गैर-बासमती चावल के निर्यात (Rice Export Ban) पर रोक लगाने के भारत के फैसले से दुनिया भर में इसकी कीमत बहुत बढ़ गई हैं। इससे परेशान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने भारत से प्रतिबंध पर दोबारा विचार करने के लिए कहा है।
सूत्रों ने कहा कि आधिकारिक तौर पर अभी कुछ नहीं कहा गया है मगर सरकार से सरकार को बेचे जाने वाले गैर-बासमती चावल के लिए आग्रह पर विचार किया जा सकता है। पश्चिम अफ्रीका के देशों को ध्यान में रखते हुए खास तौर पर ऐसा हो सकता है क्योंकि भारत वहां प्रमुख आपूर्तिकर्ता है।
चावल की सोना मसूरी या गोविंद भोग जैसी क्षेत्रीय किस्मों के व्यापारी और निर्यातक इसे अपने साथ धोखा मान रहे हैं क्योंकि प्रतिबंध ने उन पर भी असर डाला है। उनकी किस्मों की कीमत कभी-कभी बासमती चावल के बराबर होती है और कुछ देशों में कीमत बासमती से भी अधिक होती है। इन किस्मों का अमेरिका, ब्रिटेन और खाड़ी देशों में खास बाजार है, जो इस प्रतिबंध से प्रभावित हो सकता है।
गैर-बासमती चावल का कुल निर्यात वित्त वर्ष 2023 में करीब 1.77 करोड़ टन
व्यापारियों और विशेषज्ञों ने कहा कि गैर-बासमती चावल का कुल निर्यात वित्त वर्ष 2023 में करीब 1.77 करोड़ टन और वित्त वर्ष 2022 में करीब 1.72 करोड़ टन रहा था। यह मामुली मात्रा है मगर इस चावल का दुनिया भर में खास बाजार है।
पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर इसकी चर्चा भी खूब है। सोशल मीडिया पर वीडियो तैर रहे हैं, जिनमें अमेरिका और ब्रिटेन में लोगों को चावल की बोरियां घर में इकट्ठी करते और स्टोरों से भारतीय चावल सीमित मात्रा में ही मिलते दिखाया गया है।
खाड़ी के ग्राहक वियतनाम, पाकिस्तान और थाईलैंड जैसे देशों से अपनी जरूरतें पूरी करने की कोशिश में
निर्यातकों और व्यापार विशेषज्ञों के मुताबिक ये चावल की उन किस्मों के ग्राहक हैं, जिन पर प्रतिबंध का असर हुआ है। खबरें हैं कि गैर-बासमती चावल के निर्यात पर भारत की रोक के बाद खाड़ी के ग्राहक वियतनाम, पाकिस्तान और थाईलैंड जैसे देशों से अपनी जरूरतें पूरी करने की कोशिश में हैं।
व्यापार नीति के प्रमुख विश्लेषक और ‘बासमती राइस: द नैचुरल हिस्ट्री ज्योग्राफिकल इंडीकेशंस’ पुस्तक के लेखक एस चंद्रशेखरन ने कहा, ‘बासमती चावल खास किस्म है। इस किस्म को यह मुकाम निर्यात बाजार में बेरोकटोक आपूर्ति और निजी व्यापारियों के प्रयास से मिला है।
बासमती चावल के लिए निर्यात नीति में स्थिरता के कारण निर्यातकों को चावल मिलें लगाने और व्यापार को उद्योग की शक्ल देने में मदद मिली। चावल को बासमती और गैर-बासमती में बांटना ही इस समस्या की जड़ है। इस कारण खास किस्मों को भी गैर-बासमती की श्रेणी में रखना पड़ता है। जीआई उत्पाद हमारी संस्कृति और पहचान के प्रतीक हैं। इसलिए जीआई उत्पादों को बाजार में हस्तक्षेप की आम नीतियों से बचाना होगा।’
चंद्रशेखरन ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में गैर-बासमती चावल की गोविंद भोग जैसी खास किस्मों की कीमत करीब 1,225 डॉलर प्रति टन है। ऐसी ही दूसरी खास किस्म वायनाड जीराकसाला चावल की कीमत करीब 1,900 डॉलर प्रति टन है।
गैर-बासमती श्रेणी में होने के कारण इन सभी किस्मों को झटका लगा है, जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में इनकी कीमतें 1,000 डॉलर प्रति टन बिकने वाले बासमती के मुकाबले काफी अधिक हैं।
मगर बासमती चावल का निर्यात करने वाली प्रमुख कंपनी जीआरएम ओवरसीज के प्रबंध निदेशक अतुल गर्ग ने कहा कि प्रतिबंध का असली असर काफी कम होगा क्योंकि जिस कच्चे गैर-बासमती सफेद चावल पर प्रतिबंध लगाया गया है उसे कुछ हद तक सेला चावल में बदलकर अंतरराष्ट्रीय बाजारों में निर्यात किया जाएगा। उन्होंने कहा कि अफ्रीकी देशों में सेला चावल की मांग बढ़ सकती है क्योंकि उनके लिए चावल जरूरत की वस्तु है विलासिता की नहीं।
गर्ग ने कहा कि इस प्रतिबंध से पूनी, सोना मसूरी और गोविंद भोग जैसी विशेष किस्मों के ग्राहक बासमती चावल की ओर रुख कर सकते हैं क्योंकि उसकी कीमत कम है। मगर गैर-बासमती चावल निर्यातकों के प्रमुख संगठन राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के कार्यकारी निदेशक राजीव कुमार ने कहा कि वर्षों से तैयार कारोबार और विश्वास को इस प्रतिबंध से तगड़ा झटका लगेगा।