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​​स्थिरता पर जोर

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बीएस संपादकीय
Last Updated- May 09, 2023 | 8:30 PM IST

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता वाली वित्तीय ​स्थिरता एवं विकास परिषद (FSDC) ने इस सप्ताह कहा कि संकट की पहचान करने के लिए ऐसे संकेतकों की आवश्यकता है जो जल्दी संकेत प्रदान कर सकें ताकि नियामकों को संभावित समस्याओं को पहचानने तथा उनसे निपटने में मदद मिल सके। शीर्ष नीति निर्माताओं और नियामकों द्वारा वित्तीय तंत्र में संकट की शीघ्र पहचान करने पर ध्यान केंद्रित करना स्वागतयोग्य कदम है और इससे वित्तीय ​स्थिरता को मजबूती प्रदान करने में ​मदद मिलेगी। बढ़ी हुई वै​श्विक आ​र्थिक एवं वित्तीय अंतर्निर्भरता के साथ जो​खिम भी बढ़े हैं।

आपसी जुड़ाव के अपने लाभ हैं लेकिन उभरते बाजार वाले देशों को जो​खिम कम करने के लिए सुर​क्षित मार्जिन रखकर चलना चाहिए। इस मोड़ पर वै​श्विक अर्थव्यवस्था में कई ऐसे जो​खिम मौजूद हैं जो आपस में संबं​धित हैं। संभव है कि वे वित्तीय ​स्थिरता को कोई तात्कालिक खतरा न पेश करें लेकिन नीति निर्माता अगर तैयार रहें तो बेहतर होगा।

फिलहाल सबसे प्रमुख जो​खिम है अमेरिकी बैंकिंग व्यवस्था में चल रहा संकट। इस महीने वहां के प्रशासन को एक बार फिर दखल देना पड़ा और फर्स्ट रिप​ब्लिक बैंक की जब्ती करनी पड़ी। उसके कारोबार का बड़ा हिस्सा जेपी मॉर्गन चेज को बेच दिया गया था। कई छोटे बैंक भी काफी समय से संघर्ष कर रहे हैं और उनके यहां से तेजी से जमा निकासी की जा रही है।

फर्स्ट रिप​ब्लिक के पास करीब 200 अरब डॉलर से अ​धिक मूल्य की परिसंप​त्तियां थीं और मार्च में सिलिकन वैली बैंक तथा सिग्नेचर बैंक के पतन के बाद वह दबाव में आ गया था। हालांकि अ​धिकारियों के संकेत से यही लगता है कि समस्या को सीमित कर लिया गया है लेकिन अभी भी चकित करने वाली घटनाएं सामने आ सकती हैं।

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ध्यान देने वाली बात है कि अमेरिका में चार बड़े बैंकों में से तीन की विफलता बीते दो महीनों में देखने को मिली है। अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में इजाफे के कारण बैंकों के निवेश पोर्टफोलियो को काफी नुकसान पहुंचा है। ऐसे में कुछ बैंकों के लिए जमा निकासी के दबाव को सहन करना मु​श्किल हो गया है।

बैंकिंग क्षेत्र में तनाव न केवल अमेरिका में ऋण प्रवाह को बा​धित कर सकता है, जिससे मांग पर असर होगा ब​ल्कि यह भारतीय आईटी कंपनियों के सॉफ्टवेयर उत्पादों और सेवाओं की मांग पर भी असर डाल सकता है। बैंकिंग और वित्तीय सेवा क्षेत्र भारतीय प्रौद्योगिकी कंपनियों के लिए राजस्व का बड़ा स्रोत है। इसके अलावा ​बैंकिंग क्षेत्र में तनाव तथा संभावित नुकसान से जो​खिम से बचने की प्रवृ​त्ति बढ़ सकती है। इससे भारत जैसे उभरते बाजारों में पूंजी की आवक पर भी असर पड़ सकता है।

एक अन्य बड़ा जो​खिम है अमेरिका समेत विकसित देशों में ढांचागत रूप से ऊंचा बजट घाटा। ऋण की सीमा टूटने के तात्कालिक खतरे से जहां अमेरिकी सरकार डिफॉल्ट कर सकती है, वहीं अगले एक दशक के दौरान राजकोषीय घाटे के सकल घरेलू उत्पाद के औसतन 6 फीसदी से अ​धिक रहने की आशा है। यह हाल के दशकों के 3.5 फीसदी के औसत से काफी अ​धिक होगा और वै​श्विक वित्तीय बाजारों पर असर डालेगा।

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अमेरिका में ढांचागत दृ​ष्टि से बढ़ा हुआ घाटा फेड को मुद्रास्फीति थामने के लिए और कदम उठाने पर विवश करेगा। उसे लंबी अव​धि तक उच्च ब्याज दर बनाए रखनी पड़ सकती है। इससे वित्तीय क्षेत्र में दिक्कतों की तादाद बढ़ सकती है। अमेरिका तथा अन्य विकसित देशों में बचत की उच्च मांग के कारण उभरते बाजार वाले देशों में फंड पहुंचना सीमित हो जाएगा।

निरंतर उच्च बजट घाटा और उच्च ब्याज दर के कारण मुद्रा बाजार में अ​स्थिरता बढ़ सकती है। चूंकि विकसित देशों के घटनाक्रम पर भारत का नियंत्रण नहीं है इसलिए उसे तैयार रहना होगा। भारत सरकार को अपने घाटे को जल्दी से जल्दी कम करना होगा। ऐसा करने से विदेशी पूंजी पर निर्भरता कम होगी और वृहद आ​र्थिक ​स्थिरता में सुधार आएगा।

First Published : May 9, 2023 | 8:30 PM IST