क्रिकेट विश्व कप, राष्ट्रवाद और क्लब की अहमियत

एक बार कप की जीत-हार का फैसला हो जाने के बाद तो 1.43 अरब विचार सामने आ जाएंगे और असली ज्ञानी ज्ञान देने लगेंगे।

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शेखर गुप्ता   
Last Updated- November 06, 2023 | 8:25 AM IST

क्लब आधारित खेलों और पेशेवर नजरिये ने कठोर राष्ट्रवाद को नरम किया है। इसकी शुरुआत फुटबॉल से हुई और अब यह क्रिकेट में भी दिख रहा है। इन दिनों चल रहा क्रिकेट विश्व कप इसका उदाहरण है।

अगर क्रिकेट पर यह स्तंभ लिखना हो तो उसके लिए भारत में चल रहे विश्व कप से अनुकूल समय भला और क्या हो सकता है। एक बार कप की जीत-हार का फैसला हो जाने के बाद तो 1.43 अरब विचार सामने आ जाएंगे और असली ज्ञानी ज्ञान देने लगेंगे। बहरहाल इस सप्ताह मैं क्रिकेट और कबड्‌डी के बारे में बात करूंगा और कुछ बातें फुटबॉल की भी।

क्रिकेट के अतिरिक्त मैं उससे जुड़े राष्ट्रवाद, राजनीति और भावनाओं की भी बात करूंगा। आप अपनी पसंद का मुद्दा चुन लीजिए, मैं तीनों पर बात करूंगा।

क्रिकेट विश्वकप का नॉकआउट (हारने वाला बाहर) दौर शुरू होने वाला है और हमें उलटफेर भी देखने को मिले हैं और करीबी मुकाबले भी। परंतु क्या आपने ध्यान दिया है कि ये मुकाबले कितने दोस्ताना अंदाजा में खेले जा रहे हैं? खिलाड़ियों के बीच कोई जुबानी जंग नहीं होती बल्कि मुस्कराहटों का आदान-प्रदान होता नजर आता है।

हां, बीच-बीच में कंधे उचकाने, भौंहे चढ़ाने, अंपायरिंग पर नाराजगी या क्षेत्ररक्षकों की गड़बड़ी पर चिल्लाने जैसी घटनाएं होती रहती हैं। परंतु इन बातों के बीच खिलाड़ियों में खेल भावना बरकरार रही है। हां, कुछ विवाद भी हुए हैं जिनमें सबसे प्रमुख है अहमदाबाद के नरेंद्र मोदी स्टेडियम में भारत-पाकिस्तान मुकाबले के दौरान दर्शकों का व्यवहार। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि खिलाड़ी इससे बाहर रहे।

पाकिस्तानियों ने मनोरंजन ही किया है जिनमें से कुछ बेहद मजेदार रहे तो कुछ उतने खास नहीं। यह सब उन्होंने अपनी टीम की कीमत पर किया। अगर सबसे बेहतरीन मीम और बेहतरीन मनोरंजन के लिए मेडल होते तो पाकिस्तानी निश्चित रूप से जीतते। अगर कोई आलोचना होगी भी तो उनके बोर्ड की और शायद कुछ खिलाड़ियों की।

अब बात करते हैं छह सप्ताह तक चलने वाले इस महा आयोजन के उन तीन पहलुओं की जो हैं राष्ट्रवाद, राजनीति और भावना। यह प्रतियोगिता इतने अच्छे माहौल में क्यों हो रही है? इसमें महान सफलताएं विफलताएं, उलटफेर, चूक, अंपायरिंग की शिकायतें सामने आई हैं लेकिन खिलाड़ियों के बीच ऐसा शांत माहौल दिखा है जिसकी उम्मीद ऐसी प्रतियोगिताओं में नहीं की जा सकती है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर के क्रिकेट में पिछले कुछ समय से ऐसा देखने को मिल रहा है। इन बदलावों को बढ़ावा देने में भारत की भूमिका रही है। सौरभ गांगुली के नेतृत्व वाली भारतीय टीम ने ऑस्ट्रेलिया की स्टीव वॉ के नेतृत्व वाली विश्व विजेता टीम का विजय रथ रोका था और इस खेल में तथा स्लेजिंग (खिलाड़ियों के बीच नोकझोंक) में एक तरह का संतुलन कायम किया था। तब से ऑस्ट्रेलिया की टीम पहले जैसी नहीं रह गई और क्रिकेट के मैदान में शांति स्थापित हुई।

