अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के नए वैश्विक आर्थिक दृष्टिकोण से जो वैश्विक आर्थिक तस्वीर उभर रही है वह चिंतित करने वाली है। मध्यम अवधि में वृद्धि में इतना सुधार होता नहीं दिख रहा है कि वह हाल के दशकों के स्तर तक दोबारा पहुंच सके।
ताजा अनुमानों के मुताबिक 2023 में वैश्विक वृद्धि कमजोर पड़कर 2.8 फीसदी रह जाएगी जबकि 2022 में यह 3.4 फीसदी थी। अप्रैल का अनुमान जनवरी के आंकड़ों से 0.1 फीसदी कम है। आईएमएफ ने भी भारत के लिए अपने वृद्धि अनुमानों को संशोधित किया है।
अब उसका अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में भारत की वृदि्ध दर 5.9 फीसदी होगी जो जनवरी में जताए गए अनुमान से 0.2 फीसदी कम है। उसने 2024-25 के लिए भी अनुमान को 0.5 फीसदी कम करके 6.3 फीसदी कर दिया है।
आईएमएफ का वृद्धि अनुमान भारतीय रिजर्व बैंक के ताजा अनुमानों से काफी कम है। रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष में वृद्धि के 6.5 फीसदी रहने का अनुमान जताया है। निजी क्षेत्र के कुछ अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि चालू वर्ष में वृद्धि दर आईएमएफ के 5.9 फीसदी के अनुमान की तुलना में भी काफी कम रह सकती है।
हालांकि आईएमएफ का अनुमान है कि अगले वित्त वर्ष के दौरान भारत की वृद्धि दर में सुधार होगा लेकिन फिर भी मध्यम अवधि में यह कमजोर रह सकती है क्योंकि वैश्विक आर्थिक हालात अनुकूल नहीं रहेंगे। आईएमएफ के अनुमानों के मुताबिक वैश्विक अर्थव्यवस्था के महामारी के पहले की वृद्धि दर हासिल कर पाने की आशा नहीं है।
अगर 2028 तक नजर डालें तो आईएमएफ ने वैश्विक वृद्धि के तीन फीसदी रहने का अनुमान जताया है। यह सन 1990 के बाद मध्यम अवधि का सबसे कमजोर पूर्वानुमान है। इससे पहले 2000 से 2009 और 2010 से 2019 के बीच की अवधि में वैश्विक अर्थव्यवस्था सालाना क्रमश: 3.9 फीसदी और 3.7 फीसदी की दर से बढ़ी।
इसके अलावा न केवल आधारभूत वृद्धि अनुमान कम है बल्कि इससे जुड़े कई जोखिम भी हैं। उदाहरण के लिए जैसा कि विश्व आर्थिक दृष्टिकोण में कहा गया है इस बात की 25 फीसदी संभावना है कि वैश्विक वृद्धि 2023 में दो फीसदी से भी नीचे जा सकती है।
ध्यान देने वाली बात है कि ब्रिटेन की आर्थिक सलाहकार फर्म ऑक्सफर्ड इकनॉमिक्स ने एक नोट जारी करके आईएमएफ के अनुमानों को आशावादी करार देते हुए दलील दी कि इसमें विकसित देशों में वित्तीय हालात की सख्ती के प्रभाव को सीमित ढंग से आकलित किया गया है।
ऐसे कई कारक हैं जो मध्यम अवधि में वृद्धि को प्रभावित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए आईएमएफ के बुनियादी अनुमान में माना गया है कि वित्तीय क्षेत्र की समस्याओं को नियंत्रित कर लिया गया है।
फिलहाल ऐसा लग सकता है कि बैंकिंग क्षेत्र की समस्याओं को नियंत्रित कर लिया गया है लेकिन पैसे की आसान उपलब्धता के बाद ब्याज दरों में तेज इजाफा विकसित बाजारों में और अधिक दिक्कतों को जन्म दे सकता है। इससे वित्तीय हालात और सख्त होंगे तथा वृद्धि दर प्रभावित होगी।
हालांकि केंद्रीय बैंकों ने मुद्रास्फीति से निपटने के लिए ब्याज दरों में तेज इजाफा किया है और 2023 में मुद्रास्फीति में कमी आने की संभावना है लेकिन फिर भी कीमतों को स्थिर होने में अभी कुछ वक्त लग सकता है। उच्च ब्याज दर के साथ उच्च सरकारी और निजी ऋण जोखिम को बढ़ाने वाला साबित हो सकता है।
इसके अलावा हाल के वर्षों का भू-आर्थिक विभाजन जो आंशिक तौर पर अमेरिका-चीन की प्रतिद्वंद्विता और यूक्रेन पर हमले के कारण हुआ है, वह भी वैश्विक क्षमताओं तथा वृद्धि अनुमानों को प्रभावित करेगा।
वैश्विक व्यापार के आकार में वृद्धि की बात करें तो 2023 में इसमें 2.4 फीसदी की गिरावट आने का अनुमान है जबकि 2022 में इसमें 5.1 फीसदी की गिरावट आई थी।
ऐसे में भारतीय नीति निर्माताओं के लिए यह अहम है कि वे वैश्विक आर्थिक परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए आर्थिक हस्तक्षेप करें। इसका अर्थ यही है कि उन्हें न केवल नीतिगत गुंजाइश बनाने के लिए अधिक मेहनत करनी होगी बल्कि मध्यम अवधि में उच्च आर्थिक वृद्धि की दिशा में भी बढ़ना होगा।