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प्रदूषण से घुट रहा भारत के शहरों का दम

विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट के अनुसार प्रदूषित हवा प्रति वर्ष 60 लाख लोगों की जान ले सकती है। लगातार वायु प्रदूषण के माहौल में रहने से कैंसर, फेफड़े व दिल की बीमारी हो सकती है

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अमित कपूर   
विवेक देवरॉय   
Last Updated- November 22, 2023 | 10:13 PM IST

कोरोना महामारी के दौरान की वे निराशाजनक यादें पिछले कुछ हफ्तों में ताजा हो गईं जब घर से बाहर निकलने वाले हर व्यक्ति के मुंह पर एन95 मास्क दिखने लगा। राष्ट्रीय राजधानी के ऊपर धुएं के बादल मंडरा रहे थे।

हाल के वर्षों में भारत विशेषकर देश के उत्तर और उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में सर्दी का सीजन दुर्भाग्य से अनचाहा वायु प्रदूषण आने के साथ शुरू होता है। एक दशक पहले सुबह की शुरुआत ताजा-ताजा ठंडी हवा के झोंकों के नाक में सुरसुरी करने के साथ होती थी।

अफसोसनाक बात है कि अब दिल्ली और इसके आसपास के शहरों में वाहनों की बढ़ती संख्या के साथ-साथ पराली जलाने, औद्योगिक गतिविधियां बढ़ने, पटाखे छोड़ जाने और धुआंधार इमारतों के निर्माण के कारण वायु प्रदूषण बहुत तेजी से बढ़ रहा है।

आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले कुछ सप्ताह में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र यानी एनसीआर में वायु प्रदूषण लगातार गंभीर या अति गंभीर श्रेणी में दर्ज किया गया है।

विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट के अनुसार प्रदूषित हवा प्रति वर्ष 60 लाख लोगों की जान ले सकती है। लगातार वायु प्रदूषण के माहौल में रहने से कैंसर, फेफड़े व दिल की बीमारी हो सकती है। विशेषकर बच्चों को रोग प्रतिरोधक क्षमता घटने जैसी घातक समस्याएं घेर लेती हैं।

इसके अलावा, प्रदूषण जनित बीमारियों के कारण युवाओं की शिक्षा पर तो विपरीत असर पड़ता ही है, कम आय वाले लोगों का काम बुरी तरह प्रभावित होता है। लगातार ऐसा होने का सीधा प्रभाव आमदनी पर पड़ता है, जिससे गरीबी बढ़ती है एवं व्यक्तिगत तथा राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर उत्पादकता घटती है।

द यूनाइटेड नेशंस एनवायरनमेंट प्रोग्राम (UNEP) ने ‘वायु गुणवत्ता पर कार्रवाई’ पर 2016 की अपनी रिपोर्ट को अद्यतन कर 2021 में जारी किया, जिसमें इस पर प्रकाश डाला गया है कि किस प्रकार विभिन्न देश अपनी वायु गुणवत्ता में सुधार ला सकते हैं।

इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दुनिया की 92 प्रतिशत आबादी पीएम2.5 सांद्रता के संपर्क में है। यह विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की अनिवार्य सीमा से बहुत ऊपर है। यही नहीं, इसके अभी 2030 तक 50 फीसदी और बढ़ने की आशंका है।

विश्व बैंक के अनुसार सबसे अधिक प्रदूषण वाले स्थानों में दक्षिण और पूर्वी एशिया, पश्चिमी एशिया और उत्तरी अफ्रीका चिह्नित किए गए हैं। इन क्षेत्रों में पीएम2.5 का स्तर उत्तरी अमेरिका के मुकाबले आठ से नौ गुना अधिक पाया गया है।

वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में आधे से अधिक विशेषकर चीन और भारत में दर्ज की जाती हैं। यह स्थिति प्रभावित क्षेत्रों में वायु प्रदूषण कम करने के लिए ठोस प्रयास किए जाने की जरूरत को रेखांकित करती है।

इस समय हम शहरीकरण में सबसे तेज वृद्धि होती देख रहे हैं। यह विश्व स्वास्थ्य के लिए जटिल समस्या है। तकनीक के बढ़ते इस्तेमाल और जगह के विस्तार से विश्व स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार देखा गया था, लेकिन वायु प्रदूषण अकेला ही इस उपलब्धि में बट्टा लगा सकता है। शहरों के फैलाव के कारण कई तरह से वायु प्रदूषण में इजाफा हुआ है।

शहरीकरण अपने साथ औद्योगीकरण तो लाता ही है, इसके साथ-साथ यातायात और ऊर्जा खपत भी बढ़ती है, जो वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ाने में विशेष भूमिका निभाती है। शहरों में वायु प्रदूषण बढ़ने के प्रमुख कारणों में वाहनों से निकलने वाला धुआं, औद्योगिक इकाइयां, ऊर्जा संयंत्र और कूड़ा-करकट या फसल अवशेष का जलाया जाना आदि शामिल होते हैं।

