बीएस बातचीत
भारतीय रिजर्व बैंक की विशेषज्ञ समिति के चेयरमैन केवी कामत ने कहा कि सकल घरेलू उत्पाद की वृद्घि दर में पहली तिमाही में गिरावट के बाद स्थिति में तेजी से बेहतर सुधार की उम्मीद है। कोविड से प्रभावित कारोबारों के लिए दो साल के लिए कॉरपोरेट कर्ज पुनर्गठन तार्किक है और उस समय तक चीजें सामान्य हो सकती हैं। कामत से पुनर्गठन के बारे में अभिजित लेले ने बात की। पेश है संक्षिप्त अंश:
समिति ने महामारी से प्रभावित विभिन्न उद्योगों के प्रतिनिधियों से बात की है। उद्योग को कितना नुकसान हुआ है?
पहली तिमाही में आर्थिक वृद्घि ऋणात्मक रही है। पूरे तंत्र में इसका असर देखा जा रहा है। ऐसे में आश्चर्य की बात नहीं है। कंपनियों के मुनाफे और बिक्री पर भी असर पड़ा है।
पुनर्गठन के तौर पर जिस तरह की मदद दी जा रही है, उसका किस आधार पर मूल्यांकन किया गया है?
काफी ज्यादा निवेश है, इसलिए आगे किसी तरह की समस्या नहीं होनी चाहिए। इसके दायरे में कृषि, एफएमसीजी और अक्षय ऊर्जा, फार्मा आदि को शामिल किया गया है। इसके अलावा बिजली, रियल एस्टेट और निर्माण क्षेत्र पर महामारी का ज्यादा असर पड़ा है। बाकी क्षेत्रों पर उतना असर नहीं पड़ा है लेकिन उन्हें भी थोड़ी मदद की जरूरत होगी। स्थिति में पहले के अनुमान से कहीं जल्द सुधार होने की उम्मीद है। भारतीय रिजर्व बैंक की पुनर्गठन योजना कंपनियों को पटरी पर लाने में सहायक होगी। दो साल की मॉरेटोरियम अवधि में बैंकों की मदद से बड़ा हिस्सा सामान्य स्थिति में लौट आएगा।
अनुमान के मुताबिक एसएमई को पुनर्गठन की जरूरत होगी। बड़ी कंपनियों को अपेक्षाकृत कम मदद की जरूरत पड़ेगी। आपकी इस पर क्या राय है?
एमएसएमई क्षेत्र के लिए अलग पैकेज है। एमएसएमई बड़ी कंपनियों पर निर्भर हैं। बड़ी कंपनियों के बिना एमएसएमई के लिए बाजार कहां रहेगा। दोनों आपस में जुड़ी हैं।
ज्यादातर कर्ज के साथ दोहरी परेशानी दिख रही है। क्या पुनर्गठन करते वक्त बैंकों के लिए यह एक चुनौती साबित होगी?
आरबीआई ने कुछ स्पष्ट शर्तें तय कर दी है। पहली शर्त यह है कि 1 मार्च तक भुगतान में 30 दिन से अधिक देरी वाले कर्ज इस प्रक्रिया का हिस्सा नहीं होंगे। दूसरी अहम शर्त यह है कि कर्जदार को यह साबित करना होगा कि कोविड-19 के कारण ही उनकी वित्तीय सेहत बिगड़ी है। मुझे लगता है कि बैंक केवल इस बात पर ध्यान देंगे कि कोई कर्ज पुनर्गठन का लाभ लेने लायक है या नहीं।
पिछले पांच वर्षों के दौरान बड़ी कंपनियों के साथ बैंकों के जो अनुभव रहे हैं उन्हें देखते हुए उनकी (बैंकों की) तैयारी कैसी है?
मुझे लगता है कि इस बार अलग किस्म का कर्ज पुनगर्ठन हो रहा है। इससे पहले जब भी इस तरह की प्रक्रिया हुई थी तब ऐसा मान लिया गया था कि अमुक कंपनी की हालत खराब है। इस बार ऐसी बात नहीं है और जो भी मुश्किलें आईं हैं वह कोविड-19 की वजह से आई हैं। ऐसा माना जा रहा है कि अगले दो वर्षों में कंपनियां पटरी पर लौट आएंगी।
समिति ने बैंकिंग एवं वित्तीय क्षेत्र को कंपनियों के कर्ज पुनगर्ठन की सिफारिश की है, लेकिन असर तो पूरी अर्थव्यवस्था पर हुआ है। ऐसे में कर्ज पुनर्गठन को अधिक प्रभावी बनाने के लिए आप क्या सलाह देंगे?
कंपनियां अपनी क्षमताओं का पूर्ण इस्तेमाल नहीं कर पाईं जिससे देश क जीडीपी औंधे मुंह गिरा है। मुझे लगता है कि इस बार सरकार ने सबसे निचली कड़ी पर ध्यान दिया है। दूसरे शब्दों में कहं तो विभिन्न योजनाओं के जरिये सरकार ने लोगों और कंपनियों की परेशानियां दूर करने पर ध्यान दिया है।
गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां कर्ज पुनगर्ठन की जद में नहीं आएंगी, लेकिन उन्हें दूसरी इकाइयों को दिए कर्ज का पुनगर्ठन करना होगा? इन बातों में विरोधाभास नहीं झलकता है?
ऐसी इकाई भी हो सकती है जिसे बैंक और एनबीएफसी दोनों से कर्ज मिला है। बैंक कर्ज का पुनर्गठन करेंगे तो पूरी वित्तीय प्रणाली पर दबाव थोड़ा कम हो जाएगा। मेरा कहना है कि बैंक बड़े कर्जदाता के तौर पर जब कर्ज पुनर्गठन करेंगे तो दिक्कतें दूर हो जाएंगी। मैं यह मानता हूं कि एनबीएफसी कर्ज लेने के साथ कर्ज देती भी हैं। एक कर्जदार के तौर पर हम एनबीएफसी पर विचार नहीं कर रहे हैं। नियामक को एनबीएफसी पर अलग से विचार करना होगा।