मारुति सुजूकी इंडिया भारत में इलेक्ट्रिक हैचबैक कार लाने पर विचार कर रही है। यह भारत में अगले कई साल में उसकी इलेक्ट्रिक वाहन लाने की योजना का हिस्सा है। कंपनी के प्रबंध निदेशक (एमडी) और मुख्य कार्य अधिकारी (सीईओ) हिसाशी ताकूची ने गुरुवार को यह जानकारी दी।
उन्होंने संवाददाताओं को बताया कि भारत में प्रीमियम हैचबैक की वार्षिक बिक्री 2030 तक 10 लाख से अधिक होने का अनुमान है, जो मौजूदा लगभग 7,00,000 से अधिक है। यहां स्विफ्ट के नए मॉडल की शुरुआत के बाद यह बयान आया है। इस मॉडल की कीमत 6.49 लाख रुपये (एक्स-शोरूम) से शुरू होती है।
भारत में हैचबैक और सिडैन की पूरी श्रेणी की वॉल्यूम बिक्री में पिछले साल की तुलना में 11.35 प्रतिशत तक की गिरावट नजर आई और यह घटकर 17.47 लाख रह गई। हालांकि ताकूची इस श्रेणी के भविष्य को लेकर आशावादी थे।
उन्होंने कहा ‘हम हैचबैक बाजार में काफी अच्छी बाजार हिस्सेदारी के साथ बढ़त बनाए हुए हैं। हालांकि यह बाजार फिलहाल बढ़ नहीं रहा है, लेकिन बढ़ती आर्थिक वृद्धि के साथ और ज्यादा लोग हैचबैक खरीदना शुरू कर देंगे। उस समय हमारी अधिक बाजार हिस्सेदारी से हमें काफी मदद मिलेगी। साल 2023-24 में मारुति के पास हैचबैक और सिडैन श्रेणी की वॉल्यूम बिक्री में 63.3 प्रतिशत हिस्सेदारी रही।
साल 2023 में मारुति ने साल 2023-24 में स्पोर्ट यूटिलिटी व्हीकल (एसयूवी) श्रेणी में अपना पहला इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) पेश करने की शुरुआती घोषणा की थी। हालांकि बाद में इसे पेश करने की तारीख आगे बढ़ाकर साल 2024-25 कर दी गई।
कुल मिलाकर कंपनी का लक्ष्य साल 2029-30 तक भारत में छह ईवी पेश करने का है। ताकूची ने कहा ‘हमने विभिन्न दामों पर कई ईवी पेश करने का अपना इरादा जताया है। हम जो पहला ईवी पेश करेंगे, वह अच्छे आकार (एसयूवी जैसा) का होगा। इसलिए हम हैचबैक श्रेणी में एक ई कार मॉडल पेश करने पर विचार करेंगे।’
उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था बढ़ रही है, लोगों की पसंद भी बदल रही है। उन्होंने कहा कि आज मुख्य वृद्धि एसयूवी श्रेणी से हो रही है। हालांकि हैचबैक श्रेणी खत्म नहीं हो रही है।
जब उनसे हैचबैक श्रेणी में प्रत्याशित बदलाव के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने जवाब दिया ‘मेरे पास इस सवाल का कोई वैज्ञानिक जवाब नहीं है कि इस बाजार में सुधार कब होगा। भार्गव (मारुति सुजूकी के चेयरमैन) ने संकेत दिया है कि इस श्रेणी में वृद्धि देखने के लिए हमें तीन से चार साल लग सकते हैं।’