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स्वास्थ्य क्षेत्र पर सिकुड़ता खर्च

इसी महीने पेश केंद्रीय बजट में स्वास्थ्य समेत विभिन्न सामाजिक क्षेत्रों के लिए आवंटन देखकर यही लगता है कि इन क्षेत्रों को धन मिलने की संभावनाएं लगातार कम होती जा रही हैं।

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प्रीतम   
Last Updated- February 17, 2025 | 10:29 PM IST

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के 2025-26 के बजट भाषण में कृषि, सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उपक्रम (एमएसएमई), निवेश और निर्यात को वृद्धि के चार इंजन बताया गया। उन्होंने कहा कि इन चारों को कराधान, बिजली, शहरी विकास, खनन, वित्त और नियमन में सुधार का सहारा देकर समावेशी तथा विकसित भारत बनाया जा सकता है। किंतु सामाजिक क्षेत्र की इस बार भी अनदेखी हुई और कुल केंद्रीय व्यय में इसकी हिस्सेदारी 3.9 फीसदी ही रह गई, जो 2019-20 में 5.3 फीसदी थी। इस लेख में वित्त मंत्री द्वारा पेश किए गए सात बजटों में स्वास्थ्य के लिए आवंटित धन के नजरिये से जन स्वास्थ्य की अनदेखी को समझते हैं।

2025-26 के बजट में वित्त मंत्री ने जन स्वास्थ्य का जिक्र सात बार किया, जिसमें सुलभ, ऊंची गुणवत्ता वाली और किफायती स्वास्थ्य सेवा पर जोर दिया गया था। जो मुख्य कदम बताए गए उनमें सरकारी स्कूलों तथा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को ब्रॉडबैंड से जोड़ना, एआई से चलने वाले स्वास्थ्य उत्कृष्टता केंद्र तथा चिकित्सा शिक्षा मे 10,000 नई सीटें जोड़ना शामिल हैं। वास्तव में चिकित्सा शिक्षा में पांच साल के भीतर 75,000 सीटें जोड़ी जानी हैं।

उन्होंने 200 डे केयर कैंसर सेंटर खोलने, 1 करोड़ गिग (अस्थायी रोजगार वाले) कर्मचारियों को पीएम-जय के दायरे में लाने और चिकित्सा पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए निजी क्षेत्र के साथ मिलकर ‘हील इन इंडिया’ जैसे कार्यक्रम शुरू करने का प्रस्ताव भी रखा। इसके साथ ही 36 जीवनरक्षक औषधियों पर सीमा शुल्क में भी राहत की घोषणा की गई। इनके अलावा छह अन्य जीवनरक्षक औषधियों पर 5 फीसदी की रियायती दर से शुल्क लगाने तथा रोगी सहायता कार्यक्रमों का विस्तार करने की बात भी कही गई है।

बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए 1.19 लाख करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गई। इसमें आयुष, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय तथा वित्त मंत्रालय के लिए राशि शामिल है। ध्यान रहे कि स्वास्थ्य के लिए 15वें वित्त आयोग की अनुदान राशि वित्त मंत्रालय के जरिये आती है। आम बजट में अब केंद्रीय स्वास्थ्य बजट की 2.4 फीसदी हिस्सेदारी है, जो 2021-22 के बजट में 3.59 फीसदी थी। इस बार यह राशि अनुमानत सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की 0.33 फीसदी है, जो 2021-22 में 0.56 फीसदी थी। केंद्रीय स्वास्थ्य बजट में पिछले तीन सालों में नकारात्मक वृद्धि देखने को मिली। 2022-23 में यह 14 फीसदी, 2023-24 में 1 फीसदी और 2024-25 में 6 फीसदी थी। इसके अलावा 2022-23 में संशोधित बजट मूल आवंटन से 15 फीसदी और 2023-24 में 18 फीसदी कम था। किंतु 2025-26 का बजट 2024-25 की तुलना में 18 फीसदी का इजाफा दिखाता है। 2024-25 में संशोधित बजट आरंभिक बजट से तीन फीसदी अधिक था।

