और अतीत से मिले सबक: क्या AI से मानवता के सिर पर लटकी है खतरे की तलवार?

तकनीकी बेरोजगारी तब आती है जब तकनीकी विकास और कार्य पद्धतियों संबंधी विकास के कारण कुछ लोगों को अपने रोजगार गंवाने पड़ते हैं। यह बातें और घटनाएं आजकल सुर्खियों में बनी हुई हैं। लंदन से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र फाइनैंशियल टाइम्स की खबर का शीर्षक देखें: ‘टेक कंपनीज एक्स जॉब’ यानी प्रौद्योगिकी कंपनियों द्वारा […]

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भारतीय स्टार्टअप के सपने साकार करने के लिए वेंचर कैपिटल ईकोसिस्टम को बढ़ावा देना आवश्यक

अक्सर मेरे पास राज्यों या केंद्र सरकार के अधिकारियों के फोन आते हैं जो मुझे उनके द्वारा आयोजित स्टार्टअप सम्मेलनों में बोलने के लिए आमंत्रित करते हैं। मेरे लिए ऐसे सभी फोन कॉल को संभालना मुश्किल होता है। जब भी मैं ऐसे सम्मेलनों में शामिल होता हूं तो वहां सैकड़ों कॉलेज छात्र दिन भर मेरे […]

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बैक ऑफिस से बोर्डरूम तक, AI के युग में बिजनेस स्कूलों की बदलेगी भूमिका

हर बार जब मैं किसी खबर की सुर्खियां देखता हूं जिसमें लिखा होता है कि अमेरिका की किसी बड़ी कंपनी ने, जो आमतौर पर हाईटेक कंपनियां होती हैं, अपने हजारों कर्मचारियों की छंटनी कर दी है तो मैं हिल जाता हूं। जब इन खबरों की सुर्खियों में मुझे इंटेल और माइक्रोसॉफ्ट जैसे नाम नजर आते […]

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ऐप्स को स्पष्ट सहमति की ओर बढ़ना होगा, ऑनलाइन दुनिया में पावर अब यूजर्स की ओर झुक रही

रोज शाम मुंबई के कोलाबा में शाम की सैर के समय जब मैं सॉसन डॉक के निकट मछुआरों को अपना मोबाइल फोन निकालकर फलों की दुकान में क्यूआर कोड से भुगतान करते देखता हूं तो मैं ऊर्जा से भर जाता हूं। मुझे देश की यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) और आधार कार्ड व्यवस्था पर बहुत गर्व […]

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तकनीकी क्रांतियों के पीछे की सच्चाई

मेरे जीवन में निरंतर चले आ रहे रहस्यों में से एक यह समझने की कोशिश भी रही है कि आखिर इंगलैंड में 18वीं सदी के मध्य में आरंभ हुई औद्योगिक क्रांति, जिसने कताई और बुनाई की मशीनों की शुरुआत की, वह पहले भारत में क्यों नहीं घटित हुई। आखिर भारत उस समय दुनिया में सबसे […]

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वाइब कोडिंग का उभार- आपदा या अवसर?

यद्यपि यह अभी शुरुआती दौर में है लेकिन प्रोग्रामिंग का एक नया स्वरूप अपनी जड़ें जमा रहा है। इसके अंतर्गत कोडर या सॉफ्टवेयर डेवलपर को केवल सॉफ्टवेयर की समग्र ‘वाइब’ यानी उसका इरादा, रंग-रूप, अनुभव और उसके वांछित व्यवहार को साधारण भाषा में प्रकट करना होता है और कंप्यूटर अपने आप ही कोड लिख लेता है। […]

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नई दुनिया के लिए कमर कसे भारत

मेरे एक मित्र 1990 के दशक में सॉफ्टवेयर सेवा कंपनी चला रहे थे और मार्केटिंग विश्लेषण करते थे, जिसमें भारत और अमेरिका की नामी-गिरामी कंपनियां उनकी ग्राहक थीं। एक बार मैंने उन्हें ऐसा एल्गोरिदम बनाने में मदद करने का प्रस्ताव दिया, जिससे मार्केटिंग विश्लेषण का उनका काम बेहद जल्दी हो जाएगा। जब मैंने कहा कि […]

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भारत के तकनीकी स्टार्टअप में तेजी

बिल्कुल सफेद बालों वाले मेरे मित्र बोले, ‘हमें एहतियात बरतना होगा कि जरूरत से ज्यादा जोश में मामला बिगड़ न जाए।’ मेरे मित्र प्रशासनिक सेवा से अरसे पहले रिटायर हो चुके हैं मगर उससे पहले उन्होंने औद्योगिक नीतियां बनाने वाली लगभग सभी शीर्ष सरकारी संस्थाओं में काम किया था। अब वह मुश्किल से बोल पाते […]

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DeepSeek बनाम ChatGPT और क्रांतियों के आयाम

चीन की एक कंपनी ने ऐलान किया कि आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) का उसका नया उत्पाद डीपसीक अमेरिकी एआई टूल चैटजीपीटी से बहुत अच्छा है। उसके बाद से ही मीडिया में इस पर शोरगुल मचा हुआ है। कई खबरों की सुर्खियों में कहा गया, ‘चीन के एआई चैटबॉट ने चैटजीपीटी को पछाड़ा!’ कुछ खबरें तो और […]