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रूस अब पहले जैसी महाशक्ति नहीं

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 1:52 PM IST

कुछ हफ्ते पहले आमतौर पर यह मान लिया गया था कि यूक्रेन पर रूस का आक्रमण गतिरोध में बदल जाएगा। कीव के युद्ध में हारने के बाद रूस की सेना को उत्तर पश्चिम यूक्रेन से पीछे हटना पड़ा था। रूस ने लुहान्स्क और दोनेत्स्क इलाकों को अपने कब्जे में लाने का प्रयास किया। इससे दक्षिण पूर्व में लड़ाई तेज हो गई।
लेकिन लंबी सीमा के कारण दोनों सेनाओं की मोर्चेबंदी की उम्मीद थी। कुछ लोगों ने इस लड़ाई को ‘फ्रोजन क​न्फ्लिक्ट्स’  तक कहा। ऐसी स्थिति में अग्रिम मोर्चे पर सेना आगे नहीं बढ़ पाती है लेकिन दोनों देशों में घरेलू स्तर पर सामान्य कामकाज होता रहता है। कभी-कभी दोनों पक्षों में जोरदार ढंग से युद्ध भी होता है लेकिन सैनिक या राजनीतिक रूप से कोई हल नहीं निकल पाता है। ऐसी स्थिति आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच युद्ध में हो गई थी।

