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पारदर्शिता जरूरी

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 14, 2022 | 6:33 PM IST

सार्वजनिक क्षेत्र की दिग्गज बीमा कंपनी जीवन बीमा निगम (एलआईसी) ने अपना मसौदा रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस (डीआरएचपी) दाखिल कर दिया है और इसके ब्योरे से कुछ दिलचस्प बातें पता चलती हैं। सरकार पूर्ण स्वामित्व वाले एलआईसी की पांच फीसदी हिस्सेदारी बेचना चाहती है, यानी 31.6 करोड़ से अधिक शेयरों की बिक्री की जाएगी। यह आकार इतना बड़ा है कि अकेले इस सार्वजनिक निर्गम की सफलता से ही बजट के संशोधित अनुमान का विनिवेश लक्ष्य चालू वर्ष में हासिल हो जाएगा। यह प्राप्ति सीधे सरकार के पास जाएगी और एक सूचीबद्ध संस्था के रूप में एलआईसी को और अधिक वित्तीय रिपोर्टिंग का पालन करना होगा। ऐसे में उसके बहीखाते और परिचालन निवेशकों के समक्ष अधिक पारदर्शी हो जाएंगे। एलआईसी का ‘अंत:स्थापित मूल्य’ (बीमाकर्ताओं के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला मानक) करीब 5.4 लाख करोड़ रुपये है और निजी बीमा कंपनियों के बाजार पूंजीकरण के हिसाब से एलआईसी का मूल्यांकन इसके 2.5 से 3.5 गुना तक हो सकता है। यदि निवेशकों ने रुचि ली तो इस हिस्सेदारी के बदले 65,000 करोड़ रुपये से 95,000 करोड़ रुपये तक की राशि जुटाई जा सकती है। 
 
आईपीओ से न केवल सरकार की वित्तीय स्थिति सुधारने में मदद मिलेगी बल्कि कुछ अन्य कारणों से भी यह सूचीबद्धता वांछनीय है। संस्थान के विशाल आकार और इसके निवेश का विस्तार देखते हुए एलआईसी भारतीय अर्थव्यवस्था के एक बड़े हिस्से की प्रतिनिधि है। एलआईसी के निवेश के प्रतिफल पर नजर डालने पर निवेशकों को अर्थव्यवस्था की सेहत का मोटा-मोटा अंदाजा मिल जाएगा। सैद्धांतिक तौर पर प्रबंधन को अल्पांश हिस्सेदारों के हितों पर भी ध्यान देना चाहिए यानी भविष्य में एलआईसी के फंड का इस्तेमाल करने के पहले अधिक सतर्कता बरतनी पड़ सकती है। परंतु व्यवहार में सरकार बहुलांश हिस्सेदार रहेगी और अन्य सरकारी कंपनियों के प्रबंधन के हिसाब से देखें तो अल्पांश हिस्सेदारों के हितों को लेकर ज्यादा संवेदनशीलता मुश्किल है। यकीनन यह सूचीबद्धता जोखिम वाले डीआरएचपी में है जहां प्रवर्तक प्रबंधन को प्रभावित कर सकता है।
 
हाल के वर्षों में एलआईसी को तगड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा है और 30 से अधिक निजी जीवन बीमा कंपनियों (उनमें से तीन सूचीबद्ध हैं) से उसका सीधा मुकाबला है। उसकी बाजार हिस्सेदारी पर असर पड़ा है और अब वह करीब 65 प्रतिशत है। नए एकत्रित प्रीमियम का रुझान बताता है कि ज्यादा आक्रामक निजी कंपनियों की बाजार हिस्सेदारी और बढ़ सकती है। अन्य जीवन बीमा कंपनियों की तरह बीते दो वर्षों में उसे भी मौत के कारण काफी भुगतान करना पड़ा है। बीमा कारोबार काफी जोखिम वाला है। कुल मिलाकर बीमाकर्ता एक दांव लगाता है। वह अग्रिम प्रीमियम लेता है और कुछ विपरीत घटित होने पर उसका कई गुना चुकाने का वादा करता है। संग्रहीत प्रीमियम अगर पैसे वापसी वाली योजना का हो तो उस पर बहुत कम ब्याज होता है जबकि टर्म प्लान में कोई ब्याज नहीं होता। इस राशि को दीर्घकालिक परियोजनाओं में निवेश किया जाता है जिन्हें बैंक परिसंपत्ति देनदारी की विसंगति के कारण हाथ नहीं लगा सकते। निवेश के अनुरूप ही बीमाकर्ता को प्रतिफल प्राप्त होता है।
 
बीमाकर्ता का मुनाफा इस बात पर निर्भर है कि प्रीमियम का निवेश कैसे किया जाता है। एलआईसी के पोर्टफोलियो निवेश का 24.8 फीसदी हिस्सा इक्विटी में निवेश किया जाता है जबकि 6.6 फीसदी दीर्घावधि की बुनियादी योजनाओं में। शेष रािश राज्य या केंद्र सरकार के डेट में जाती है। खेद की बात है कि एलआईसी की छवि सरकार को उबारने वाली संस्था की है। सरकारी उपक्रमों द्वारा हिस्सेदारी बेचने के अनेक अवसरों पर एलआईसी उनकी मदद को आगे आई है। जरूरी नहीं कि ये निवेश आकर्षक रहे हों। एक सूचीबद्ध कंपनी के रूप में निवेशक इस बात पर नजर रखेंगे कि पोर्टफोलियो का निवेश कैसे किया जाता है और एलआईसी दीर्घावधि में कैसा प्रतिफल हासिल करती है। यह पारदर्शिता बाजार के हित में होगी। 

First Published : February 14, 2022 | 11:01 PM IST