वित्त वर्ष 2025 की तीसरी तिमाही यानी अक्टूबर-दिसंबर 2025 में सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) कंपनियों के नतीजे और उनके प्रबंधन से मिले आगे के अनुमान बताते हैं कि इस उद्योग के कारोबारी मॉडल में आमूलचूल बदलाव हो सकता है। हाल ही में आयोजित नैस्कॉम टेक्नोलॉजी ऐंड लीडरशिप फोरम में जुटी उद्योग की अग्रणी शख्सियतों की बातों से भी इस धारणा को बल मिला। तीसरी तिमाही के नतीजे अच्छे थे और अनुमान भी सतर्कता भरे मगर आशाजनक थे।
किंतु आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) को अपनाए जाने का असर स्पष्ट तौर पर महसूस किया जा रहा है और इसी वजह से पुरानी लीक पर चल रही भारतीय आईटी सेवा कंपनियों के कारोबारी तौर-तरीके बदलने पड़ेंगे। कंपनियों के प्रबंधन ने नतीजे के समय जो भी कहा, उससे पता चलता है कि गैर-जरूरी खर्च बढ़ने के साथ व्यापक माहौल बेहतर हो रहा है और बड़ी संख्या में सौदों पर बातचीत चल रही है।
जेनरेटिव एआई का इस्तेमाल बढ़ने के साथ ही अब परिणाम कर्मचारियों की संख्या के मोहताज नहीं रह गए हैं और कारोबारी क्लाइंट अब हाइपरस्केलर मॉडल (क्लाउड कंप्यूटिंग के लिए बड़े डेटा सेंटर) की ओर बढ़ना चाह रहे हैं, जहां ज्यादातर काम भीतर ही किया जाए। एचसीएल टेक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और प्रबंध निदेशक सी विजयकुमार का कहना है कि क्लाइंट अब आधे कर्मचारी रखकर दोगुना राजस्व हासिल करना चाहते हैं।
भारतीय आईटी उद्योग कहता है कि एआई से जितने रोजगार घटेंगे उससे ज्यादा नए रोजगार आएंगे। उन्हें लगता है कि यह तकलीफ कुछ समय की होगी और आगे जाकर एकदम नए कारोबारी मॉडल की जरूरत होगी। नैस्कॉम का अनुमान है कि फिलहाल करीब 4 लाख आईटी कर्मियों के पास एआई का हुनर है मगर इनमें से केवल 1 लाख के पास ही उच्च कौशल है।
एआई हुनरमंद कर्मचारियों की संख्या बढ़कर मध्यम अवधि में 17 लाख और लंबी अवधि में 27 लाख हो सकती है। परंतु निकट भविष्य में उनकी संख्या ठहर सकती है या कम हो सकती है। गार्टनर का अनुमान है कि 2025 में आईटी पर खर्च 10 फीसदी बढ़ेगा।
एआई ऑप्टिमाइजेशन वाले सर्वरों पर खर्च दोगुना होकर 202 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा और इसमें 70 फीसदी से ज्यादा खर्च आईटी सेवा कंपनियों तथा हाइपरस्केलिंग कंपनियों से आएगा। अनुमान है कि 2028 तक 1 लाख करोड़ डॉलर से अधिक के सर्वर एआई के साथ काम करने लगेंगे।
हाइपरस्केलर जेनरेटिव एआई एकीकरण को बढ़ावा दे रहे हैं, जिससे काम का बोझ दफ्तरों से निकलकर क्लाउड, डेटा सेंटर, बुनियादी ढांचा सेवा और साइबर सुरक्षा पर चला जाएगा। क्लाइंट को संस्थान के लोगों से काम कराना बेहतर लगेगा।
आईटी सेवा, डेटा सेंटर और हाइपरस्केलर के बीच का भेद मिट रहा है क्योंकि तीनों क्षेत्रों के कारोबारी मॉडल और कौशल एक जैसे हो रहे हैं। एआई से सेवा क्षेत्र में बहुत फायदे होंगे और नए अवसर भी तैयार होंगे, लेकिन एआई को अपनाने से निकट भविष्य में राजस्व वृद्धि, परिचालन मार्जिन और मूल्यांकन घट सकते हैं। सॉफ्टवेयर विकास, परीक्षण और बिज़नेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग यानी बीपीओ कारोबार तेजी से एआई के सहारे आ रहे हैं।
कई क्लाइंट डेटा इन्फ्रास्ट्रक्चर को आधुनिक बना रहे हैं और पुराने कोड को अपडेट कर रहे हैं। एआई की क्षमताओं में सुधार और लागत में कमी से इनको अपनाने की रफ्तार बढ़ेगी। इससे देश के आईटी सेवा प्रदाताओं को नए मौके मिलेंगे।
अधिकांश आईटी सेवा कंपनियों को लगता है कि राजस्व सुस्त होने के जोखिम को वे संभाल लेंगी क्योंकि अपने कामकाज में एआई अपनाकर वे खर्च कम कर सकती हैं। साथ ही उन्हें लगता है कि जेन-एआई अपनाने से राजस्व के नए रास्ते खुलेंगे। कारोबारी परिचालन को बदलने के लिए एआई का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल भविष्य में बड़े अवसर लाएगा लेकिन निकट भविष्य में इससे राजस्व वृद्धि 2-3 फीसदी तक सुस्त हो सकती है।
ऐसा 2-3 साल तक ही होगा, जब तक एआई को अपनाने से मांग बढ़ती नहीं दिखती है। ऐप्लिकेशन विकास और बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग से राजस्व पर असर हो सकता है। मझोले स्तर की भारतीय आईटी कंपनियों का ऐप्लिकेशन विकास में प्रथम श्रेणी की कंपनियों से अधिक योगदान है। मगर इतना तय है कि हरेक भारतीय आईटी कंपनियों को दशकों पुराने कारोबारी मॉडल पर दोबारा विचार तो करना ही होगा।