अमेरिका द्वारा संचालित इंडो पैसिफिक इकनॉमिक फ्रेमवर्क फॉर प्रास्पैरिटी (आईपीईएफ) के ट्रेड पिलर का भविष्य अधर में लटक गया है।
लिहाजा भारत के अधिकारियों को यह स्पष्ट हो गया है कि व्यापार वार्ता का हिस्सा बनना ‘महत्त्वहीन’ है। खासतौर पर दक्षिण पूर्व एशिया के देश भविष्य में होने वाले फायदे के प्रति पर आश्वस्त भी नहीं हैं।
आईपीईएफ की बीते सप्ताह सैन फ्रांसिस्को में बैठक हुई थी। यह बैठक स्वच्छ व निष्पक्ष अर्थव्यवस्था के साथ-साथ मजबूत आपूर्ति श्रृंखला के समझौते पर हुए विचार विमर्श के निष्कर्ष तक पहुंचती दिखी।
हालांकि योजना के अनुसार ट्रेड पिलर पर बातचीत निष्कर्ष तक नहीं पहुंच पाई थी। इसके अलावा अमेरिका की तरफ से कोई आधिकारिक विचार-विमर्श का दौर भी नहीं किया गया।
वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘बीते छह-सात दौर की बैठक में भारत ने यह पाया कि यह समझौता उस दिशा की ओर बढ़ रहा है जिसमें कई बाधाएं नहीं हैं। हालांकि कई मतभेद कायम हैं। हमने यह अनुभव किया है कि कई लाभ होने के प्रमाण स्पष्ट/ ठोस नहीं हैं। हालांकि आपूर्ति श्रृंखला के समन्वित करने के कई अप्रत्यक्ष फायदे होंगे और मानक समान रूप से लागू होंगे।’
आईपीईएफ में 14 देश हैं। भारत ट्रेड पिलर में सक्रिय रूप से शामिल नहीं है लेकिन भारत के पास ‘पर्यवेक्षक’ का दर्जा है। ऐसे में भारत के पास यह विकल्प भी होगा कि वह बातचीत के बाद सभी कुछ तय हो जाने पर इस पिलर में शामिल हो। भारत ट्रेड पिलर में शामिल नहीं हुआ। इसका कारण यह था कि सरकार को प्रतिबद्धताएं स्पष्ट नहीं थीं और इनके बारे में विस्तार से जानकारी भी नहीं थी।
इस मामले की जानकारी देने वाले अधिकारी ने बताया, ‘पिलर 2, 3 और 4 (आपूर्ति श्रृंखला की मजबूती, स्पष्ट अर्थव्यवस्था और निष्पक्ष अर्थव्यवस्था) पर सभी देशों का सकारात्मक रुख था। इसका कारण यह था कि सभी का साझा प्रयास मजबूत आपूर्ति श्रृंखला और हरित ऊर्जा की ओर बढ़ना है।’
अधिकारी ने बताया, ‘ट्रेड पिलर को लेकर सवाल हैं। इसके फायदे स्पष्ट नहीं हैं। शायद यही कारण है कि ट्रेड पिलर को अभी तक बंद नहीं किया गया है। सदस्य देशों (अमेरिका को छोड़कर 12 सदस्यों) को प्रतिबद्धताएं करने में मुश्किलें आ रही हैं। वे स्पष्ट ठोस लाभ के बिना प्रतिबद्धताएं देना नहीं चाहते हैं। यह देरी का कारण है।’
ट्रेड पिलर के बिना मार्केट में कम शुल्क के जरिये पहुंच का अवसर उपलब्ध नहीं होती है। ट्रेड पिलर के पीछे सोच यह थी कि कारोबार और तकनीक के लिए नई और सृजनात्मक एप्रोच विकसित कर आर्थिक गतिविधियों को आगे बढ़ाया जाए। इसने निवेश बढ़ेगा। मजदूरों, ग्राहकों और अन्य को फायदा होगा।
हालांकि दक्षिण पूर्व के कुछ देश अमेरिका के प्रस्तावित श्रम मानकों व वातावरण के मानदंडों पर प्रतिबद्धताएं करने में असहजता प्रकट कर चुके हैं।
दिल्ली स्थित थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) के मुताबिक भारत को ट्रेड पिलर में शामिल होने के दबाव से दूर रहना चाहिए। भारत का ट्रेड पिलर से दूर रहने का फैसला उसकी नियामक स्वायत्ता बनाए रखने की व्यापक रणनीति से जुड़ा है।
भारत और अमेरिका के अलावा आईपीईएफ में 12 अन्य देश ऑस्ट्रेलिया, ब्रुनेई, फिजी, इंडोनेशिया, जापान, कोरिया, मलेशिया, न्यूजीलैंड, फिलिपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम हैं।