यूक्रेन की सेना उत्तरी राज्य खारकीव और दक्षिणी राज्य खेरसॉन के महत्त्वपूर्ण इलाकों में तेजी से आगे बढ़ी। यूक्रेन की इस चौंकाने वाली सैन्य कार्रवाई से यह धारणा खत्म हो गई कि यूक्रेन इस संघर्ष को यथा स्थिति (फ्रोजन ऑफ क​न्फ्लिक्ट्स) में नहीं रहने देगा।
लिहाजा रूस के सैन्य संस्थानों को तीसरी बार अपमान झेलना पड़ा। पहला, युद्ध से पहले यूक्रेन का कम आंकना और शुरुआती हमले के दौरान रूस की सेना का रणनीतिक रूप से खराब प्रदर्शन। इसके बाद रूस की सेना ने उत्तर पश्चिम की ओर बढ़ना शुरू किया लेकिन इस क्षेत्र में भी रूसी सेना सही ढंग से लड़ नहीं पाई थी।
लिहाजा रूस की सेना को आगे बढ़ने से रोकने पर किरकिरी झेलनी पड़ी। इसके बाद रूस को मजबूरन इस क्षेत्र में लड़ रही सेना की  ‘आंशिक लामबंदी’ करनी पड़ी। हालांकि यह स्पष्ट हो चुका था कि रूस जल्दी खत्म होने वाला विजयी युद्ध शुरू करना चाहता था जिससे उसकी बड़ी जनसंख्या पर खासा प्रभाव नहीं पड़े।
सबसे खराब यह रहा कि आंशिक लामंबदी के तहत 3,00,000 अतिरिक्त लोगों को जुटाया गया। दिखने से ही लगा रहा था कि इसे कायदे से नहीं किया गया। सैन्य भर्ती की घोषणा के बाद सेना में शामिल किए जाने वाले उम्र के कई पुरुष रूस छोड़कर भाग गए। सेना में शामिल किए गए कई नवयुवकों को बिना सैन्य प्रशिक्षण या फिर से बिना सैन्य प्रशिक्षण के लड़ाई के अग्रिम मोर्चे पर भेज दिया गया। लोगों को बेहद गलत तरीके से सेना में शामिल किया गया।
सेना में युवाओं को शामिल किए जाने के कारण ग्रामीण इलाके के गांवों और कारखानों के सभी युवाओं को शामिल किया गया। आरोप है कि रूस के महान बहुसंख्यकों की अपेक्षा अल्पसंख्यक समुदाय के युवाओं को सेना की भर्ती के लिए खासतौर पर चुना गया।
सेना की नियमामवली के मुताबिक इन भर्तियों से सेना में युवकों को सामान्य तरीके से पुन: प्रशिक्षित भी नहीं किया जा रहा। और न ही इन युवकों को रिजर्व टुकड़ी में भेजा गया और न ही अपे​क्षित काम दिया जा रहा है। हाल यह है कि सेना की वर्दियों की भी आपूर्ति भी पूरी नहीं हो पाई। रूस के एक नेता ने ट्वीट किया कि रहस्यपूर्ण तरीके से गोदाम से ‘सर्दियों की 15 लाख वर्दियां’ गायब हो गई हैं।
ऐसे में आशंका यह है कि यह वर्दियां केवल कागजों पर ही अस्तित्व में थीं और इसका पैसा कुलीन वर्ग की पालनौकाओं  पर खर्च हो गया। यह विडंबना है कि रूस के सैनिकों को बेहद बर्फीली सर्दियों में उपयुक्त वर्दी के बिना ही अपने कामों को अंजाम देना होगा। हम लोगों ने कितनी बार मॉस्को में पड़ने वाली बर्फीली ठंड के बारे में सुना है।
रूस के हथियार भी पहले की तरह बहुत अच्छे नहीं हैं। रूस की वायुसेना रहस्यमय ढंग से गायब है और उसकी सैनिक टुकड़ी की कार्रवाई समझ से परे है। इस युद्ध की सबसे बड़ी बात यह है कि रूस को लड़ाई में वायुसेना की श्रेष्ठता हासिल नहीं हो पाई है जबकि कागजों पर यूक्रेन रूस को रोकने में सक्षम ही नहीं है।
रूस के टैंक का विशेषतौर पर उत्तरी क्षेत्र में अपनी क्षमता के अनुकूल प्रदर्शन नहीं रहा है। रूस ने आधुनिकतम व नवीनतम तकनीक से पांचवीं श्रेणी के एसयू-57 और टी 14  अरमाता टैंक विकसित किए हैं। ये टैंक लड़ाई में इस्तेमाल किए जाने के लिए स्पष्ट रूप से बहुत महंगे, बेहद छोटे, बिल्कुल नए और इतनी कम संख्या में हैं कि इन्हें खतरे में नहीं डाला जा सकता है। ऐसा नहीं है कि एक उत्प्रेरित और कुशल लड़ाकू बल रूस के हथियारों का इस्तेमाल नहीं कर सकती है।
हमें इसके बारे में जानकारी इसलिए है क्योंकि वॉल स्ट्रीट जर्नल ने इस हफ्ते इस बारे में एक रिपोर्ट छापी है। यूक्रेन को हथियारों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता रूस है। यूक्रेन ने रूस के टैंक जब्त कर लिए हैं और यूक्रेन ने रूस के 421 टैंकों में थोड़ा बहुत बदलाव करके इनका इस्तेमाल किया है। हालांकि यूक्रेन को अब तक पश्चिम से 320 टैंक मिल पाए हैं।
यूक्रेन के पास 192 बख्तरबंद लड़ाकू वाहन हैं और इन पर यूक्रेन ने ‘जेड’ की आकृति बना दी है। इसमें से केवल 40 बख्तरबंद लड़ाकू वाहन उसे पश्चिम से मिले हैं और बाकी के वाहन उसने रूस से ही हथियाए हैं। इन हथियारों की बदौलत ही यूक्रेन की सेना को हाल में बढ़त हासिल हुई है। लिहाजा यह स्पष्ट है कि हथियारों की गुणवत्ता व उसकी विशिष्टताओं में कोई अंतर नहीं है लेकिन अंतर संगठन और लोगों को प्रेरित करने में है।
लिहाजा तथ्य स्पष्ट रूप से कुछ उजागर कर रहे हैं लेकिन इन्हें स्वीकार करना आसान नहीं है। हम लोगों में से कई लोगों ने यह ताउम्र सोचा है कि रूस एक महाशक्ति है। भले ही रूस आर्थिक और राजनीतिक रूप से मजबूत नहीं हो लेकिन वह सैनिक रूप से महाशक्ति है – यह हमारे विश्लेषण और दिलो-दिमाग को प्रभावित करता है।
हम फौरन सोच सकते हैं कि कैसे रूस को युद्ध रोकने के लिए कारण दिए जा सकते हैं और उसे मेज पर बैठकर बात करने के लिए तैयार किया जा सकता है। छोटे देश ने रूस की सैनिक रूप से चुनौती दी है। अंत में रूसी परिसंघ के आकार की तुलना में एक तिहाई छोटा यूक्रेन है। यूक्रेन पूर्व महाशक्ति वाले देश की लाल सेना में अपने अनुपात की तुलना में कहीं अधिक सैनिक व अधिकारी मुहैया कराता था।
अंत में कहें तो यह हमारे दादा-परदादा के जमाने का रूस नहीं है। यह वह देश नहीं है जिसके निवासियों ने बेहद मुश्किलों में जीवनयापन किया था और उनके पास विकल्प सीमित थे। रूस के पास ऐसे सीमित विकल्प वाले युवाओं का बहुत बड़ा समूह था।
इतिहास के पन्ने पलटें तो रूस के इन युवाओं ने स्वीडन, फ्रांस और जर्मनी को कड़ी टक्कर दी थी। रूस के लोगों ने नेपोलियन की हर बर्बरता को सहा था और उसके पास लड़ने के लिए युवाओं का सूमह था।
द्वितीय विश्व युद्ध में जर्मनी के विध्वंसक व आक्रामक सैन्य टुकड़ी पैनजर से लड़ने के लिए रूस ने निहत्थे युवाओं को भेजा था और उन्होंने जर्मनी को हरा दिया था। अगर रूस इस युद्ध को जीत भी जाता है तो उसे सम्मान नहीं मिलेगा।

First Published : October 11, 2022 | 9:12 PM IST