जैसे-जैसे शहरी क्षेत्र का प्रसार होता है, परिवहन साधनों में वृद्धि के साथ ऊर्जा की मांग भी बढ़ती है। इनसे निकलने वाले प्रदूषक तत्त्व वातावरण में घुलते हैं। परिवहन शहरों में वायु प्रदूषण बढ़ने का प्रमुख स्रोत होता है, क्योंकि वाहनों का धुआं वातावरण में पार्टिकुलेट मैटर, नाइट्रोजन ऑक्साइड और वाष्पशील कार्बनिक यौगिक को बढ़ाती है। औद्योगिक गतिविधियां हालात को और भी खराब कर देती हैं, क्योंकि इनसे सल्फर डाइऑक्साइड और भारी धातु के कण हवा में घुलते हैं।

इसके अतिरिक्त इमारतों के निर्माण की गतिविधियां शहरों को गर्म द्वीप में तब्दील कर रही हैं। क्योंकि घने इमारती या रिहायशी इलाकों के कारण हवा के बहाव की गति रुकती या धीमी पड़ जाती है और प्रदूषक तत्त्व वातावरण के निचले हिस्से में ही ठहर जाते हैं और इससे गर्मी बढ़ती है।

हालांकि शहरीकरण को रोक देना प्रदूषण कम करने का कोई उपाय नहीं है, लेकिन शहरों का यह विस्तारीकरण इस प्रकार होना चाहिए कि इसमें रहने वालों की जिंदगी मुश्किल के बजाय आसान बने।

उदाहरण के लिए, शहरी निकाय लोगों को किफायती और टिकाऊ परिवहन जैसी सार्वजनिक परिवहन सेवाएं अपनाने एवं साइकल से या पैदल चलने को प्रोत्साहित कर सकते हैं।

सार्वजनिक परिवहन के आधारभूत ढांचे में पर्याप्त निवेश, सड़कों पर साइकिल लेन बनाने और पैदल चलने वालों के लिए पथ विकसित करने जैसे कदम बड़ी संख्या में निजी वाहनों को सड़कों पर उतरने से रोक सकते हैं। जब कम संख्या में निजी वाहन चलेंगे, तो निश्चित रूप से वायु प्रदूषण भी घटेगा।

दूसरे, उद्योगों और वाहनों के लिए समय-समय पर उत्सर्जन मानकों को अद्यतन करना और उन्हें लागू कराना भी प्रदूषण कम करने में महती भूमिका निभा सकता है।

फैक्टरियों, ऊर्जा संयंत्रों और वाहनों में उत्सर्जन सीमा को सख्ती से लागू करने के लिए शहरी निकायों/सरकारों को पर्यावरणीय एजेंसियों के साथ हाथ मिलाना चाहिए। नियमों का पालन नहीं करने वालों पर सख्ती बरतने के लिए नियमित रूप से निरीक्षण करना और जुर्माना लगाना जैसे उपाय किए जा सकते हैं।

तीसरे, शहरी योजना में हरित क्षेत्र को शामिल करना भी वायु प्रदूषण के खिलाफ जंग में प्रभावी भूमिका निभाता है। शहरी निकाय रिहायशी और औद्योगिक इलाकों में ग्रीन बेल्ट, पार्क और शहरी जंगल क्षेत्र के प्रसार को प्रोत्साहित कर वायु प्रदूषण को काबू कर सकते हैं। वनस्पति प्राकृतिक छननी का काम करते हैं। ये प्रदूषक तत्त्वों को सोखकर वायु स्वच्छ करते हैं।

इसलिए अधिक से अधिक पौधरोपण को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त सुनियोजित तरीके से शहरी योजना को लागू किया जाना चाहिए, जिसमें मिक्स लैंड यूज यानी मिश्रित भूमि उपयोग को प्राथमिकता दी जाए और सघन रिहायश को कम से कम रखा जाए। इससे वायु बहने की गति बढ़ेगी और प्रदूषण छंटेगा।

सबसे महत्त्वपूर्ण बात, नवीनीकरण ऊर्जा को अपनाए जाने से भी वातावरण में प्रदूषक तत्त्वों और ग्रीन हाउस गैसों को कम करने में खासी मदद मिल सकती है। रिहायशी और औद्योगिक इलाकों में सरकार सौर, वायु समेत अन्य स्वच्छ ऊर्जा के विकल्पों को अपनाने पर लोगों को प्रोत्साहन राशि दे सकती है।

इससे न केवल वायु प्रदूषण में कमी आएगी, बल्कि लोगों का रुझान टिकाऊ स्वच्छ ऊर्जा की तरफ बढ़ेगा। जिस प्रकार हमारे समाज में तेजी से शहरीकरण बढ़ रहा है, वायु गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले कारकों की पहचान कर उन्हें दूर करना उतना ही जरूरी हो गया है।

शहरीकरण और प्रदूषण में सीधा नाता है, लेकिन बचाव के ठोस सहयोगात्मक उपाय लागू कर शहरी वातावरण को स्वस्थ बनाया जा सकता है। शहरों में पैदल पथ, साइकल लेन, स्वच्छ ऊर्जा इस्तेमाल जैसी टिकाऊ प्रथाएं एवं तकनीकी नवाचार अपनाने तथा सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देकर शहरी लोगों के लिए स्वच्छ और स्वस्थ भविष्य का रास्ता तैयार किया जा सकता है।

(कपूर इंस्टीट्यूट फॉर कम्पेटिटिव इंडिया में अध्यक्ष और यूएसएटीएमसी, स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी में व्याख्याता हैं। देवरॉय भारत के प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष हैं। लेख में जेसिका दुग्गल का भी योगदान)

First Published : November 22, 2023 | 9:54 PM IST