मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) वी अनंत नागेश्वरन और उनकी टीम द्वारा लिखित ‘री-एग्जामिनिंग नैरेटिव्स: ए कलेक्शन ऑफ एसेज’ में कहा गया है कि भारत का निर्यात अब वैश्विक मांग में बदलाव और विनिमय दरों को लेकर कम संवेदनशील होता जा रहा है।
प्रकाशन के मुताबिक यह निष्कर्ष इस तथ्य से निकाला गया है कि निर्यात से आमदनी की लोच 1991 से 2008 के दौरान 5.67 था, जो 2009 से 2022 के दौरान 3.44 हो गया। वहीं निर्यात का व्युत्क्रम मूल्य लोच (इनवर्स प्राइस एलास्टिसिटी आफ एक्सपोर्ट) 2.7 से 0.4 हो गया है।
लोच में कमी की वजह से वैश्विक मांग और विनिमय दर में बदलाव को लेकर संवेदनशीलता कम हुई है। सलाहकारों ने कहा है कि हालाकि यह तेजी के वक्त संभवतः लाभदायक नहीं होगा और वैश्विक मांग में तेजी या विनियम दर में गिरावट की स्थिति में यह कम अनुपात में प्रतिक्रिया देगा।
प्रकाशन में कहा गया है, ‘बहरहाल यह संभवतः तेजी के वक्त लाभदायक नहीं होगा। परिणामस्वरूप विनिमय दर में कमी या वैश्विक मांग में तेजी की तुलना में कम अनुपात में निर्यात बढ़ेगा। इस संदर्भ में ज्यादा जरूरी यह है कि गिरने के जोखिम को लेकर हेजिंग की जाए जब वैश्विक मांग में कम अनुकूल वृद्धि होती है।’
निर्यात लोच में बदलाव सेवा निर्यात की बढ़ती हिस्सेदारी से भी संचालित होता है, जो महामारी के पहले के स्तर की तुलना में 28 प्रतिशत बढ़ा है। और यह वैश्विक आय में उतार चढ़ाव को लेकर वाणिज्यिक वस्तुओं के निर्यात की तुलना में कम संवेदनशील है।
सलाहकार के मुताबिक भारत का विदेश व्यापार सुधारों की वजह से बढ़ा है, जो पिछले कुछ दशक से हुआ है। भारत की न सिर्फ वैश्विक निर्यात में हिस्सेदारी बढ़ी है, बल्कि देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में इसका हिस्सा भी 1900 के शुरुआत के 15 प्रतिशत की तुलना में 2022 में करीब 50 प्रतिशत बढ़ा है।
भारत से वस्तुओं और सेवाओं का निर्यात 2020 से 2022 के बीच दोगुना होकर 770 अरब डॉलर पर पहुंच गया है। पूरी दुनिया में आपूर्ति श्रृंखला के व्यवधानों के बावजूद ऐसा हुआ है।