केंद्रीय बैंक की नीतियों में खुदरा मुद्रास्फीति (Retail Inflation) का अहम योगदान होता है और अब इसके तय लक्ष्य यानी 4 फीसदी के भीतर आने के संकेत दिख रहे हैं। मगर प्रतिकूल मौसम और भू-राजनीतिक तनाव के कारण कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय दाम में तेजी से मुद्रास्फीति बढ़ने का जोखिम बना हुआ है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने अर्थव्यवस्था की स्थिति पर अपनी रिपोर्ट में ये बातें कही हैं।
आरबीआई के डिप्टी गवर्नर माइकल पात्र सहित केंद्रीय बैंक के अधिकारियों द्वारा तैयार इस रिपोर्ट में कहा गया है कि युवा आबादी का फायदा उठाने के लिए देश को अगले तीन दशकों तक 8 से 10 फीसदी की दर से विकास करना होगा। रिपोर्ट साफ तौर पर कहती है कि इसमें लिखी राय लेखकों की ही है और यह जरूरी नहीं कि आरबीआई के भी ये ही विचार हों।
2022 में लगातार तीन तिमाही तक आरबीआई खुदरा मुद्रास्फीति को 4 से 6 फीसदी के तय दायरे में नहीं रख पाया। फिर भी वह कीमतों में बढ़ोतरी को काबू करने की अपनी कोशिश से पीछे नहीं हटा चाहे इसके लिए अप्रैल 2023 के बाद से उसने रीपो दर को जस का तस ही क्यों न छोड़ना पड़ा हो।
जनवरी से खुदरा मुद्रास्फीति में नरमी देखी जा रही है, जिससे वृद्धि को बल मिल रहा है। दिसंबर 2023 में खुदरा मुद्रास्फीति 5.7 फीसदी पर पहुंच गई थी और इसके बाद के दो महीनों में औसतन 5.1 फीसदी रहने के बाद मार्च में यह घटकर 4.9 फीसदी रह गई।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘मुद्रास्फीति की चाल अनुमान के अनुरूप रही और वित्त वर्ष 2024 की चौथी तिमाही में यह अनुमान के मुताबिक 5 फीसदी रही।’आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष में खुदरा मुद्रास्फीति 4.5 फीसदी रहने का अनुमान लगाया है। रिपोर्ट के अनुसार अब भरोसा बढ़ा है कि खुदरा मुद्रास्फीति 4 फीसदी के लक्ष्य के भीतर आ जाएगी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि मुद्रास्फीति धीरे-धीरे अनुमान के मुताबिक कम हो रही है और आने वाले आंकड़ों से इसमें और गिरावट की तस्वीर साफ होगी। मगर रिपोर्ट में खाद्य मुद्रास्फीति पर चिंता जताई गई है क्योंकि थोड़ी नरमी के संकेत मिलने के बाद भी यह ऊंची बनी हुई है और मुद्रास्फीति कम होने की राह में जोखिम का काम कर रही है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘निकट अवधि में प्रतिकूल मौसम और भू-राजनीतिक तनाव के कारण कच्चे तेल के दाम में उठापटक के बीच मुद्रास्फीति बढ़ने का जोखिम हो सकता है।’ कच्चे तेल में थोड़ी नरमी आई थी मगर पश्चिम एशिया में तनाव के बाद इस महीने की शुरुआत में ब्रेंट क्रूड 90 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि गर्मियों के दौरान पैनी नजर रखने की जरूरत होती है क्योंकि इस साल सामान्य से बेहतर मॉनसून रहने से खाद्य पदार्थों के दाम घट सकते हैं। मगर उससे पहले दाम बढ़ते दिख सकते हैं।
विश्व मौसम संगठन (WMO) की हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय मौसम विज्ञान विभाग से मिली जानकारी अत्यधिक प्रतिकूल मौसम की घटना में चिंताजनक वृद्धि दर्शा रही है, जिससे निपटने के लिए सामूहिक प्रयास की जरूरत है। रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में वृद्धि दर बढ़ने की स्थितियां बन रही हैं। 2021 से 2024 के दौरान औसत वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 8 फीसदी से अधिक वृद्धि रही है।
रिपोर्ट कहती है, ‘अगले तीन दशक तक वृद्धि की रफ्तार बढ़ाने का अरमान पूरा करने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था को सालाना 8 से 10 फीसदी बढ़ना होगा।’ रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि निजी निवेश में बढ़ोतरी अब साफ दिखने लगी है। मजबूत बैलेंस शीट, देसी मांग और सार्वजनिक पूंजीगत खर्च की बदौलत भारतीय कंपनियों की ऋण गुणवत्ता भी बेहतर हुई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि युवाओं और महिलाओं के लिए रोजगार के अवसरों को बढ़ाने पर जोर देते हुए रोजगार क्षमता बढ़ाने की रणनीति पर आगे भी चलते रहना चाहिए। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले वर्षों में श्रम की गुणवत्ता में धीरे-धीरे सुधार हुआ है और 1980 से 2021 के बीच यह 0.7 फीसदी की दर से बढ़ी है। 2017-18 से श्रम की गुणवत्ता में तेजी से सुधार हुआ है।