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Bank FDs में निवेश से पहले जान लें नफा-नुकसान, एक्सपर्ट ने दी ये सलाह

Bank FD: एफडी में निवेश से पहले किन बातों का रखें ध्यान, तभी मिलेगा सही फायदा

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बीएस वेब टीम   
Last Updated- August 25, 2025 | 9:33 AM IST

फिक्स्ड डिपॉजिट या एफडी बैंक में किया जाने वाला ऐसा निवेश है जिसमें आप तय समय के लिए पैसे जमा करते हैं और बैंक आपको एक निश्चित (फिक्स्ड) ब्याज दर देता है। समय पूरा होने पर आपको मूलधन के साथ ब्याज मिल जाता है। हमारे माता–पिता और दादा–दादी के दौर से एफडी को सेविंग का आसान तरीका माना गया है, इसलिए रिटायरमेंट या भविष्य की जरूरतों के लिए लोग इसे आज भी पसंद करते हैं।

एफडी क्यों पॉपुलर है?

एफडी की सबसे बड़ी खासियत कम रिस्क है। शेयर बाज़ार या इक्विटी म्यूचुअल फंड की तरह इसमें रोजाना उतार–चढ़ाव नहीं होता। बैंक शुरू में ही ब्याज दर तय कर देता है, इसलिए आपको अंदाजा होता है कि मैच्योरिटी पर कितनी राशि मिलेगी। साथ ही, जरूरत पड़ने पर एफडी को तोड़ा भी जा सकता है (हालांकि कुछ शर्तें और पेनल्टी लग सकती है), इसलिए यह इमरजेंसी स्थिति में भी काम आती है।

सुरक्षित और तय रिटर्न

एफडी में आपका मूलधन सुरक्षित रहता है और ब्याज दर लॉक रहती है। इसका मतलब है कि बाजार ऊपर–नीचे हो, फिर भी आपके रिटर्न पर सीधे असर नहीं पड़ता। मैच्योरिटी पर बैंक तय समय के बाद आपकी पूरी रकम दे देता है, जिससे फाइनेंशियल प्लानिंग करना आसान हो जाता है।

PersonalCFO के CEO सुशील जैन के मुताबिक, बैंक एफडी हर निवेशक के पोर्टफोलियो का हिस्सा होना चाहिए। चाहे निवेश की रकम छोटी हो या बड़ी, एफडी एक भरोसेमंद और सुरक्षित विकल्प है। यह न केवल स्थिर रिटर्न देती है, बल्कि निवेशक के एसेट एलोकेशन और इन्वेस्टमेंट होराइजन के हिसाब से भी उपयुक्त रहती है।

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ब्याज कब और कैसे मिलता है?

एफडी का ब्याज आप अपनी जरूरत के हिसाब से मासिक, तिमाही या सालाना ले सकते हैं। अगर आपको रेगुलर आय चाहिए (जैसे रिटायर्ड लोगों को), तो मासिक/तिमाही ब्याज लेना बढ़िया है। वहीं, अगर आपको बाद में बड़ी राशि चाहिए, तो आप ब्याज को दोबारा जोड़कर (क्वार्टरली/वार्षिक कंपाउंडिंग के साथ) मैच्योरिटी पर एकमुश्त लेने का विकल्प चुन सकते हैं।

टैक्स-सेविंग एफडी (धारा 80C)

यदि आप इनकम में छूट चाहते हैं, तो टैक्स–सेविंग एफडी काम आती है। इसमें 5 साल का लॉक–इन होता है और धारा 80C के तहत सालाना ₹1.5 लाख तक की कुल कटौती (अन्य 80C निवेशों सहित) का फायदा मिल सकता है। ध्यान रहे, इसमें बीच में पैसा नहीं निकाल सकते और ब्याज पर टैक्स के नियम अलग से लागू होते हैं।

जमा बीमा (DICGC) से सुरक्षा

भारत में बैंक जमाओं पर DICGC के जरिये ₹5 लाख प्रति जमाकर्ता प्रति बैंक तक बीमा सुरक्षा मिलती है। यानी किसी बैंक पर रोक (moratorium) लगने जैसी असामान्य स्थिति में भी एक सीमा तक आपकी जमा राशि सुरक्षित रहती है। यह सुरक्षा बैंकों पर लागू होती है, NBFCs पर नहीं। नियम–प्रक्रिया समय–समय पर बदल सकती है, इसलिए लंबी अवधि के पहले बैंक की स्थिति और शर्तें जरूर देखें।

वरिष्ठ नागरिकों के लिए अतिरिक्त लाभ

सीनियर सिटीजन्स को आमतौर पर सामान्य ग्राहकों से ज्यादा ब्याज दर मिलती है, जिससे उनकी नियमित आय बढ़ जाती है। इसके अलावा, एफडी से मिलने वाले ब्याज पर ₹50,000 तक की वार्षिक छूट (धारा 80TTB) उपलब्ध होती है। यह छूट ब्याज आय पर टैक्स बोझ कम करती है।