कहने का अर्थ नहीं कि खिलाड़ी अपनी भावनाएं या असहमति नहीं दिखाते। गेंद के साथ छेड़छाड़ समेत ऐसी तमाम घटनाएं घटी हैं। कुलमिलाकर प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ियों के बीच रिश्तों में सुधार हुआ है। उदाहरण के लिए भारत-पाकिस्तान मैच के पहले शाहीन शाह आफरीदी ने एशिया कप के दौरान जसप्रीत बुमराह को पिता बनने पर बधाई दी थी। यह एक अच्छे तेज गेंदबाज की ओर से दूसरे तेज गेंदबाज को दी गई बधाई थी।

पाकिस्तान के कप्तान बाबर आजम ने कैमरों के सामने विराट कोहली से अपने भतीजे के लिए हस्ताक्षरित टी शर्ट मांगी। चीजें इतनी सहज थीं कि कुछ पुराने खिलाड़ी असहज हो गए। पूर्व पाकिस्तानी कप्तान और स्टार स्पोर्ट्स के कमेंटेटर वसीम अकरम ने कहा कि अगर बाबर अपने भतीजे के लिए टी शर्ट चाहते ही थे तो उन्हें वह सार्वजनिक रूप से नहीं बल्कि ड्रेसिंग रूम में मांगनी चाहिए थी।

जाहिर है वह मैच में हार के बाद दुखी थे और उन्हें लग रहा था कि इससे उनकी टीम की लड़ाकू क्षमता प्रभावित हुई। वह यह नहीं समझ पाए कि यह समय उनके दौर से अलग है और क्रिकेट प्रतिद्वंद्विताओं की प्रकृति बदल चुकी है। इस बदलाव को बेहतर समझने के लिए मुझे आपको क्रिकेट से कबड्‌डी की ओर ले जाना होगा।

आमिर हुसैन बस्तामी, मोहम्मदरजा काबोद्रहंगी, मिलाद जब्बारी और वाहिद रजामिहेर जैसे नाम आपके लिए क्या मायने रखते हैं? आप जानते होंगे कि इनमें से कोई क्रिकेटर नहीं है। ये नाम ईरानी प्रतीत होते हैं जहां क्रिकेट नहीं खेला जाता, कम से कम प्रतिस्पर्धी स्तर पर तो कतई नहीं। वे ईरान के सबसे लोकप्रिय कबड्‌डी खिलाड़ी हैं।

मैंने क्रिकेट विश्व कप से जुड़ी इस बहस में उनका नाम क्यों लिया यह समझने के लिए मुझे आपको करीब एक महीना पहले हांगझू एशियाई खेलों में ईरान और भारत के बीच हुए कबड्‌डी के फाइनल की बात करनी होगी। इससे आपको खेल और राष्ट्रवाद, राजनीति तथा भावनाओं के तर्क को समझने में मदद मिलेगी।

मुकाबला समाप्त होने में बमुश्किल डेढ़ मिनट का समय बचा था और दोनों टीमें 28-28 अंकों के साथ बराबरी थीं। भारतीय कप्तान पवन सहरावत करो या मरो वाली स्थिति में रेड करने गए। कबड्‌डी की दुनिया के इस सबसे बड़े सितारे ने ईरानी डिफेंडर को पाले से बाहर करके एक अंक हासिल किया लेकिन वापस लौटते समय वे ईरानी डिफेंडरों की भीड़ में घिर गए।

अंपायर तय नहीं कर पाए कि क्या करना है। अगर वह सेहरावत और पांचों ईरानी डिफेंडरों को दोषी ठहराते तो क्रमश: एक और पांच अंक देने होते और भारत 33-29 से आगे हो जाता। अगर दोनों टीमों को एक-एक अंक मिलता तो मुकाबला 29-29 की बराबरी पर आ जाता।

दिक्कत यह थी कि पुराने नियमों से यह भारत के पक्ष में 5-1 होना चाहिए था लेकिन प्रो कबड्‌डी लीग (आईपीएल के तर्ज बनी सबसे बड़ी कबड्‌डी लीग जो भारत की है) के नए नियमों के मुताबिक दोनों टीमों को एक-एक अंक मिलना चाहिए था।

इस विवाद के कारण स्वर्ण पदक का यह मुकाबला करीब एक घंटे रुका रहा। इराकी रेफरी ने ईरान के पक्ष में निर्णय सुनाते हुए कहा कि वह अपनी पूरी उम्र बच्चों को यही नियम सिखाते रहे हैं। एशियाई कबड्‌डी महासंघ के पाकिस्तानी महासचिव ने उनका समर्थन किया।

