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किफायती और कम जोखिम वाले होते हैं टारगेट मैच्योरिटी फंड

तयशुदा मैच्योरिटी वाले फंड में तरलता की नहीं होती समस्या मगर ये पड़ते हैं महंगे

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बिंदिशा सारंग   
Last Updated- March 29, 2024 | 9:22 PM IST

आजकल फंड कंपनियां नई फंड योजनाएं लेकर आ रही हैं, जो तयशुदा यानी फिक्स्ड मैच्योरिटी वाली (एफएमपी) भी होती हैं और टारगेट मैच्योरिटी फंड (टीएमएफ) भी होती हैं। कोटक महिंद्रा म्युचुअल फंड ने कोटक फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान सीरीज 329 90 डेज पेश किया है और निप्पॉन इंडिया एमएफ निवेशकों के लिए निप्पॉन इंडिया फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान 46 सीरीज 5 लाई है।

इस समय ऐक्सिस एमएफ का नया टारगेट मैच्योरिटी फंड (ऐक्सिस क्रिसिल आईबीएक्स एसडीएल जून 2034 डेट इंडेक्स फंड) और कोटक महिंद्रा एमएफ का कोटक निफ्टी एएए बॉन्ड जून 2025 एचटीएम इंडेक्स फंड भी आया है।

समय की बंदिश नहीं

पहले फंड कंपनियां फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान साल के अंत में लाती थी क्योंकि उससे निवेशकों को इंडेक्सेशन का लाभ एक साल ज्यादा मिल जाता था। मगर 1 अप्रैल, 2023 के बाद से म्युचुअल फंड में होने वाले मुनाफे पर निवेशक से उतना ही कर काटा जाता है, जितने कर दायरे में वे होते हैं।

आनंद राठी वेल्थ में हेड (म्युचुअल फंड) श्वेता राजानी कहती हैं, ‘डेट फंडों में इंडेक्सेशन का फायदा खत्म होने का साथ ही आयकर के लिहाज से इस बात की कोई अहमियत नहीं रह गई है कि एफएमपी किस समय लाया जाता है। लेकिन एफएमपी लाए जाने का समय उसके प्रदर्शन पर असर जरूर डाल सकता है क्योंकि यह उस समय चल रही ब्याज दरों और बाजार के हालात पर निर्भर करता है।’

एफएमपी कहां अच्छा कहां खराब

एफएमपी का विकल्प उन निवेशकों के लिए है, जिन्हें लगता है कि ब्याज दरें आगे जाकर नीचे जा सकती हैं और लॉन्च के समय चल रही ब्याज दरों पर ही रकम लगा देना चाहते हैं। एसोसिएशन ऑफ रजिस्टर्ड इन्वेस्टमेंट एडवाइजर्स के बोर्ड सदस्य विशाल धवन का कहना है, ‘चूंकि ये फंड क्लोज्ड एंडेड होते हैं, इसलिए इनमें निवेश की आवक और निकासी पर नियंत्रण रहता है। इसीलिए पुनर्निवेश के जोखिम और तरलता प्रबंधन का असर कम होता है।’

लेकिन क्लोज्ड एंड होने के कारण इन फंडों में तरलता भी कम होती है। फंड की अवधि पूरी होने से पहले उनकी यूनिट वापस फंड कंपनी को नहीं बेची जा सकतीं। एफएमपी स्टॉक एक्सचेंजों पर सूचीबद्ध होते हैं मगर उनमें कारोबार बहुत कम होता है, जिस कारण निवेशकों को मजबूरी में इनकी यूनिट बहुत कम कीमत पर बेचनी पड़ती हैं।

निवेशक यह नहीं जान पाते कि एफएमपी के पोर्टफोलियो में क्या-क्या है। जब फंड पेश किया जाता है, उस समय उन्हें सांकेतिक पोर्टफोलियो की जानकारी भर मिलती है। कुछ एफएमपी ज्यादा रिटर्न पाने के चक्कर में क्रेडिट का ज्यादा जोखिम भी उठाने लगते हैं।

