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कोरम का प्रश्न

Published by
बीएस संपादकीय
Last Updated- February 12, 2023 | 11:27 PM IST

यह सच है कि विश्व बैंक की कारोबारी सुगमता रैंकिंग को प्रक्रियागत अनियमितताओं के कारण बंद कर दिया गया है लेकिन सरकार ने कहा है कि वह इस दिशा में अपना ध्यान निरंतर केंद्रित रखेगी ताकि देश में निवेश का माहौल तैयार किया जा सके। परंतु हाल ही में एक ऐसा कदम उठाया गया जो इस जाहिर इरादे के प्रतिकूल ठहरता है।

दरअसल भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) ने विलय एवं अ​धिग्रहण तथा निवेश से संबं​धित छह प्रस्तावों को ‘अनिवार्यता के सिद्धांत’ के तहत मंजूरी दे दी जबकि 25 अक्टूबर, 2022 को सीसीआई के चेयरपर्सन अशोक कुमार गुप्ता के सेवानिवृत्त होने के बाद वहां तीन सदस्यों का जरूरी कोरम भी मौजूद नहीं था।

प्रतिस्पर्धा अ​धिनियम में कहा गया है कि सौदों को मंजूरी देने के लिए कम से कम तीन सदस्य होने चाहिए लेकिन कानून मंत्रालय की ओर से सीसीआई के प्रशासनिक मंत्रालय, कंपनी मामलों के मंत्रालय को हरी झंडी मिलने के बाद सीसीआई ने दो सदस्यों के साथ ही सौदे को मंजूरी दे दी।

नि​श्चित तौर पर सीसीआई के कदम कानून का उल्लंघन नहीं है क्योंकि प्रतिस्पर्धा आयोग की धारा 15 में कहा गया है कि आयोग का कोई भी कदम या प्रक्रिया केवल किसी रि​क्ति या आयोग के संविधान में किसी खामी की वजह से, चेयरपर्सन या सदस्य के रूप में काम कर रहे किसी व्य​क्ति की​ नियु​क्ति में खामी की वजह से अथवा आयोग की प्रक्रियाओं में अनियमितता (जो संबं​धित मामले को प्रभावित न कर रही हों) के कारण अवैध नहीं होनी चाहिए।

24 जनवरी को कंपनी मामलों के मंत्रालय ने एक आ​धिकारिक अ​धिसूचना जारी करके कार्यवाहक चेयरपर्सन संगीता वर्मा का कार्यकाल अगली सूचना तक बढ़ा दिया, हालांकि वर्मा अक्टूबर के अंत में पूर्णकालिक चेयरमैन के पद से हटने के बाद से ही इस भूमिका में थीं। हालांकि पांच माह के अंतराल के बाद इस स्वीकृति को लेकर संबं​धित कंपनियों ने राहत का प्रदर्शन किया लेकिन तीन ऐसी बातें हैं जिनका जिक्र किया जाना आवश्यक है। पहली बात है नए चेयरपर्सन की नियु​क्ति में देरी।

पिछले चेयरपर्सन ने भी अचानक पद नहीं छोड़ा था, उनकी सेवानिवृ​त्ति की तारीख तो नवंबर 2018 में उनकी नियु​क्ति के साथ ही पता होगी। चूंकि उनकी सेवानिवृ​त्ति के समय 10,000 करोड़ रुपये मूल्य के कई सौदे लंबित थे इसलिए कारोबारों के लिए अनुकूल माहौल बनाने के लिए प्रयासरत सरकार को उनकी सेवानिवृ​त्ति के पहले ही उनका उत्तरा​धिकारी चुन लेना चाहिए था।

दूसरा यह कि अगर सरकार गुप्ता की सेवानिवृ​त्ति के समय तक उपयुक्त उत्तरा​धिकारी नहीं तलाश कर सकी (यह अपने आप में अस्वाभाविक है क्योंकि उसके पास इस काम के लिए चार वर्ष से अ​धिक समय था) तो कोरम के मसले पर वि​धि मंत्रालय को संद​र्भित किए जाने से कंपनियों तथा सौदे के पूरा होने की प्रतीक्षा कर रहे निवेशकों की चिंता भी कम हुई होगी। तीसरा यह कि क्या दो सदस्यीय आयोग इतना क्षमता संपन्न रहा होगा कि उसने इतने सारे सौदों को लेकर जरूरी जांच परख कर ली हो।

व्यापक तस्वीर की बात करें तो सौदों को मंजूरी देने में चार महीने की देरी असामान्य नहीं है क्योंकि सीसीआई औसतन एक सौदे को निपटाने में औसतन 210 दिन का समय लेता है। जानकारी के मुताबिक अब एक संसदीय पैनल का गठन किया जा रहा है ताकि वह अ​धिनियम में बदलाव करके सीसीआई को सक्षम बना सके कि वह विलय एवं अ​धिग्रहण के सौदों को, नियामकीय संस्था को लेनदेन की सूचना मिलने के 20 दिन के भीतर मंजूरी प्रदान कर दे, बशर्ते कि उसमें किसी तरह की अनियमितता न पाई गई हो। ऐसे बदलावों की शुरुआत के लिए जरूरी है कि आयोग के पास हमेशा पर्याप्त कोरम मौजूद हो।

First Published : February 12, 2023 | 11:27 PM IST