2025-26 के आम बजट पर बारीक नजर डालने से पता चलता है कि वित्त मंत्रालय 15वें वित्त आयोग के अनुदान की शेष राशि आवंटित कर रहा है क्योंकि आयोग का यह अंतिम वर्ष है। इसीलिए वित्त मंत्रालय से स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए आवंटन 154 फीसदी बढ़ गया है। आयुष मंत्रालय का बजट 8 फीसदी बढ़ा है और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय का बजट 10 फीसदी बढ़ गया है। इसी प्रकार 2024-25 के संशोधित बजट में वित्त मंत्रालय के जरिये आने वाला स्वास्थ्य बजट भी 70 फीसदी इसीलिए बढ़ा है क्योंकि 15वें वित्त आयोग का अनुदान बांटा जाना था।
तीन साल की गिरावट के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य बजट में इजाफा स्वागत योग्य है लेकिन 15वें वित्त आयोग के अंतिम वर्ष में स्वास्थ्य अनुदान जारी करने की हड़बड़ी ने यह इजाफा कराया है। यह रकम स्थानीय निकायों के लिए है और इसके लिए सरकार के हरेक स्तर पर जबरदस्त तालमेल होना चाहिए। किंतु स्थानीय स्तर पर क्षमता कम होने के कारण इसका कारगर तरीके से इस्तेमाल नहीं हो पाता है। 2021-22 और 2023-24 के बीच आवंटित राशि का आधा हिस्सा ही खर्च हो सका।

भारत में जन स्वास्थ्य प्राथमिक रूप से राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है। लेकिन आगामी वित्त वर्ष के लिए इस क्षेत्र की राह तय करने में केंद्रीय स्वास्थ्य बजट की अहम भूमिका होती है। इसीलिए देश भर के स्वास्थ्य अर्थशास्त्रियों की नजर इस पर रहती है।

भारत ने आने वाले सालों के लिए कई लक्ष्य तय किए हैं। 11वीं पंचवर्षीय योजना में कहा गया था कि 2012 तक स्वास्थ्य पर सरकारी व्यय को 2012 तक बढ़ाकर जीडीपी के कम से कम 2 फीसदी पर लाना चाहिए। राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में इस व्यय को 2025 तक बढ़ाकर जीडीपी का 2.5 फीसदी करने की सिफारिश थी।
ताजा राष्ट्रीय स्वास्थ लेखा (2021-22) के अनुसार देश में स्वास्थ्य पर होने वाले कुल सरकारी व्यय में केंद्र की हिस्सेदारी केवल 41.8 फीसदी है। मोटा गणित कहता है कि 2025-26 में केंद्र और राज्य सरकारों का कुल व्यय अनुमानित जीडीपी का करीब 0.79 फीसदी रहेगा। यह आंकड़ा 11वीं पंचवर्षीय योजना और 2017 की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में निर्धारित लक्ष्यों से काफी कम है।

आयुष्मान भारत देश की प्रमुख सार्वभौम स्वास्थ्य योजना है, जिसमें दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना पीएम-जय शामिल है। 2025-26 के बजट में पीएम-जय के लिए 29 फीसदी अधिक धन दिया गया है, 2024-25 के संशोधित बजट से 4 फीसदी अधिक है। आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, 70 वर्ष से अधिक आयु के नागरिकों और गिग कर्मियों के साथ पीएम-जय योजना को देश के स्वास्थ्य बजट का 7 फीसदी हिस्सा मिलता है। किंतु 2025-26 में प्रति व्यक्ति केंद्रीय स्वास्थ्य बजट 844 रुपये है, जो महामारी से पहले वाले वर्ष से भी 8 फीसदी कम है। इससे 2030 तक सभी को स्वास्थ्य सेवा मिलने का लक्ष्य खतरे में दिखता है।

सरकारी खजाने में स्वास्थ्य सहित सामाजिक क्षेत्रों के लिए गुंजाइश लगातार कम हो रही है। इससे महामारी के दौरान मिले बड़े सबक भूलने का खतरा भी मंडरा रहा है। इससे पता चलता है कि सामाजिक बुनियादी ढांचे में निवेश नहीं हो रहा है। लंबी अवधि में इससे सामाजिक-आर्थिक प्रगति पर और खास तौर पर गरीबी, असमानता तथा बुनियादी सेवाओं की सुलभता पर असर पड़ सकता है।

बदलाव की उम्मीद के बाद भी केंद्रीय स्वास्थ्य बजट निरंतर कम हो रहा है, जिससे कई अपेक्षाएं अधूरी रह जाती हैं। फिर भी उम्मीद बनी हुई है कि सरकार एक दिन सामाजिक क्षेत्र को प्राथमिकता देगी और उसे विकास का इंजन मानेगी।

(लेखक एनआईपीएफपी, नई दिल्ली में फेलो-2 हैं)

First Published : February 17, 2025 | 10:23 PM IST