बीएनपी पारिबा के प्रमुख (इंडिया इक्विटीज) अभिराम इलेस्वरपु ने कहा है कि इस साल भारत के उम्दा प्रदर्शन ने उभरते बाजारों के साथ मूल्यांकन का अंतर और बढ़ा दिया है।
उन्होंने कहा, देसी इक्विटी को लेकर स्वाभाविक इच्छा लंबी अवधि का ट्रेंड बना रह सकता है। सुंदर सेतुरामन को ईमेल के जरिए दिए साक्षात्कार के मुख्य अंश…
इस साल भारतीय इक्विटी बाजार में व्यापक आधारित तेजी को किन चीजों ने सक्षम बनाया?
साल 2022 में समय-समय पर हुई गिरावट और आर्थिक घटनाक्रम के बाद निवेशक इस साल की शुरुआत में भारत को लेकर सकारात्मक हो गए क्योंकि उस घटनाक्रम से उभरते बाजारों में भारत का सापेक्षिक आकर्षण बढ़ा दिया। इससे विदेशी निवेश में सकारात्मक व मजबूत सुधार हुआ जबकि देसी भागीदारी भी सुदृढ़ बना रहा।
कच्चे तेल और जिंस की लागत में नरमी के साथ-साथ कंपनियों के सुदृढ़ नतीजे ने भी उत्प्रेरक का काम किया। महंगाई का दबाव पूरे साल नरम रहा और आरबीआई समेत वैश्विक केंद्रीय बैंकों ने दरों में बढ़ोतरी के चक्र पर विराम का संकेत दिया। बॉन्ड का प्रतिफल भी अन्य बाजारों के मुकाबले भारत में सुदृढ़ बना रहा।
पश्चिम एशिया के हालात को देखते हुए इक्विटी बाजारों के लिए कौन से जोखिम हैं? क्या आपको लगता है कि क्या यह व्यापक क्षेत्रीय विवाद बन जाएगा?
भूराजनीतिक घटनाक्रम दो चैनल के जरिये इक्विटी बाजारों को प्रभावित करता है : सुरक्षित ठिकाने की ओर बढ़ना और तेल को लेकर झटका। पहले चैनल में परिदृश्य अभी भी अपेक्षाकृत सौम्य बना हुआ है क्योंकि पोजीशन हल्का है और पोर्टफोलियो डीरिस्किंग का शायद बहुत बड़ा असर नहीं होगा।
दूसरे चैनल में पश्चिम एशिया के मसलों के बावजूद कच्चे तेल की कीमतें एक महीने पहले के मुकाबले थोड़ी कम है और अभी तक हमने भारतीय इक्विटी पर कोई बड़ा व प्रत्यक्ष असर नहीं देखा है। तेल की कीमतें तीन अंकों में जाने का परिदृश्य और मांग पटरी से उतरने की संभावना अभी काफी कम है।
क्या देसी निवेश ने भारतीय इक्विटी बाजारों को एक सीमा से नीचे जाना मुश्किल बना दिया है? क्या आपको लगता है कि देसी निवेशकों का तेजी का नजरिया आगे जारी रहेगा?
पिछले कुछ वर्षों में देसी निवेश मजबूत बना हुआ है और यह विदेशी निकासी के दौरान काफी जरूरी सहारा मुहैया करा रहा है। समय-समय पर उतारचढ़ाव हो सकता है, लेकिन देसी इक्विटी को लेकर स्वाभाविक इच्छा लंबी अवधि का ट्रेंड बना रह सकता है।
बीमा, बॉन्ड म्युचुअल फंड और विदेशी इक्विटी के कराधान में बदलाव ने इक्विटी को लेकर सापेक्षिक आकर्षण में इजाफा किया है, खास तौर से ज्यादा आयकर के दायरे वालों के लिए और यह देसी संस्थागत निवेश में मजबूत योगदान कर रहा है।
अन्य उभरते बाजारों व क्षेत्रीय समकक्ष बाजारों के मुकाबले भारतीय बाजारों का प्रदर्शन कैसा है?
भारत अभी 18.5 गुना फॉरवर्ड अर्निंग्स पर ट्रेड कर रहा है, जो ऐतिहासिक औसत के मुताबिक है, लेकिन अन्य उभरते बाजारों व क्षेत्रीय समकक्ष बाजारों के मुकाबले प्रीमियम पर है। कैलेंडर वर्ष 2023 में भारत के उम्दा प्रदर्शन ने यह अंतर और बढ़ा दिया है और इसकी वजह मजबूत आर्थिक फंडामेंटल व सुदृढ़ आय है।
निवेशक भारत को स्ट्रक्चरल स्टोरी के तौर पर देखते हैं, लेकिन सामान्य स्वीकार्यता यह भी है कि हमारे बाजार को अन्य उभरते बाजारों की कीमत पर अनुपातहीन ढंग से फायदा मिला।
भारतीय बाजार को चीन के प्रति अरुचि से कितना फायदा हुआ है? क्या भारत कमजोर प्रदर्शन करेगा या गंवा देगा, जब चीन निवेशकों के रेडार पर होगा?
साल की शुरुआत में भारत ने चीन का बाजार दोबारा खुलने के बाद वहां मजबूत आर्थिक सुधार के अनुमान से कुछ विदेशी निवेश जाते देखा था। हालांकि यह उम्मीद के मुताबिक कारगर नहीं रहा। यह मानना उचित है कि भारत निवेशकों के रेडार पर मजबूती से जमा रहेगा लेकिन यहां का प्रदर्शन कुछ कमजोर रह सकता है, अगर चीन के आंकड़ों में सुधार दिखना शुरू होता है।
अमेरिकी फेडरल रिजर्व की आखिरी नीतिगत घोषणा को लेकर आपके क्या विचार हैं? क्या हम दरों में बढ़ोतरी के चक्र के आखिर में पहुंच गए हैं?
सितंबर के फेडरल ओपन मार्केट कमेटी के मिनट्स से पता चलता है कि 525 आधार अंकों की बढ़ोतरी के बाद फेड के अधिकारियों को जोखिम संतुलित होता दिख रहा है क्योंकि कई तिमाहियों तक सिर्फ और सिर्फ महंगाई पर ध्यान केंद्रित था।
क्या आम चुनाव के नतीजों का बाजार के प्रदर्शन पर असर अल्पावधि से ज्यादा लंबा रहेगा? अन्य देसी चुनौतियां कौन सी हैं?
चुनाव का अल्पावधि में उतारचढ़ाव पर कुछ असर रहता है, लेकिन इतिहास बताता है कि लंबी अवधि में बाजारों पर इसका असर शायद ही रहता है। देसी अर्थव्यवस्था मोटे तौर पर सुदृढ़ बनी हुई है पर ग्रामीण बाजारों में रिकवरी अभी होनी है और यह निगरानी का अहम पहलू बना हुआ है।