इसमें समय जरूर लगा लेकिन अंतत: कोविड-19 महामारी का प्रबंधन आधिकारिक रूप से राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश कर गया लेकिन इससे किसी को लाभ होता नहीं दिखता, बल्कि सबको नुकसान ही हुआ है।
जब पहली बार संक्रमण लोगों की जिंदगी और आजीविका के लिए खतरा बना तब राजनीतिक दलों ने इसे अपना एजेंडा आगे बढ़ाने के एक विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया लेकिन इस मसले पर केंद्र या राज्य सरकार की आलोचना करते समय वे खामोश रहे।
कांग्रेस के नेता राहुल गांधी फरवरी 2020 में दो सप्ताह इटली में थे और वह यूरोप में इस स्वास्थ्य संकट के प्रत्यक्षदर्शी बने। मार्च की तीन तारीख को उन्होंने जो ट्वीट किया वह किसी राजनेता का पहला ऐसा ट्वीट था जिसने संक्रमण के असर के बारे में आगाह किया।
हालांकि कांग्रेस नेता अजय माकन ने कहा कि संकट से निपटने में उनकी पार्टी सरकार के साथ है। इस विषय पर आयोजित कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में सरकार पर कोई गंभीर हमला नहीं किया गया। वहां केवल कांग्रेस शासित राज्योंं के तालमेल पर चर्चा हुई। अभी नवंबर में जब टीके के माध्यम से संक्रमण रोकने के बारे में बातचीत शुरू हुई तो मुख्य विपक्षी दल ने कहा कि इसे लेकर राजनीति नहीं होनी चाहिए। वरिष्ठ कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा था, ‘हम इस बात को लेकर एकदम स्पष्ट हैं कि टीके को लेकर कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए।’
हालिया विधानसभा चुनावों के प्रचार अभियान के दौरान भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस दोनों ही कोविड-19 को चुनावी मुद्दा बनाने से बच रहे हैं।
कोविड से सर्वाधिक प्रभावित राज्यों में से एक केरल मेंं रैलियां, सार्वजनिक सभाएं और अपीलें राज्य सरकार के प्रदर्शन के इर्दगिर्द केंद्रित हैं। भाजपा ने पिनाराई विजयन सरकार पर विकास के मोर्चे पर कमजोर प्रदर्शन का आरोप लगाया और उसका पूरा ध्यान राज्य सरकार के भ्रष्टाचार पर केंद्रित है। जबकि वाम मोर्चे ने सक्षम प्रशासन, कल्याणकारी योजनाओं और सामाजिक क्षेत्र में किए निवेश पर जोर दिया है। वह भाजपा की ‘सांप्रदायिक’ राजनीति का विरोध कर रही है।
वाम मोर्चे ने एक बार भी केंद्र सरकार पर यह आरोप नहीं लगाया कि वह टीकों की आपूर्ति में भेदभाव कर रही है। भाजपा ने भी राज्य में टीका आपूर्ति को लेकर खराब योजना का आरोप सरकार पर नहीं लगाया।
माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की केंद्रीय समिति के सदस्य और महाराष्ट्र के नेता अशोक धावले स्वीकार करते हैं कि चुनाव में कहीं ज्यादा बड़े मुद्दे हावी हैं क्योंकि चुनाव उस समय शुरू हुए जब संक्रमण की दर में लगातार गिरावट आ रही थी। परंतु वह कहते हैं कि कोविड संक्रमण की दूसरी लहर के साथ ही केंद्र सरकार के कई निर्णयों पर सवालिया निशान लग गए। वह कहते हैं, ‘महाराष्ट्र स्थित हाफकिन इंस्टीट्यूट टीका विकास में अग्रणी है। यदि केंद्र ने इजाजत दी होती तो यहां बड़े पैमाने पर टीका उत्पादन किया जा सकता था। राज्य सरकार ने कई सप्ताह पहले केंद्र से समझौता करना चाहा था। मोदी सरकार ने दो सप्ताह पहले ही मंजूरी दी। कल्पना कीजिए कि अगर पहले मंजूरी मिलती तो कितनी जानें बचाई जा सकती थीं।’
हाल ही में महाराष्ट्र के जनजातीय इलाकों के दौरे से लौटे धावले कहते हैं, ‘चिंतित करने वाली बात यह है कि संक्रमण अब ग्रामीण इलाकों मेंं फैल गया है। जैसा कि आप जानते हैं ग्रामीण स्वास्थ्य बुनियादी ढांचा बहुत बुरी हालत में है। आज नहीं तो कल लोग सरकारों के कुप्रबंधन के बारे में सवाल करेंगे।’
इन घटनाओं के बीच अब राजनीतिक दलों ने भी अधिक आक्रामक रुख अपनाना शुरू कर दिया है। कांग्रेस ने सोशल मीडिया पर एक अभियान शुरू किया है ‘स्पीकअपफॉरवैक्सींसफॉरआल’ (यानी सबके लिए टीके की खातिर आवाज उठाएं)। पार्टी की मांग है कि देश के सभी नागरिकों के लिए कोविड-19 टीका मुहैया कराया जाए ताकि उन्हें वायरस से बचाया जा सके।
राहुल गांधी ने अपने ट्वीट में कहा है कि कोरोना का टीका देश की जरूरत है और सबको इसके लिए आवाज उठानी चाहिए। उन्होंने कहा कि हर किसी को सुरक्षित जीवन का अधिकार है।
नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (सीपीआर) के शोधकर्ता राहुल वर्मा जो घरेलू राजनीति पर करीबी नजर रखते हैं, उनका कहना है: ‘कुछ सप्ताह पहले तक रोज सामने आने वाले नए मामले इतने नहीं थे कि उन्हें राजनीतिक रूप से इस्तेमाल किया जा सके। होली के बाद रोज सामने आने वाले नए मामले तेजी से बढऩे लगे लेकिन तब तक चार राज्यों में चुनाव हो चुके थे। बल्कि फरवरी-मार्च में टीके को लेकर लोगों में हिचक भी अधिक थी। बड़ी तादाद मेंं टीके की खुराक बेकार हो रही थीं और कई लोग सवाल कर रहे थे कि आखिर बिना समुचित परीक्षण के कोवैक्सीन को मंजूरी क्यों दी गई?’
परंतु वर्मा के मुताबिक अब हालात बदल गए हैं। वह कहते हैं, ‘अब जबकि कोरोना ने गंभीर हमला किया है और मामले एक सप्ताह से भी कम समय में दोगुने हो रहे हैं तो घबराहट का माहौल है। ऐसे में राज्यों और केंद्र के बीच भी खराब नियोजन और क्रियान्वयन को लेकर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है। मेरा मानना है कि मौजूदा संकट के लिए दोनों समान रूप से उत्तरदायी हैं। जैसा कि कुछ दिन पहले सीपीआर की अध्यक्ष यामिनी अय्यर ने भी कहा था, केंद्र और राज्यों को आपसी विश्वास, पारदर्शिता, भरोसा और तालमेल दिखाना चाहिए। यदि हमने आने वाले दिनों में हालात नहीं सुधारे तो भारत कोविड-19 से सर्वाधिक प्रभावित होगा।’
इस महीने के आरंभ में मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि मसला टीकों की कमी का नहीं है बल्कि राज्य सरकारों की योजना में कमी है। टीकों की खरीद केंद्रीकृत है ऐसे में अगर राज्य सरकारें अड़ जाती हैं तो एक बड़ा राजनीतिक विवाद पैदा हो सकता है।