पारदर्शी है टीएमएफ

टारगेट मैच्योरिटी फंड किसी खास इंडेक्स में निवेश करते हैं। इनमें से ज्यादातर इंडेक्स में सरकारी बॉन्ड, राज्य सरकार के विकास ऋण और ट्रिपल-ए रेटिंग वाले कॉरपोरेट बॉन्ड होते हैं। इनका पोर्टफोलियो बहुत उम्दा होता है और क्रेडिट जोखिम भी बहुत कम होता है। फंड पेश होते समय ही निवेशक देख सकते हैं कि इंडेक्स में क्या-क्या है।

इंडेक्स फंड के रूप में टीएमएफ को फंड कंपनी के पास वापस बेचा जा सकता है। जो टारगेट मैच्योरिटी फंड ईटीएफ की शक्ल में होते हैं, उन्हें स्टॉक एक्सचेंज के पास वापस बेचा जा सकता है। इसलिए इनमें तरलता ज्यादा होती है।

टीएमएफ का एक्सपेंस रेश्यो बहुत कम होता है, जिसके कारण ये खासे किफायती होते हैं। प्रमाणित वित्तीय योजनाकार (सीएफए) और बियॉन्ड लर्निंग फाइनैंस की संस्थापक जीनल मेहता समझाती हैं, ‘ज्यादातर फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान की अवधि 1 से 3 साल की होती है मगर टारगेट मैच्योरिटी फंड में मियाद के ज्यादा विकल्प होते हैं, जो 3 साल से 10 साल तक जा सकते हैं।’

धवन की राय है, ‘यह उन निवेशकों के लिए मददगार हो सकता है, जो उस समय चल रही ब्याज दरों पर निवेश करना चाहते हैं ताकि एक दशक के भीतर ब्याज दरों में आने वाली गिरावट से बचा जा सके।’ मगर ओपन एंडेड फंड होने के कारण टीएमएफ को तरलता संभालने की समस्या से दो-चार होना पड़ता है। धवन कहते हैं, ‘अगर टारगेट मैच्योरिटी फंड में कम ब्याज दर पर रकम आती रहे तो वह कम कारगर रह जाता है और पोर्टफोलियो की कुल यील्ड कम हो जाती है।’

तो क्या चुनें?

निवेशक हमेशा से ही फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान की ओर दो कारणों से जाते हैं – कर का फायदा और ब्याज दरों में उतार-चढ़ाव का उन पर असर नहीं पड़ना। जीनल कहती हैं, ‘मौजूदा हालात में दोनों में से किसी भी श्रेणी को कर का फायदा नहीं मिल रहा है। मगर एफएमपी में एक्सपेंस रेश्यो बहुत अधिक होता है।’

टीएमएफ किसी बॉन्ड इंडेक्स पर चलते हैं, जिसके कारण ये पारदर्शी होते हैं। ये ओपन-एंडेड होते हैं, क्रेडिट जोखिम बहुत कम होता है और एक्सपेंस रेश्यो भी बहुत कम होते हैं।

धवन के हिसाब से वे निवेशक एफएमपी के बारे में सोच सकते हैं, जिन्हें लॉक-इन यानी निवेश फंसने और कम तरलता होने से कोई दिक्कत नहीं है। वह कहते हैं, ‘जो निवेशक फंड खरीदते समय दिखने वाली यील्ड से कम रिटर्न पर भी खुश हो जाते हैं बशर्ते उन्हें निवेश करने या निकालने की गुंजाइश मिल जाए, वे टीएमएफ चुन सकते हैं।’

कुछ विशेषज्ञों को टारगेट मैच्योरिटी फंड ही पसंद हैं। जीनल कहती हैं, ‘उनमें मैच्योरिटी की अवधि के मामले में बहुत विकल्प मिलते हैं, जिनके कारण टीएमएफ के पूरा होने की तारीख अपने किसी लक्ष्य के हिसाब से तय करना बहुत आसान हो जाता है।’

First Published : March 29, 2024 | 9:22 PM IST