भारतीय कप्तान और कोच अपने तर्क देते रहे। कुछ ईरानी खिलाड़ी अपनी बात कहते रहे। लेकिन सबकुछ सभ्य तरीके से हुआ। बाकी खिलाड़ी पिच पर बेहद शांति से बैठे रहे। जब स्वर्ण पदक दांव पर लगा हो तब इतनी शांति से शायद ही कोई बैठ सकता है।

जूरी की बैठक हुई और जूरी की प्रमुख केन्या की लावेंटेर ओगुटा ने भारत के पक्ष में निर्णय सुनाया। न तो कोई विरोध हुआ, न गाली-गलौज, न ही चीजों को फेंका गया। मैंने यह ब्योरा स्पोर्ट्स स्टार में लावण्या लक्ष्मी नारायणन के आलेख से लिया है। उन्होंने यह भी लिखा है कि ईरानी खिलाड़ियों ने रजत पदक को अपने गले में किसी बोझ की तरह पहना।

अब पहले लिए गए ईरानी नामों पर लौटते हैं। ये उन 13 ईरानी खिलाड़ियों में शामिल हैं जिन्होंने पिछले वर्ष प्रो कबड्‌डी लीग में अलग-अलग भारतीय टीमों मसलन पुनेरी पलटन, तमिल तलैवास, तेलुगू टाइटंस, यू मुंबा, यूपी योद्धास आदि की ओर से शिरकत की थी।

एशियाई खेलों में दोनों टीमों के खिलाड़ी अपने देश के सम्मान के लिए खेल रहे थे। क्लब कबड्‌डी में वे अक्सर एक ही टीम में होते। उनके संबंध इतने दोस्ताना थे कि कुछ भी बुरा होना संभव नहीं था। इसे बेहतर ढंग से समझने के लिए मुझे कुछ आंकड़े साझा करने दीजिए।

13 ईरानी खिलाड़ियों के अलावा केन्या, ताइवान, इंगलैंड, श्रीलंका, पोलैंड, इराक, नेपाल और बांग्लादेश के खिलाड़ी भी प्रो कबड्‌डी लीग में खेलते हैं। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में भी आईपीएल के आगमन के बाद 15 वर्ष से यही हो रहा है।

पाकिस्तान समेत कई और देशों में ऐसी लीग शुरू हो चुकी हैं। जो टीम राष्ट्रीय टीमों में एक दूसरे खिलाफ खेलने उतरते हैं वे अक्सर लीग में एक ही टीम में होते हैं। वे एक साथ रहते हैं, यात्राएं करते हैं और समय के साथ उनमें दोस्ती भी हो जाती है। इन रिश्तों की वजह से ही उनमें एक दूसरे को लेकर इतनी सद्भावना है।

भारतीय और पाकिस्तानी एक दूसरे की लीग में नहीं खेलते लेकिन बाकी लीग पर नजर डालिए। ऑस्ट्रेलिया और इंगलैंड के 13 मौजूदा खिलाड़ी आईपीएल खेलते हैं।

न्यूजीलैंड के 12, दक्षिण अफ्रीका के सात, अफगानिस्तान के सात, श्रीलंका के चार, बांग्लादेश के तीन और नीदरलैंड का एक खिलाड़ी आईपीएल खेलते हैं। इनमें से कई अन्य जगहों पर भी खेलते हैं। जब आप एक साथ इतना अधिक समय बिताते हैं और एक टीम के रूप में साथ रहते हैं तो भावनाओं में नरमी आती है।

हमने फुटबॉल में दशकों तक ऐसा होते देखा है जहां क्लब के प्रति वफादारी और पेशेवर रुख राष्ट्रवाद को नरम करता है। मैंने जून 2000 में यूरो 2000 देखने के बाद भी ऐसा ही लेख लिखा था। आज वही सब क्रिकेट में घटित हो रहा है।

हमने कबड्‌डी का उल्लेख इसलिए किया क्योंकि यह बताता है कि यह बदलाव को ज्यादा बेहतर ढंग से समझाता है। अगर शारीरिक संपर्क वाले खेल में इस धार को मद्धम किया जा सकता है तो क्रिकेट में तो यह बिल्कुल संभव है। भारत इन दोनों खेलों और शीर्ष लीग में अव्वल है।

First Published : November 5, 2023 | 11:18 PM IST