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यूक्रेन पर रूस का हमला और सात अनुत्तरित सवाल

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 8:01 PM IST

यदि 2008 के वित्तीय संकट को छोड़ दिया जाए तो यूक्रेन में रूस का आक्रमण शायद 9/11 के बाद की सबसे महत्त्वपूर्ण भूराजनीतिक घटना है। इसने वैश्विक राजनीति की दिशा के बारे में तमाम अनुमानों को खत्म कर दिया है। इस संकट से उपजे कुछ अनुत्तरित प्रश्न इस प्रकार हैं:
पहला, क्या रूस औपचारिक रूप से चीन के खेमे में है? यूक्रेन संकट पर भारत का भ्रामक रुख इस मान्यता पर भी आधारित है कि रूस को अलग-थलग नहीं छोड़ सकते क्योंकि इससे वह चीन की ओर और झुकेगा। भारत के नीतिगत निर्णय लेने वालों का मानना है कि चीन-रूस के रिश्तों में भविष्य में कई तनाव पैदा हो सकते हैं। मसलन मध्य एशिया में नेतृत्व, साइबेरिया पर दबाव, ईंधन मूल्य आदि। उन्हें संदेह है कि रूस शायद ही कभी कनिष्ठ भूमिका को स्वीकार करेगा। ऐसे में यह माना जा रहा है कि चीन को रोकने की दीर्घकालिक कोशिश में रूस साझेदार बन सकता है या कम से कम वह निरपेक्ष रह सकता है। हालांकि यह जंग रूस को पश्चिम के साथ टकराव की स्थिति में छोड़ सकती है और वह चीन पर अधिक निर्भर हो सकता है।
दूसरी बात, क्या वित्त का वैश्वीकरण समाप्त हो चुका है? व्यापार पर निर्भर वैश्वीकरण तो पहले ही समाप्त हो रहा था लेकिन विकसित और विकासशील दोनों तरह के देशों में व्यापार के लाभ को लेकर संदेह उन संदेहों से मेल नहीं खाते थे जो वित्तीय प्रवाह और निवेश को लेकर थे। इसके बावजूद रूस पर लगे असाधारण प्रतिबंध, जिनमें विदेशी मुद्रा भंडार तक केंद्रीय बैंक की पहुंच समाप्त करना शामिल है, ने एक वैकल्पिक वित्तीय पाइपलाइन के निर्माण की संभावना बढ़ा दी है। ऐसे में विभिन्न देश वित्तीय एकीकरण को एक रणनीतिक जोखिम के रूप में भी देख सकते हैं।
तीसरा, क्या चीन सशक्त हुआ है? वास्तविक चिंता यह है कि चीन ने पश्चिम की यूक्रेन की मदद की अनिच्छा को देखा है और उसने इसका यह अर्थ लगाया है कि ताइवान के बचाव के लिए शायद ही कोई आए। ऐसे में चीन के राष्ट्रवादियों, कूटनयिकों और नीति निर्माताओं में चीन को ताइवान को लेकर अपनी बात दोहराने का अवसर मिल गया है। अधिनायकवादी व्यवस्था में ऐसी आंतरिक दलील कभी न कभी जमीनी कदम में बदलती है। बीते दशक में हमने रूस को ऐसा करते देखा जहां यूक्रेन की राष्ट्रीयता को झूठा ठहराया गया और कहा गया कि वहां रूसी बोलने वालों का दमन हो रहा है। इन बातों के आधार पर निर्णयकर्ताओं ने सीधा हस्तक्षेप किया।