एफडी के बदले लोन लेने की सुविधा

कई बार अचानक पैसों की जरूरत पड़ती है। ऐसे में एफडी तोड़ने के बजाय, उसी एफडी के बदले लोन/ओवरड्राफ्ट लेना आसान रहता है। बैंक आपकी एफडी राशि और अवधि देखकर एक सीमा तक लोन दे देता है। ध्यान रखें, इस लोन पर जो ब्याज लगेगा, वह अलग होता है और कुछ मामलों में 10% के आसपास भी हो सकता है। इसलिए शर्तें पढ़कर ही निर्णय लें।

एफडी की सीमाएं: महंगाई का असर, पेनल्टी और टैक्स

एफडी का सबसे बड़ा नुकसान महंगाई (इन्फ्लेशन) का असर है। क्योंकि एफडी की ब्याज दर फिक्स होती है, अगर महंगाई उससे ज्यादा है तो आपका वास्तविक रिटर्न घट जाता है। मान लीजिए आपको एफडी पर 5% मिल रहा है और महंगाई 6% है, तो असल में आपकी खरीदने की क्षमता कम हो रही है।

दूसरी कमी प्री–मैच्योर बंद करने पर पेनल्टी है। अगर आप समय से पहले एफडी तोड़ते हैं तो ब्याज दर कम हो सकती है और बैंक कुछ फीस भी काट सकता है। तीसरी बात टैक्स की। 60 साल से कम उम्र के ग्राहकों के लिए साल में एफडी से मिलने वाला ब्याज ₹50,000 से ऊपर जाते ही बैंक TDS (आमतौर पर 10%) काटता है। सीनियर सिटीजन्स के लिए यह सीमा ₹1,00,000 है। अंतिम टैक्स देनदारी आपकी कुल आय और रिटर्न फाइलिंग में तय होती है।

फिक्स्ड रेट का फायदा और नुकसान

एफडी में फिक्स्ड रेट होने से स्थिरता तो मिलती है, लेकिन अगर बाज़ार में ब्याज दरें बाद में बढ़ जाएं, तो आपकी पुरानी एफडी उसी कम दर पर चलती रहेगी। यानी बढ़ी हुई दरों का फायदा तुरंत नहीं मिलता। उल्टा, अगर दरें घट जाएं, तो आपकी पुरानी एफडी पर तय ऊंची दर बने रहना एक फायदा भी हो सकता है।

किसके लिए एफडी बेहतर है?

अगर आपकी रिस्क लेने की क्षमता कम है, आपको पूंजी की सुरक्षा चाहिए, या आप कम–उतार–चढ़ाव वाली आय चाहते हैं, तो एफडी आपके लिए सही विकल्प है। इमरजेंसी फंड के एक हिस्से को एफडी में रखना भी समझदारी है, क्योंकि जरूरत पर इसे तोड़ा जा सकता है (हालांकि पेनल्टी का ध्यान रखें)। वहीं, अगर आपका लक्ष्य लंबी अवधि में ऊंचा रिटर्न पाना है, तो एफडी के साथ–साथ म्यूचुअल फंड/अन्य विकल्पों पर भी विचार करें, ताकि महंगाई को मात दी जा सके।

सुशील जैन का मानना है कि एफडी का इस्तेमाल कई उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है। यह इमरजेंसी फंड बनाने में मदद करती है, शॉर्ट टर्म लक्ष्यों को पूरा करने का आसान जरिया है, एसेट एलोकेशन को बैलेंस करने में सहायक है और खासकर लो टैक्स ब्रैकेट वाले निवेशकों के लिए एक अच्छा विकल्प है।

सुशील जैन कहते हैं, हालांकि, एफडी में पैसे लगाने से पहले कुछ बातें समझना जरूरी है। जैसे अगर आपको जरूरत पड़ने पर समय से पहले पैसे निकालने हों तो उस पर क्या नियम लगेंगे। बैंक आपको ब्याज हर महीने देगा या आखिर में एक साथ देगा, यह भी जानना चाहिए। जिस बैंक में आप पैसे रख रहे हैं, उसका भरोसा और नाम कैसा है, यह देखना जरूरी है। साथ ही यह भी समझें कि पैसे निकालना कितना आसान होगा और दूसरे बैंकों के मुकाबले उस बैंक की ब्याज दर अच्छी है या नहीं। अगर ये सब बातें ध्यान में रखकर निवेश करेंगे तो एफडी हमेशा फायदेमंद साबित होगी।

एफडी कैलकुलेटर क्यों जरूरी है?

निवेश से पहले यह समझना जरूरी है कि कितनी राशि, कितनी अवधि और किस ब्याज दर पर आपको भविष्य में कितना मिलेगी। ऑनलाइन एफडी कैलकुलेटर से आप मिनटों में यह हिसाब देख सकते हैं। मासिक/तिमाही ब्याज चाहिए या मैच्योरिटी पर एकमुश्त, दोनों स्थितियों में मिलने वाली रकम का अंदाजा लग जाता है। इससे बजट बनाना और अलग–अलग बैंकों की स्कीमें तुलना करना आसान हो जाता है।

(नोट: यह जानकारी Groww के ब्लॉग पोस्ट पर आधारित है)

First Published : August 25, 2025 | 9:19 AM IST