प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
Bihar Migration Crisis: दशकों से बिहार के कामगार दिल्ली की फैक्टरियों से लेकर पंजाब के खेतों और महाराष्ट्र के निर्माण स्थलों तक दिखते रहे हैं। राज्य सरकार की नौकरियों में स्थायी निवासी महिलाओं के लिए 35 फीसदी आरक्षण और बिहार युवा आयोग का गठन जैसे मंत्रिमंडल के फैसले ने इस रुझान को बदलने का इरादा जताया गया है। हालांकि सेवानिवृत्त प्रोफेसर और अर्थशास्त्री नवल किशोर चौधरी का कहना है, ‘मुझे नहीं लगता कि ये फैसले ‘पलायन’ के रुझान में कोई बड़ा बदलाव ला पाएंगे, जो दशकों से बिहार की पहचान बन चुकी है और दुख की बात यह है कि यह कभी चुनावों में भी मुख्य मुद्दा नहीं रहा।’ वह कहते हैं, ‘जब तक बिहार दूसरे क्षेत्रों की तरह जोखिम लेने के साथ-साथ नवाचार पर जोर नहीं देता है तब यहां से प्रतिभाओं का पलायन होता रहेगा।’
ऐतिहासिक रूप से, बिहार के श्रमिक कृषि कार्यों के लिए पंजाब और हरियाणा जैसे उत्तर-पश्चिमी राज्यों की ओर काम की तलाश में जाते रहे हैं। हाल के दशकों में, बिहार के कामगारों का पलायन औद्योगिक और शहरी केंद्रों जैसे कि दिल्ली-एनसीआर, महाराष्ट्र और गुजरात की ओर बढ़ा है। पलायन के आंकड़े अभी भी चौंकाने वाले हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार बिहार में प्रवासियों की कुल संख्या 2.72 करोड़ थी जो एक दशक पहले 2001 में 2.05 करोड़ थी। इंटरनैशनल ग्रोथ सेंटर के 2018 के एक अध्ययन का अनुमान है कि बिहार से बाहर निकलने वालों की दर बढ़कर 15 फीसदी तक हो गई जो 2011 से तीन प्रतिशत अंक अधिक है।
पिनाक सरकार के 2011 की जनगणना पर आधारित एक शोध विश्लेषण के मुताबिक प्राथमिक स्तर पर जिन राज्यों में पलायन हुआ उनमें दिल्ली (19.34 फीसदी), झारखंड (14.12 फीसदी), पश्चिम बंगाल (13.65 फीसदी), महाराष्ट्र (10.55 फीसदी), उत्तर प्रदेश (10.24 फीसदी) और हरियाणा (7.06 फीसदी) जैसे राज्य शामिल हैं।
बिहार इंस्टीट्यूट ऑफ इकनॉमिक स्टडीज के निदेशक डॉ. प्यारे लाल बताते हैं, ‘हमने अपने अध्ययन में देखा कि सबसे ज्यादा पलायन बिहार के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र से होता है, जबकि सबसे कम भोजपुर जिले से। भोजपुर में दोहरी फसल प्रणाली है जबकि अन्य जगहों पर साल में केवल एक फसल होती है जिससे काम के विकल्प सीमित होते हैं।’
बिहार के उद्योग मंत्री नीतीश मिश्रा स्वीकार करते हैं, ‘पलायन केवल बिहार की नहीं, बल्कि पूर्वी भारत की समस्या है।’ लेकिन वह राज्य सरकार का पक्ष रखते हुए 2016 से लागू औद्योगिक नीति की बात करते हैं। वह कहते हैं, ‘उद्योग आ रहे हैं। हम ऐसा तंत्र बना रहे हैं जहां बड़ी संख्या में उद्यम अपनी जड़ें जमा सकें और अस्थायी समाधानों के बजाय स्थायी स्थानीय विकल्प दें।’ मिश्रा के अनुसार, 2024 बिहार बिजनेस कनेक्ट सम्मेलन में लगभग 1.80 लाख करोड़ रुपये के निवेश का संकल्प लिया गया, जिसमें से लगभग 82,584 करोड़ रुपये इस मद में खर्च किए जा रहे हैं। श्रम संसाधन विभाग के मंत्री संतोष कुमार सिंह कहते हैं, ‘हमारा मिशन, हर गांव में कौशल केंद्र तैयार करना और हर ग्रामीण को कौशल प्रशिक्षण का अवसर देना है। बिहार की लगभग 14 करोड़ आबादी का 60 फीसदी, 40 वर्ष से कम है ऐसे में यह काम चुनौतीपूर्ण है।’
वर्ष 2023 में बिहार की अनुमानित आबादी 12.7 करोड़ थी जो भारत की आबादी का 9.1 फीसदी है। बिहार अत्यधिक बेरोजगार युवा आबादी वाला राज्य है। आर्थिक रूप से भी बिहार पिछड़ा हुआ है। 2012-13 से 2021-22 तक, बिहार का वास्तविक सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) 5 फीसदी की दर से बढ़ा, जो राष्ट्रीय जीडीपी की औसत वृद्धि दर 5.6 फीसदी से कम है। भारत के नॉमिनल जीडीपी में राज्य का योगदान वर्ष 1990-91 के 3.6 फीसदी से घटकर 2021-22 में सिर्फ 2.8 फीसदी रह गया है। वर्ष 2021-22 में नॉमिनल प्रति व्यक्ति आय भी राष्ट्रीय औसत का केवल 30 फीसदी थी जो पलायन की एक प्रमुख वजह है।
कोविड महामारी के दौरान महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत 1 अप्रैल से 20 मई 2022 के बीच 39.5 लाख करोड़ नए आवेदन दिए गए। पटना के ए एन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के पूर्व निदेशक डी एम दिवाकर कहते हैं, ‘महामारी के दौरान लौटे प्रवासी श्रमिकों का रिकॉर्ड नहीं बनाया गया। अगर हमने उनके कौशल के हिसाब से औद्योगिक रणनीति बनाई होती तब हम उनकी प्रतिभा का इस्तेमाल करते हुए भविष्य के पलायन को रोक सकते थे। लेकिन हम अवसर चूक गए। ’