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पीछा नहीं छोड़ रहा हिंडनबर्ग हादसा

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देवांशु दत्ता
- 30/01/2023 10:26 PM IST

पॉल वॉन हिंडनबर्ग जर्मनी के फील्ड मार्शल थे और बाद में वह जर्मनी के गणराज्य के राष्ट्रपति भी नियुक्त हुए थे। एयरशिप विकास के पुरोधा रहे जर्मनी के काउंट फर्डिनैंड वॉन जेपलीन ने अपने एक सर्वाधिक आकर्षक एयरशिप का नाम हिंडनबर्ग के सम्मान में उनके नाम पर रख दिया था। यह जहाज अमेरिका के न्यू जर्सी में जब उतर रहा था तब 6 मई, 1937 को इसमें आग लग गई। इस जहाज में चालक दल एवं यात्री सहित कुल 97 लोग सवार थे जिनमें 35 की मौत हो गई।

यह पांचवां या छठा मौका था जब एयरशिप में आग लगने की दुर्घटना हुई थी। आग लगने की कई घटनाओं के कारण एयरशिप उद्योग ठप हो गया। इन सभी घटनाओं में आग लगने की मुख्य वजह हाइड्रोजन गैस थी। एयरशिप ऊपर उठने के लिए हाइड्रोजन गैस का इस्तेमाल करता था। हाइड्रोजन गैस के साथ एक खास बात यह होती है कि ऑक्सीजन के साथ संपर्क में आने पर यह एक बड़े विस्फोट का कारण बनती है।

इस वजह से हाइड्रोजन का भंडारण करना मुश्किल और खतरनाक होता है। हालांकि हाइड्रोजन की इसी खूबी की वजह से पूरे ईंधन और तथाकथित हाइड्रोजन उद्योग में भारी पैमाने पर निवेश हो रहा है। हाइड्रोजन ऑक्सीजन के संपर्क में आने पर विस्फोट को जन्म देती है मगर इस विस्फोट को नियंत्रित कर लिया जाए तो इस प्रक्रिया में प्राप्त ऊर्जा का इस्तेमाल किया जा सकता है।

अगर हरित ऊर्जा की तर्ज पर हाइड्रोजन प्राप्त किया जाता है तो शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य के करीब पहुंचा जा सकता है। हालांकि अभियांत्रिकी (इंजीनियरिंग) से जुड़े कई मसले सामने आ सकते हैं। हाइड्रोजन गैस तैयार करना आसान है और पानी में बिजली प्रभावित करने से काम पूरा हो जाता है। मगर इस प्रक्रिया में ऑक्सीजन गैस भी बनती है और इलेक्ट्रोलिसिस के वक्त कई तरह की समस्याएं पैदा हो सकती हैं।

औद्योगिक स्तर पर हाइड्रोजन का उत्पादन ज्यादातर मीथेन या प्राकृतिक गैस को कार्बन की मौजूदगी में तोड़ कर किया जाता है। प्राकृतिक गैस का इस्तेमाल कच्चे माल के रूप में करने पर इस प्रक्रिया में बनने वाली कार्बन डाइऑक्साइड गैस संग्रह करने के लिए इंजीनियर काम कर रहे हैं। कार्बन उत्सर्जन नियंत्रित रहने के कारण इस प्रक्रिया से प्राप्त हाइड्रोजन को ब्लू हाइड्रोजन कहा जाता है।

इंजीनियर हाइड्रोजन गैस के और बेहतर तरीके से भंडारण पर भी काम कर रहे हैं। हाइड्रोजन सबसे हल्का तत्त्व होता है और काफी कम तापमान पर यह द्रव में तब्दील होता है। इस वजह से उचित मात्रा में हाइड्रोजन का भंडारण और परिवहन करना मुश्किल हो जाता है। सुरक्षा संबंधी कारणों से ऐसा करना और मुश्किल हो जाता है। हरित हाइड्रोजन में तेजी से आ रहे निवेश पूरी व्यवस्था को ध्यान में रखकर किए जा रहे हैं।

भंडारण और हरित उत्पादन दोनों के लिए लगभग एक साथ सुरक्षित समाधान चाहिए। हाइड्रोजन का उत्पादन और भंडारण ऐसी समस्याएं हैं जिनका समाधान नहीं हुआ है और जोखिम भी बहुत हैं, मगर इस खंड में निवेशकों के लिए संभावित लाभ भी काफी हैं। अगर हाइड्रोजन के भंडारण और उत्पादन के एक साथ समाधान नहीं मिलते हैं तो हरित हाइड्रोजन के लक्ष्य तक पहुंचने का मार्ग सुलभ नहीं रह जाएगा। अगर सुरक्षा का ध्यान नहीं रखा जाएगा तो हर जगह हिंडनबर्ग जैसा विस्फोट होगा।

