पहले ही 10 साल तक सेवा दे चुके अपने स्वतंत्र निदेशकों को बदलने के लिए भारतीय कंपनी जगत को दी गई ‘ग्रैंडफादरिंग’ अवधि खत्म होने के बाद कुछ कंपनियां अपने पुराने ‘संरक्षकों’ को बदलने के लिए अनोखे तरीके अपना रही हैं।
कॉर्पोरेट गवर्नेंस और प्रॉक्सी सलाहकार फर्म – इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर एडवाइजरी सर्विसेज (IIAS) द्वारा किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि किसी कंपनी में 10 साल से अधिक समय पूरा कर चुके स्वतंत्र निदेशक उसी समूह की किसी अन्य कंपनी के निदेशक मंडल में शामिल हो रहे हैं या उनकी जगह पर उनके पुत्र अथवा परिवार के अन्य सदस्य को लाया जा रहा है। कुछ स्वतंत्र निदेशकों की जगह कंपनी के पूर्व कर्मचारियों या पेशेवर फर्मों से संबंधित अधिकारियों को लाया जा रहा है।
आईआईएएस ने रिपोर्ट में कहा है ‘कई कारोबारी समूह परिवर्तन का विरोध कर रहे हैं और पुराने जठजोड़ों को बनाए रखने के तरीके ढूंढ रहे हैं, जिन्हें वे खो देते हैं और वे सक्रिय रूप से बने रहना चाहते हैं। नियमों का अनुपालन करते हुए हमारा मानना है कि ये कार्यप्रणाली स्वतंत्र निदेशकों में फेरबदल को अनिवार्य करने के उद्देश्य को विफल कर देती हैं।’
कंपनी अधिनियम के तहत यह ग्रैंडफादरिंग अवधि उन स्वतंत्र निदेशकों के लिए 31 मार्च को समाप्त हो गई है, जो साल 2014 या उससे पहले से एक ही कंपनी के निदेशक मंडल में थे। नियामकीय आदेश में कंपनियों को ऐसे स्वतंत्र निदेशकों के स्थान पर नए निदेशक लाने के लिए विवश किया गया है।
आईआईएएस ने कहा कि हालांकि कई कंपनियों ने नियामकीय उद्देश्य के सामने हथियार डाल दिए हैं, लेकिन कुछ कंपनियों ने यथास्थिति बनाए रखने के लिए अलग-अलग तरीकों का इस्तेमाल किया है।
प्रॉक्सी सलाहकार फर्म ने लंबे समय से कार्यरत ऐसे कम से कम चार स्वतंत्र निदेशकों के मामलों की पहचान की है, जिनकी समूह की कंपनियों के भीतर ही अदला-बदली की गई है।
आईआईएएस ने कहा ‘प्रवर्तक समूह या परिवार के साथ संबंध लंबे जुड़ाव के दौरान भली-भांति स्थापित हो चुक हैं और इसलिए यह चिंता पैदा होती है कि क्या वह निदेशक वास्तव में स्वतंत्र है।’
फर्म ने लगभग एक दर्जन ऐसे उदाहरणों की पहचान की है, जिनमें किसी पुत्र ने स्वतंत्र निदेशक के रूप में निवर्तमान पिता की जगह ले ली है।
आईआईएएस ने कहा है कि निदेशक मंडलों का तर्क है कि पुत्र (या परिवार के अन्य सदस्य) समान रूप से सक्षम होते हैं और यह बात भले ही सच हो, लेकिन स्वतंत्रता का सवाल बना रहता है।’