Editorial: निजी निवेश को मिले प्राथमिकता

भारत निवेश दर के मामले में भी औसत से ऊपर रहा है। आज, यह 29 से 30 फीसदी के बीच है जो 2000 के दशक में हासिल 36-37 फीसदी की उच्च दर से कम है।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- October 27, 2023 | 8:20 PM IST

सन 2000 के दशक के तेज वृद्धि वाले समय में भारत की वृद्धि को निजी क्षेत्र के निवेश से गति मिल रही थी। वैश्विक स्तर पर सकल स्थायी पूंजी निर्माण (जीएफसीएफ) की बात करें तो बीते पांच दशकों में यह औसतन 23 और 27 फीसदी के बीच रहा है।

चीन जैसे वृद्धि के क्षेत्र में जबरदस्त प्रदर्शन करने वाले देश निरंतर इस औसत से ऊपर रहे हैं। चीन ने 2013 में 45 फीसदी जीएफसीएफ हासिल किया। आज भी उसका जीएफसीएफ 40 फीसदी से अधिक है।

भारत निवेश दर के मामले में भी औसत से ऊपर रहा है। आज, यह 29 से 30 फीसदी के बीच है जो 2000 के दशक में हासिल 36-37 फीसदी की उच्च दर से कम है। यह गिरावट आमतौर पर इसलिए है क्योंकि निजी निवेश में कमी आई है और इसलिए अर्थव्यवस्था में निजी निवेश की दर बहाल करना हमारी नीतिगत प्राथमिकता होनी चाहिए।

बहरहाल, ऐसा प्रतीत होता है कि बैंकों के बही-खाते दुरुस्त करने और कारोबारी सुगमता में सुधार करने समेत इस दिशा में चाहे जो भी प्रयास किए गए हों, आवश्यक नहीं कि उनसे वांछित नतीजे हासिल हो ही गए हों। जैसा कि इस समाचार पत्र ने भी प्रकाशित किया, मोतीलाल ओसवाल फाइनैंशियल सर्विसेज की एक हालिया रिपोर्ट ने इशारा किया है कि भारतीय कारोबारी जगत का निवेश लगातार दो तिमाहियों में कम हुआ है।

हकीकत में चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में ही अप्रैल-जून 2023 के बीच उसमें साल दर साल आधार पर 6 फीसदी से अधिक की गिरावट आ चुकी है। यह बुरी खबर है क्योंकि सरकार के पास निवेश में सुधार के विकल्प कम होते जा रहे हैं।

ऊपर बताए गए सुधार संबंधी उपायों के अलावा सरकार ने अपना निवेश सुधारने का भी प्रयास किया है। फिर चाहे मामला सीधे केंद्रीय बजट के जरिये ऐसा करने का हो या फिर सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों की मदद से अप्रत्यक्ष रूप से ऐसा किया गया हो। आंशिक रूप से इसने निजी क्षेत्र के निवेश की भरपाई की है।

बड़ी सरकारी कंपनियों यानी पीएसयू का पूंजीगत व्यय अपने सालाना बजट का 42.5 फीसदी पहुंच चुका है और उन पर इस वर्ष के अंत तक 90 फीसदी तक पहुंचने का दबाव था। भारत में सड़क और रेल नेटवर्क का विस्तार और उन्नयन ऐसे ही सार्वजनिक व्यय की मदद से किया जा रहा है।

इस काम को भारतीय राजमार्ग निर्माण प्राधिकार और भारतीय रेल अंजाम दे रहे हैं। इसके बाद के दो वर्षों में केंद्रीय बजट का पूंजीगत व्यय वाला हिस्सा हर वर्ष एक तिहाई की दर से बढ़ा और इसका बड़ा हिस्सा रेलवे को गया।

निश्चित रूप से देश के अधोसंरचना नेटवर्क का उन्नयन और विस्तार सार्वजनिक धन का एक अहम लक्ष्य है। परंतु केवल सरकारी क्षेत्र निवेश का पूरा बोझ नहीं उठा सकता है। पूंजी आवंटन के मामले में निजी क्षेत्र का पूंजी निवेश अधिक किफायती साबित होता है।

इसके अलावा यह भी स्पष्ट होता जा रहा है कि इस स्तर का सार्वजनिक व्यय राजकोष के लिए व्यवहार्य नहीं है। कर राजस्व पर्याप्त तेजी से नहीं बढ़ रहा है और वह इतने व्यय को उचित ठहराने के लिहाज से पर्याप्त नहीं है। हकीकत में चालू वित्त वर्ष के पहले चार महीनों में प्रत्यक्ष कर संग्रह में 0.9 फीसदी की गिरावट आई।

सार्वजनिक ऋण के ऊंचे स्तर और सरकार के सामान्य बजट घाटे के लिहाज से सरकार की पूंजीगत व्यय करने की क्षमता प्रभावित होगी। यह बात निकट से मध्यम अवधि के दौरान वृद्धि संबंधी नतीजों को भी प्रभावित कर सकती है। निजी निवेश को दोबारा पटरी पर लाना हमारी शीर्ष नीतिगत प्राथमिकता होनी चाहिए।

First Published : September 17, 2023 | 11:08 PM IST