पिछले एक दशक से सुनील छेत्री (Sunil Chhetri) के दिन की शुरुआत कसरत से होती रही है। खूब कसरत करने के बाद वह नाश्ते में ब्रोकली, छोले, सुशी (एक जापानी व्यंजन), काला जैतून, टूना मछली, लाल मांस और एक कप ग्रीन टी लेना पसंद करते हैं।
छेत्री फुटबॉल के माहिर खिलाड़ी तो है हीं, इसके साथ स्वयं को चुस्त-दुरुस्त रखने को लेकर उनका जज्बा भी किसी से छुपा नहीं है। फुटबॉल के मैदान में लंबे समय तक टिके रहने के लिए शारीरिक दमखम एक अहम शर्त होती है और छेत्री ने इसे कभी नजरअंदाज नहीं किया।
महानतम भारतीय फुटबॉल खिलाडि़यों में से एक छेत्री ने गुरुवार को अंतरराष्ट्रीय फुटब़ॉल से संन्यास लेने की घोषणा कर सबको चौंका दिया। उन्होंने कहा कि वह 6 जून को अपना आखिरी मैच खेलेंगे।
‘कैप्टन फैंटास्टिक’ के नाम से लोकप्रिय छेत्री ने सोशल मीडिया एक्स पर एक वीडियो पोस्ट में कहा कि अगले महीने कुवैत के खिलाफ वह अपना आखिरी अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल मैच खेलेंगे।
यह निर्णय लेना आसान नहीं था: छेत्री
छेत्री ने कहा, ‘मेरे अंदर का बाल मन शायद बार-बार फुटबॉल खेलने के लिए उमड़ेगा मगर एक परिपक्व खिलाड़ी एवं व्यक्ति के रूप में मैं जानता हूं कि अब संन्यास लेने का समय आ गया है। मगर यह निर्णय लेना आसान भी नहीं था।’
छेत्री का 19 वर्षों का फुटबॉल का सफर शानदार रहा है। अपने इस सफर में उन्होंने अकेले दम पर फुटबॉल को एक ऐसे देश में अलग मुकाम तक पहुंचा दिया जहां क्रिकेट की चकाचौंध में बाकी खेल गुम हो जाते हैं।
छेत्री ने 150 मैचों में 94 गोल दागे हैं। अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल में सर्वाधिक गोल दागने वाले छेत्री तीसरे खिलाड़ी हैं। इस मामले में करिश्माई लियोनेल मेसी और क्रिस्टियानो रोनाल्डो ही उनसे आगे हैं। छेत्री को फुटबॉल में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए अर्जुन पुरस्कार से नवाजा गया है। वर्ष 2011 में उन्हें देश के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुका है।
भारतीय फुटबॉल टीम के कप्तान के तौर पर उन्होंने पूरी शिद्दत के साथ टीम का नेतृत्व किया। छेत्री की कप्तानी में भारतीय टीम एशियन फुटबॉल फेडेरेशन चैलेंज कप, साउथ एशियन फुटबॉल फेडेरेशन चैंपियनशिप और इंटरकॉन्टिनेंटल कप जीत चुकी है। यह इस बात का सबूत है कि छेत्री ने किस दमखम के साथ टीम को एक नए मुकाम तक पहुंचाया।
एक खिलाड़ी के तौर पर हारना छेत्री को पसंद नहीं था। प्रतिस्पर्धा का यह भाव बचपन से ही उनके मन में भरा था। फीफा ने 2022 में भारतीय फुटबॉल कप्तान के जीवन पर तीन हिस्सों में एक वृत्त चित्र (डॉक्यूमेंट्री) तैयार किया था। इसमें दिखाया गया कि छेत्री किस तरह बोर्डगेम में भी हारना पसंद नहीं करते थे।
छेत्री अविभाजित आंध्र प्रदेश के सिकंदराबाद में बड़े हुए थे। उनके पिता के बी छेत्री भारतीय सेना में थे। 60 की उम्र पार चुके उनके पिता की भी चुस्ती-फुर्ती देखते बनती है। छेत्री की मां सुशीला नेपाल फुटबॉल टीम से खेलती थीं। यानी खेल और शारीरिक दमखम उन्हें विरासत में मिले हैं।
छेत्री के संन्यास लेने की घोषणा के बाद उन्हें देश के कोने-कोने से संदेश मिल रहे हैं। उनके प्रशंसकों और टीम के साथी खिलाडि़यों ने उनके प्रति अपना प्यार एवं सम्मान जाहिर किया है।
पूर्व फुटबॉल खिलाड़ी अलविटो डिकुन्हा ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘छेत्री का फुटबॉल को अलविदा कहना दुखद है। सुनील उत्साही एवं जुझारू खिलाड़ी रहे हैं और एक खिलाड़ी के तौर पर हमेशा स्वयं में सुधार करने से कभी नहीं चुके। वह एक ऐसे व्यक्ति रहे हैं जिनका नाम मैदान के अंदर या बाहर किसी विवाद में नहीं आया है।’
2005 में पाकिस्तान के खिलाफ खेला था पहला मैच
छेत्री ने 2005 में पाकिस्तान के खिलाफ मैच से शुरुआत की थी। शाजी प्रभाकरण ने अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल में छेत्री के बढ़ते कद को करीब से देखा है। प्रभाकरण ने उन दिनों को कुछ इस तरह याद किया, ‘2005 में मैं राष्ट्रीय टीम का निदेशक था। उस समय मैं गोवा में अखिल भारतीय फुटबॉल संघ (AIFF) के कार्यालय में बैठा था तभी मुख्य प्रशिक्षक सुखविंदर सिंह ने कहा कि हमें सुनील को टीम में शामिल करना चाहिए।’ मुझे सुखविंदर के शब्द आज भी याद हैं। प्रभाकरण ने कहा, सुखविंदर ने कहा कि हमारे पास वह सर्वाधिक प्रतिभा से धनी खिलाड़ी हैं।’
आई-लीग में खेलते समय डिकुन्हा और छेत्री कोलकाता के हजरा रोड में एक ही कमरे में रहा करते थे। उन्होंने अपने पुराने रूममेट की महानता का कुछ यूं जिक्र किया, ‘समय के साथ उन्होंने एक फुटबॉल खिलाड़ी के रूप में अपनी प्रतिभा को बखूबी निखारा।’