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Editorial: ईरान पर अमेरिकी हमले से बढ़ा वैश्विक सुरक्षा के लिए खतरा

अमेरिका ने न केवल यह दिखा दिया है कि वह बिना परामर्श के कार्य करने का इरादा रखता है, बल्कि यह कदम परमाणु अप्रसार व्यवस्था के ताबूत में आख़िरी कील भी साबित हो सकता है।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- June 23, 2025 | 10:43 PM IST

गत सप्ताहांत अमेरिकी वायु सेना के बी-2 स्टेल्थ बम वर्षक विमानों ने ईरान के उन तीन ठिकानों पर हमले किए जो परमाणु हथियार कार्यक्रम से संबंधित हैं। फोर्दो, नतांज और इस्फहान नामक इन शहरों में ये परमाणु ठिकाने जमीन के बहुत नीचे स्थित हैं और इसलिए अधिकांश हमलों से सुरक्षित भी हैं। गत सप्ताह जब इजरायल ने ईरान के ठिकानों पर हमले शुरू किए तो यह माना जा रहा था कि जमीन के भीतर दबी ये परमाणु इकाइयां सुरक्षित हैं। केवल अमेरिकी बंकर बस्टर बम (जीबीयू-57) ही 60 मीटर की गहराई पर स्थित इन ठिकानों को नुकसान पहुंचाने में सक्षम थे।

इस बात की काफी अटकलें थीं कि क्या अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प इजरायल के लगातार अनुरोधों पर आगे बढ़ेंगे और वह करने की कोशिश करेंगे जो उसके हवाई हमले नहीं कर सके। उन्होंने अपने चुनावी वादे में कहा था कि वह अमेरिका को किसी नई जंग में नहीं शामिल करेंगे लेकिन उन्होंने ईरान पर बमबारी को लेकर भी सकारात्मक रुख दर्शाते हुए कहा है कि अमेरिका लंबे समय से ईरान को लेकर नरमी बरत रहा है। उनका यह बयान खासतौर पर परमाणु प्रतिबंध समझौते को लेकर रहा जिसे उनके पूर्ववर्ती राष्ट्रपति बराक ओबामा ने आगे बढ़ाया था।

हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि इन हमलों से ईरान के परमाणु कार्यक्रम को एक दशक पीछे धकेलने जैसा वांछित परिणाम हासिल हुआ है अथवा नहीं। संव​र्धित यूरेनियम की जिस छोटी सी मात्रा के लिए तथा और अधिक यूरेनियम संवर्धन की संभावना के चलते ये हमले किए थे, संभव है कि उसे पहले ही किसी नए ठिकाने पर पहुंचाया जा चुका हो, जो हमले से दूर हो। चाहे जो भी हो अगर ईरान की क्षमताओं को नियंत्रित करना प्राथमिकता थी तो भी ऐसे हमले को शायद ही जरूरी माना जा सकता हो। जंगी परमाणु ह​थियार के तत्व तैयार करना एक बात है और उसे इस तरह तैयार करना कि उसे मिसाइल के जरिये हमले में इस्तेमाल किया जा सके एकदम दूसरी बात है।

इजरायल सार्वजनिक और निजी रूप से लंबे समय से यह कहता आ रहा है कि ईरान कुछ ही महीने में अपना परमाणु कार्यक्रम पूरा कर सकता है और इसे गंभीरता से लेने की जरूरत है। इस मौके पर अमेरिका एक बेलगाम महाशक्ति की तरह व्यवहार कर रहा है। दुनिया के बाकी देश इसी निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं कि वह अपनी शक्ति का उपयोग उन देशों पर हमले करने के लिए कर रहा है जिनके अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करने का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है।

ईरान के साथ निरंतर संघर्ष से कोई हित पूरा नहीं होता सिवाय इसके कि इजरायल के मौजूदा सत्ता प्रतिष्ठान को बनाए रखा जाए। वह सरकार जो फिलिस्तीनी नागरिकों पर ऐसे हमलों में शामिल है जिन्होंने दुनिया को झकझोर दिया है। इससे न तो वैश्विक सुरक्षा सुनिश्चित हो रही है और न ही अमेरिकी राष्ट्रीय हित पूरे हो रहे हैं।

निश्चित तौर पर यह वैश्विक सुरक्षा के लिए एक बड़ा झटका है। अमेरिका ने दिखाया है कि वह पूरी तरह अनियंत्रित व्यवहार कर सकता है। यहां तक कि वह यूरोप के करीबी सहयोगियों से मशविरा किए बिना भी कदम उठा सकता है। यह परमाणु अप्रसार के ताबूत में आखिरी कील भी साबित हो सकती है। जिन देशों के पास परमाणु हथियार नहीं हैं मसलन यूक्रेन, ईरान आदि, उनके अस्तित्व को ही खतरा उत्पन्न हो गया है जबकि उत्तर कोरिया और इजरायल जैसे परमाणु हथियार संपन्न देश पूरी तरह बेलगाम हैं।

इससे विभिन्न देश यही निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि उन्हें भी परमाणु हथियार संपन्न देशों के हमलों से दीर्घकालिक सुरक्षा के लिए परमाणु कार्यक्रम चलाने की जरूरत है। जरूरी नहीं कि परमाणु हथियार बनाने वाले नए देश भी परमाणु हथियारों को लेकर भारत की तरह जवाबदेह हों। दूसरे शब्दों में कहें तो राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने एक निर्णय से इस आशंका को जन्म दे दिया है कि ईरान दोगुने जोश से परमाणु हथियार बनाने में लग सकता है और तमाम अन्य देश उसका अनुसरण कर सकते हैं।

First Published : June 23, 2025 | 10:37 PM IST