भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने नीतिगत दरों में बदलाव नहीं करने का एकदम उचित निर्णय लिया है। कोविड-19 महामारी के संक्रमण के मामलों में निरंतर बढ़ोतरी और देश के विभिन्न हिस्सों में लॉकडाउन लगाए जाने के कारण आर्थिक स्थितियों में सुधार की प्रक्रिया काफी धीमी है। इस बीच मुद्रास्फीति संबंधी पूर्वानुमान भी अनिश्चित हैं। समिति ने कहा है कि जरूरी सब्जियों के मामले में कीमतों पर दबाव कम नहीं हो रहा है और यह आपूर्ति के सामान्य होने पर निर्भर करता है। प्रोटीन आधारित खाद्य उत्पादों के संभावित दबाव के अलावा गैर खाद्य श्रेणियों को लेकर पूर्वानुमान अस्पष्ट हैं। पेट्रोलियम उत्पादों पर उच्च कर के कारण उपभोक्ताओं के लिए उनकी कीमत बढ़ी है और इसका परिणाम व्यापक अर्थव्यवस्था की लागत में इजाफे के रूप में देखने को मिल सकता है। मुद्रास्फीति आधारित खुदरा मूल्य सूचकांक जून में 6 फीसदी से ऊपर था जबकि मूल मुद्रास्फीति 5.4 फीसदी थी।
आपूर्ति शृंखला के निरंतर बाधित होने के कारण भी मुद्रास्फीति पर असर होगा। केंद्रीय बैंक ने अनुमान जताया है कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में मुद्रास्फीति ऊंची रहेगी और वर्ष की दूसरी छमाही में उसमें कमी आएगी। ऐसा आंशिक तौर पर अनुकूल आधार के कारण होगा। मुद्रास्फीति के मोर्चे पर अनिश्चितता पर करीबी नजर रखने की आवश्यकता है लेकिन इसके अलावा केंद्रीय बैंक को प्रतीक्षा करनी चाहिए और यह देखना चाहिए कि पुराने हस्तक्षेपों ने अर्थव्यवस्था को किस तरह प्रभावित किया है। ब्याज दरों में कटौती के अलावा रिजर्व बैंक ने व्यवस्था में काफी नकदी डाली है। इससे बॉन्ड बाजार और बैंकों की ऋण दर दोनों में पारेषण बेहतर हुआ है। ऐसे में अगर अभी दरों में एक और बार कटौती की जाती तो भी उसका कोई खास असर नहीं होता। रिजर्व बैंक द्वारा मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप के कारण नकदी की स्थिति में सुधार जारी रह सकता है। आयात में गिरावट के कारण निकट भविष्य में महत्त्वपूर्ण भुगतान संतुलन की स्थिति बन सकती है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार चालू वित्त वर्ष में अब तक 56.8 अरब डॉलर तक बढ़ा है। घरेलू नकदी में इजाफा मूल्य और स्थिरता दोनों के लिए खतरा पैदा कर सकता है। इतना ही नहीं, चूंकि आर्थिक कठिनाइयां जल्द समाप्त होती नहीं दिखतीं इसलिए केंद्रीय बैंक का कुछ नीतिगत हथियार बचाकर रखना भी अहम है। नियामकीय मोर्चे पर आरबीआई ने प्रूडेंशियल फ्रेमवर्क के तहत अर्हता प्राप्त कर्जदाताओं को एक निस्तारण योजना मुहैया कराने की गुंजाइश बनाई है। हालांकि ऐसा कुछ तयशुदा शर्तों के अधीन ही किया जा सकेगा। कर्जदाता ऐसे जोखिम को मानक परिसंपत्ति के रूप में वर्गीकृत कर सकेंगे।
आरबीआई ने वरिष्ठ बैंकर के वी कामत के नेतृत्व में एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का निर्णय भी लिया है। यह समिति निस्तारण योजनाओं के लिए वित्तीय और क्षेत्रवार मानकों के सुझाव देगी। यह सही दिशा में उठाया गया कदम है। महामारी ने ऐसे कर्जदारों को भी प्रभावित किया है जिनका ऋण चुकाने के मामले में अच्छा प्रदर्शन रहा है। उन्हें राहत की आवश्यकता है। नियामक जहां अतीत की गलतियां दोहराने से बचने की सावधानी बरतता दिख रहा है वहीं यह सुनिश्चित करना भी अहम होगा कि इस सुविधा का दुरुपयोग न होने पाए। वैसे भी हालात से निपटने की यह कोशिश, सभी क्षेत्रों के लिए ऋण अदायगी स्थगन में इजाफा करने से कहीं अधिक बेहतर है। बहरहाल, व्यापक स्तर पर देखा जाए तो मुद्रास्फीति और वृद्धि के नतीजों के उलट कंपनियों के बही खाते कितनी जल्दी दुरुस्त होते हैं यह इस बात पर निर्भर करेगा कि महामारी को कितनी जल्दी नियंत्रित किया जाता है। अगर संक्रमितों की तादाद यूं ही बढ़ती रही तो नीतिगत हस्तक्षेप की गुंजाइश भी सीमित रह जाएगी और वित्तीय स्थिरता को बड़ा खतरा उत्पन्न हो जाएगा।