चौथा, क्या यूरोप का शांतिपूर्ण, एकीकृत, असैन्य महाद्वीप का स्वप्न समाप्त हो गया है? यूरोपीय संघ की सबसे बड़ी उपलब्धि पूर्वी विस्तार की है जिस पर अब हमला हो रहा है। यूरोप के देश युद्ध रोकने में अक्षम नजर आ रहे हैं और उनकी सीमाओं पर शरणार्थी संकट उत्पन्न हो गया है। उस धारणा की भी हवा निकल गई है कि आर्थिक परस्पर निर्भरता (मसलन रूस और जर्मनी के बीच) तगड़े सैन्य कदमों को रोक सकती है। यूरोप के देशों को कम से कम एक दशक तक रक्षा और हथियारों पर व्यय बढ़ाना होगा। यह तय नहीं है कि इसका अंत कैसे होगा? यूरोपीय संघ की एकीकृत सेना से, मौजूदा यूरोपीय सेनाओं के बीच तालमेल से या नाटो में यूरोपीय देशों के बढ़े हुए वजन से। यह तय है कि अगर फ्रांस और जर्मनी को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा है क्योंकि उन्होंने रूस को खुश किया जबकि पुराने सोवियत देशों तथा पोलैंड आदि मजबूत हुए जिन्होंने रूस की महत्त्वाकांक्षाओं के बारे में बहुत पहले से चेतावनी दी थी।
पांचवां, क्या भारत का दो दशक पुराना पश्चिम की ओर झुकाव समाप्त हो गया है? पिछले कुछ सप्ताह में भारत की प्रतिक्रिया चकित करने वाली है। हम निरपेक्षता और शांति के आह्वान के आधिकारिक रुख की बात नहीं कर रहे हैं बल्कि हम बात कर रहे हैं सरकार से संबद्ध संवाददाताओं और सत्ताधारी दल के प्रचारकों की जिन्होंने अपना ध्यान पश्चिम के रूस को लेकर कथित भय और पाखंड पर केंद्रित रखा है।  यह शीर्ष से दिए गए किसी आदेश की वजह से था या घटनाओं को लेकर स्वत:स्फूर्त प्रतिक्रिया यह प्रासंगिक नहीं है। प्रासंगिक है दशकों से किए जा रहे उन दावों का खोखलापन जिनमें कहा गया कि भारत में अन्य उदार लोकतांत्रिक देशों के साथ जुड़ाव के लिए जन समर्थन है। यदि शीतयुद्ध की वापसी हो चुकी है तो गुटनिरपेक्षता की भी।
छठा, क्या इससे जलवायु परिवर्तन को लेकर सक्रियता बढ़ेगी या उसमें देरी होगी? रूस यूरोप की गैस खरीद पर निर्भर है। उसके बलबूते ही वह यूक्रेन में युद्ध जारी रख पा रहा है। इसके दोनों तरह के असर हो सकते हैं। इससे पेट्रोल और गैस के विकल्प को भी गति मिल सकती है या फिर देश इस नतीजे पर भी पहुंच सकते हैं कि उन्हें ऊर्जा के क्षेत्र में संप्रभुता की जरूरत है जिसका इकलौता रास्ता यही है कि दुनिया भर में स्थानीय स्तर पर कोयले के भंडारों का खनन किया जाए।
आखिर में सातवां प्रश्न, क्या रूस अब भी वैश्विक शक्ति है? एक ऐसा देश जिसके पास दुनिया को सैकड़ों बार उड़ा देने की क्षमता हो, वह एक छोटे और कमजोर पड़ोसी देश को पराजित नहीं कर पाया जबकि उसने अपने मनचाहे समय पर उस पर हमला किया। यह आधुनिक सैन्य इतिहास की असाधारण घटना है। आक्रमण का मकसद था रूस को वैश्विक मंच पर उसकी उचित जगह दिलाना लेकिन विश्व शायद इसका उलट संदेश ग्रहण कर रहा है। वह यह संदेश ले रहा है कि लंबे समय तक वैश्विक शक्ति रहा एक देश अब उस तवज्जो का अधिकारी नहीं है जो उसे पांच सदियों से मिलती रही है।

First Published : April 11, 2022 | 10:55 PM IST