राष्ट्रीय कंपनी विधि पंचाट (एनसीएलटी) ने कर्ज तले दबी जेपी इन्फ्राटेक के अधिग्रहण के लिए मुंबई की कंपनी सुरक्षा रियल्टी की बोली को आज मंजूरी दे दी। यह बोली दिवालिया समाधान प्रकिया के जरिये लगाई गई थी।
पंचाट ने पिछले साल 22 नवंबर को जेपी इन्फ्राटेक के समाधान पेशेवर की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
जेपी इन्फ्राटेक को कर्ज देने वाले बैंक आदि भुगतान में चूक के बाद अगस्त 2017 में कंपनी को कर्ज समाधान में ले गए थे। जेपी इन्फ्राटेक पर 23,000 करोड़ रुपये का कर्ज है। अधिग्रहण के बाद सुरक्षा रियल्टी नोएडा और ग्रेटर नोएडा में जेपी इन्फ्रा की विभिन्न अटकी परियोजनाओं में 20,000 फ्लैट बनाएगी।
सुरक्षा रियल्टी ने 7,736 करोड़ रुपये की बोली लगाकर जीत हासिल की। सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई एनबीसीसी ने जून 2021 में 6,536 करोड़ रुपये की बोली लगाई थी। सुरक्षा रियल्टी के मालिक सुधीर वालिया हैं, जो सन फार्मा के चेयरमैन दिलीप सांघवी के साले हैं। वालिया ने सन फार्मा को स्थापित करने में मदद की थी, जिसके बदले उन्हें कंपनी में हिस्सेदारी भी मिली है। सुरक्षा रियल्टी की बोली को जेपी इन्फ्राटेक के ऋणदाताओं की समिति ने मंजूरी दी थी और इसे अंतिम मंजूरी के लिए एनसीएलटी के पास भेजा गया था। लेकिन विभिन्न पक्षों द्वारा आपत्ति जताए जाने की वजह से इस प्रस्ताव को मंजूरी मिलने में देर हुई।
जेपी इन्फ्राटेक दिल्ली-आगरा एक्सप्रेसवे की मालिक है और उसके दोनों ओर की जमीन का मालिकाना हक भी उसी के पास है। जेपी इन्फ्राटेक दिवालिया संहिता के तहत कर्ज समाधान के लिए एनसीएलटी के पास भेजी जाने वाली शुरुआती कंपनियों में थी।
एक बैंकर ने कहा कि आईसीआईसीआई बैंक, यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण, जेपी की प्रवर्तक कंपनी जेपी एसोसिएट्स तथा अन्य द्वारा सुरक्षा रियल्टी की योजना पर आपत्ति जताए जाने की वजह से मंजूरी में देर हुई। आईसीआईसीआई बैंक समाधान योजना के तहत जमीन के बजाय नकद चाह रहा था।
जेपी इन्फ्राटेक की आवासीय परियोजनाओं में मकान खरीदने वाले 12 साल से भी ज्यादा समय से कब्जा पाने का इंतजार कर रहे हैं। खरीदारों ने ऋणदाताओं की समिति में शामिल होने के लिए सर्वोच्च न्यायालय का भी रुख किया था।
कंपनी को दिवालिया अदालत में भेजे जाने के बाद से कंपनी के पूर्व प्रवर्तकों और मकान खरीदारों सहित विभिन्न हितधारकों द्वारा मुकदमा दायर किए जाने तथा ऋणदाताओं की समिति के रुख में बार-बार बदलाव होने की वजह से कर्ज समाधान प्रक्रिया में काफी देर हुई। शुरुआत में जेएसडब्ल्यू, वेदांत और अदाणी समूह ने भी जेपी इन्फ्राटेक की संपत्तियों में दिलचस्पी दिखाई थी लेकिन प्रक्रिया में काफी देर होती देख उन्होंने अपने हाथ खींच लिए।