लेख

Editorial: रियो की हकीकत

जी20 रियो डी जनेरियो घोषणापत्र जिसका नेताओं ने मंगलवार को समर्थन किया उसमें दुनिया भर में मौजूद अधिकांश अहम मुद्दों का जिक्र किया गया है।

Published by
बीएस संपादकीय   
Last Updated- November 20, 2024 | 10:23 PM IST

जी20 रियो डी जनेरियो घोषणापत्र जिसका नेताओं ने मंगलवार को समर्थन किया उसमें दुनिया भर में मौजूद अधिकांश अहम मुद्दों का जिक्र किया गया है। ये मुद्दे हैं: युद्ध, जलवायु परिवर्तन, गरीबी और भूख, समता और वैश्विक संचालन आदि। इस दौरान मेजबान देश ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज इनासियो लूला दा सिल्वा जिन्हें लूला के नाम से भी जाना जाता है, वह यह दावा कर सकते हैं कि मसौदे को लेकर विभिन्न नेताओं में असहमति तथा अर्जेंटीना के मतभेद के बीच भी वह अपने एजेंडे को कामयाब बनाने में सफल रहे।

ऐसे में घोषणापत्र की भाषा दिखाती है कि जी20 में कई मुद्दों को लेकर समझौते की स्थिति है। परंतु इसका नतीजा यह हुआ कि जो प्रारूप सामने आया उसका दायरा सामान्य था और उसमें विशेषताओं की कमी रही। यद्यपि अंतिम समझौते ने लूला को वार्ता की अंतिम घोषणा पर बातचीत में विफल होने से बचा लिया लेकिन डॉनल्ड ट्रंप के दूसरी बार अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के पहले रियो घोषणापत्र में एजेंडे को सार्थक ढंग से आगे बढ़ाने के अवसर को गंवा दिया गया।

लूला को दो कामयाबियां मिलीं। पहली, वैश्विक अरबपतियों पर दो फीसदी कर के प्रस्ताव का उल्लेख। इस मुद्दे पर बातचीत इसलिए बाधित हुई थी कि अर्जेंटीना ने इसका काफी विरोध किया था। उनकी इससे भी बड़ी उपलब्धि थी भूख और गरीबी के खिलाफ वैश्विक गठजोड़ को आगे ले जाना। इसे समापन घोषणापत्र में भी स्थान मिला। अब तक 82 देशों ने योजना पर हस्ताक्षर किए हैं। परंतु रियो घोषणापत्र में अन्य अहम मुद्दों पर कदम उठाने में काफी देर हो चुकी है।

उदाहरण के लिए जलवायु परिवर्तन पर घोषणापत्र से अपेक्षा थी कि कॉप29 सम्मेलन (बाकू) में जलवायु वित्त को लेकर बातचीत में जो गतिरोध आया था उसमें कुछ प्रगति देखने को मिलेगी। गत वर्ष दिल्ली में जलवायु वित्त की राशि को ‘अरबों से बढ़ाकर खरबों’ में करने की बात को दोहराने के अलावा रियो में ऐसा कुछ नहीं बताया गया कि यह राशि कहां से आएगी।

इसके बजाय इसमें केवल यह कहा गया कि वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने और ऊर्जा किफायत में सुधार की दर को दोगुना किया जाएगा। घोषणा पत्र में दुबई में गत वर्ष आयोजित कॉप28 में विभिन्न देशों के बीच बनी प्रतिबद्धता लाभ नहीं लिया गया। वहां कहा गया था कि जीवाश्म ईंधन से दूरी बनाने की आवश्यकता है। इस बदलाव के लिए लक्ष्य तय करने या हाइड्रोकार्बन निवेश को सीमित करने की बात कही गई थी।

यूक्रेन-रूस और इजरायल-हमास की लड़ाई को लेकर अस्पष्ट बयान भी चिंतित करने वाले थे। पहले वक्तव्य में यूक्रेन की मुसीबतों की बात की गई और युद्ध के नकारात्मक असर के बारे में चर्चा की गई लेकिन इस दौरान रूस के हमले का कोई उल्लेख नहीं किया गया। हालांकि यूक्रेन के साझेदारों और रूस ने युद्ध की जवाबदेही को लेकर आरोप-प्रत्यारोप लगाए।

रूसी राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन वहां नामौजूद रहे क्योंकि उनके खिलाफ अंतरराष्ट्रीय आपराधिक अदालत का एक वारंट है और उनका प्रतिनिधित्व रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने किया। इजरायल-हमास के मामले में गाजा और लेबनान में ‘व्यापक युद्ध विराम’ की बात की गई और गाजा में मानवीय संकट तथा लेबनान में उकसावे का जिक्र किया गया। दो राज्यों वाले हल की बात को दोहराते हुए इस बात की अनदेखी की गई कि इजरायल ने अब पश्चिमी किनारे पर फिलिस्तीन की जमीन बहुत बड़े पैमाने पर कब्जा कर ली है।

दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के नेताओं की इस बैठक में अमेरिका में आगामी जनवरी में सत्ता परिवर्तन की बात मंडराती रही। ट्रंप के प्रचार अभियान के भाषण और कार्यकारी कार्यालय में नियुक्तियां तो यही इशारा कर रही हैं कि यह अब तक रियो घोषणापत्र के मूल मुद्दों के एकदम विपरीत है जिसमें जलवायु परिवर्तन और अति धनाढ्यों पर कर लगाना शामिल है।

पुतिन से उनकी निजी निकटता से यूक्रेन में छिड़े युद्ध को लेकर अमेरिका और यूरोपीय साझेदारों के बीच दूरी बढ़ सकती है। इजरायल के नेता बेंजामिन नेतन्याहू के साथ उनके करीबी रिश्ते भी फिलिस्तीन के लिए अच्छा संकेत नहीं हैं। इस लिहाज से देखें तो रियो घोषणापत्र की व्यापक प्रकृति भविष्य की भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं का प्रतिबिंब है।

First Published : November 20, 2024 | 10:23 PM IST