अदाणी एंटरप्राइजेज लिमिटेड (एईएल) अपने अनुवर्ती सार्वजनिक निर्गम (एफपीओ) से जुटाई गई रकम का आधा हिस्सा हरित हाइड्रोजन परियोजनाओं के लिए करेगी। एईएल ने एफपीओ से 20,000 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है। अदाणी समूह का कहना है कि 2030 तक वह 10 लाख टन हरित हाइड्रोजन क्षमता हासिल करना चाहता है। यह पूरी परियोजना अदाणी समूह स्वयं पूरा करेगा और किसी तीसरे पक्ष को इसमें शामिल नहीं करेगा। एफपीओ से प्राप्त रकम का इस्तेमाल सौर उपकरण, पवन चक्की और इलेक्ट्रोलाइजर के वित्त पोषण के लिए होगा मगर समूह को भंडारण से जुड़ा समाधान भी खोजना होगा।

रिलायंस समूह भी हरित हाइड्रोजन परियोजना में दिलचस्पी रखता है। उसे भी ऐसी ही समस्याओं का समाधान खोजना होगा। दोनों ही समूह तकनीकी मूल्य श्रृंखला पर बड़ा दांव लगा रहे हैं जहां उन्हें मौजूदा कमियों को दूर करना होगा। हाल में प्रतिभूति शोध के क्षेत्र में काम करने वाली एक संस्था हिंडनबर्ग रिसर्च ने लंबी रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में अदाणी समूह पर वित्तीय छेड़-छाड़ का आरोप लगाया गया है। अदाणी समूह की हाइड्रोजन परियोजनाओं में रुचि के बीच इस रिपोर्ट का आना किसी विडंबना से कम नहीं है। हिंडनबर्ग रिसर्च का नाम एयरशिप दुर्घटनाओं के बाद रखा गया है जो काफी असामान्य है।

हिंडनबर्ग रिसर्च के काम करने का तरीका भी असामान्य है। यह संस्था उन कंपनियों को निशाना बनाती है जो उसकी नजर में जरूरत से अधिक मूल्यांकन हासिल कर चुकी हैं। हिंडनबर्ग इन कंपनियों के शेयरों पर शॉर्ट पोजीशन लेती है। हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट प्रकाशित करती है और बताती है कि वह किसी शेयर की संभावनाओं को लेकर उत्साहित क्यों नहीं है। इन रिपोर्ट में अक्सर कंपनियों पर फर्जीवाड़ा करने या अनुचित व्यवहार में लिप्त रहने का आरोप लगाए जाते हैं।

अगर दूसरे निवेशक भी इस तर्क में आकर उस शेयर पर शॉर्ट पोजीशन लेते हैं तो शेयर की कीमत और गिर जाती है। शॉर्ट पोजीशन एक कारोबारी नीति होती है जिसमें कोई निवेशक शेयर उधार लेकर उसकी बिकवाली करता है और बाद में दाम कम होने पर पर उसे दोबारा खरीद कर मुनाफा कमाता है।

इस तरह की शॉर्ट सेलिंग गैर-कानूनी नहीं है। मार्क क्यूबन एक दूसरे ऐसे कारोबारी हैं जिन्होंने इस नीति का समर्थन किया है। हिंडनबर्ग कई मौकों पर सफलतापूर्वक ऐसा कर चुकी है। इलेक्ट्रिक कार निर्माता कंपनी निकोला का मामला सबसे अधिक चर्चित है। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद शेयर का बाजार मूल्य 90 प्रतिशत तक कम हो गया। इसके बाद फर्जीवाड़े मामले में दोषी पाए जाने के बाद कंपनी के मुख्य कार्याधिकारी को भी इस्तीफा देना पड़ा था।

चूंकि, अदाणी के शेयर विदेश में सूचीबद्ध नहीं हैं इसलिए अमेरिका की यह संस्था विदेश में अपने बॉन्ड में शॉर्ट सेलिंग कर रही है। एईएल का एफपीओ खुल चुका है। हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट में लगाए गए आरोप हरित हाइड्रोजन के क्षेत्र में निवेश को एक नया मोड़ दे रहे हैं।