बदलते वक्त से कदमताल कर रहे दिल्ली स्थित बादली के उद्यमी; EV, सोलर और सैटेलाइट्स को जोड़ने वाली बनी कड़ी

Badli industrial area: लाइट इंजीनियरिंग उत्पादों के गढ़ बादली के एक उद्यमी ने इसरो के लिए भी बनाया उत्पाद

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रामवीर सिंह गुर्जर   
Last Updated- January 05, 2025 | 10:05 PM IST

अगर कोई पूछे कि आपकी पार्किंग में खड़े ई-स्कूटर, सड़कों पर रोशनी करने वाले सोलर पैनल और मौसम तथा दूसरी जरूरी जानकारी देने वाले सैटेलाइट को आपस में जोड़ने वाली कड़ी कौन सी है तो आप चकरा जाएंगे। असल में इनमें गहरा रिश्ता है और इन्हें आपस में जोड़ने वाली कड़ी है ‘बादली’। बादली औद्योगिक क्षेत्र राष्ट्रीय राजधानी में हल्के यानी लाइट इंजीनियरिंग उत्पादों के निर्माण का अड्डा कहलाता है। यहां के उद्यमी बदलते दौर के साथ कदमताल करने में माहिर हैं और तरह-तरह के कलपुर्जे बनाते हैं। आपके ई-स्कूटर, सोलर पैनल और उपग्रह के लिए कई पुर्जे यहीं से बनकर जाते हैं और उन सबके बीच यही रिश्ता है।

यहां लंबे अरसे से बड़े पैमाने पर वाहन कलपुर्जे बनते रहे हैं मगर इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) का चलन बढ़ा तो यहां के उद्यमियों ने भी ईवी कलपुर्जे बनाने शुरू कर दिए हैं। सौर ऊर्जा पर सरकार और निजी क्षेत्र का बहुत जोर है, इसलिए उद्यमी इसके पुर्जे बना रहे हैं। बादली के उद्यमी कारोबारी गणित पर पूरा ध्यान देते हैं मगर प्रयोग करने से भी कतराते नहीं हैं।

मिसाल के तौर पर सरकार ने उपग्रहों यानी सैटेलाइट में देसी उत्पादों पर जोर दिया तो यहां के उद्यमी उसकी इस पहल को सफल बनाने में भी जुट गए। हाल ही में बादली के एक उद्यमी ने सैटेलाइट के लिए एक सफल उत्पाद बना भी दिया है।

बादली इंडस्ट्रियल एस्टेट एसोसिएशन के अध्यक्ष और लाइट इंजीनियरिंग उत्पाद बनाने वाले रवि सूद ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) को इस साल पहली बार बैटरी टर्मिनल उपलब्ध कराया है। उन्होंने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब देसी उद्यमियों से इसरो के लिए उत्पाद बनाने की अपील की तो दो साल पहले उन्होंने भी बैटरी टर्मिनल बनाने की सोची।

सैटेलाइट की बैटरी में हीलियम गैस इस्तेमाल की जाती है तो चार गुना दबाव पर भी रिसती नहीं है। सूद बताते हैं, ‘टर्मिनल बनाने के लिए जापान से 2 करोड़ रुपये की मशीन की जरूरत थी, जो महंगी थी और मिल भी नहीं पा रही थी। इसलिए ऐसा बैटरी टर्मिनल बनाना चुनौती भरा था, जिसमें से गैस न रिसे।’

लेकिन जरूरी मशीनों के बगैर भी दो साल मेहनत कर सूद ने बैटरी टर्मिनल बना दिया, जिस पर 70-80 लाख रुपये का खर्च आया। उन्होंने बताया कि पिछले साल अक्टूबर में इसरो को करीब 10,000 बैटरी टर्मिनल भेजे गए हैं। अब सूद ईवी के लिए भी बैटरी टर्मिनल बनाने की सोच रहे हैं।

बादली औद्योगिक क्षेत्र में बिजली के तार और केबल बनाने वाले आशुतोष गोयल ने भी बाद में स्मार्ट मीटर बनाना शुरू कर दिया। अब वह ईवी के लिए भी तार बनाने लगे है। गोयल कहते हैं, ‘घरों में इस्तेमाल होने वाले बिजली के तार तो हम पहले ही बना रहे थे। पिछले कुछ साल में ईवी की मांग बढ़ी तो हमने उसमें इस्तेमाल होने वाले तार बनाना भी शुरू कर दिया।

अब लोहिया जैसी ईवी कंपनी और उनके लिए पुर्जे बनाने वाली मिंडा जैसी कंपनियां हमसे तार ले रही हैं। इससे हमारा कारोबार भी बढ़ा है।’ गोयल सौर ऊर्जा को बढ़ावे की सरकार की पहल का फायदा उठाने के लिए सोलर पैनल भी बना रहे हैं।

गोयल की ही तरह बादली के उद्यमी एके कौल भी ईवी के लिए कलपुर्जे बना रहे हैं। उनका कहना है कि उनके कारखाने में पेट्रोल-डीजल से चलने वाले वाहनों के लिए कलपुर्जे पहले ही बन रहे थे, जिन्हें होंडा और मारुति जैसी कंपनियां उनसे खरीदती है। अब ये कंपनियां इलेक्ट्रिक वाहन उतारने जा रही हैं तो उसके कलपुर्जे बनाने का काम भी उनके कारखाने में शुरू हो गया है।

बादली के उद्यमी ऊर्जा पर होने वाला खर्च कम करने के लिए मशीनें भी बदल रहे हैं। एसोसिएशन के महासचिव और स्टेशनरी के तौर पर इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक के उत्पाद बना रहे एचएस अरोड़ा ने कहा, ‘पहले हमारे यहां इंडक्शन मशीनें इस्तेमाल होती थीं, जो काम नहीं होने पर भी चलती थीं और बिजली खर्च होती थी। अब जो मशीनें लगी हैं, वे काम होने पर ही बिजली खाती हैं। इनसे हमारी 40-50 फीसदी बिजली बच रही है, लागत भी कम हो रही है और पर्यावरण को भी कम नुकसान हो रहा है।’

First Published : January 5, 2025 | 10:05 PM IST