बाजार नियामक सेबी ने संबंधित पक्षकार के लेनदेन (आरपीटी) के लिए कंपनियों की तरफ से ऑडिट कमेटी और शेयरधारकों को दी जाने वाली न्यूनतम सूचना के नियम संशोधित किए हैं। नए मानक 1 सितंबर से लागू होंगे। सेबी ने फरवरी 2025 में न्यूनतम मानक जारी किए थे। हालांकि उद्योग के प्रतिभागियों के साथ परामर्श के बाद इन मानकों में बदलाव किए गए। उद्योग संगठन एसोचैम, फिक्की और सीआईआई से मिले फीडबैक के आधार पर इन्हें यह अपडेट किया गया।
संशोधित मानकों के तहत कंपनी प्रबंधन को इसकी पुष्टि का प्रमाणपत्र देना होगा कि आरपीटी की शर्तें सूचीबद्ध कंपनी के सर्वोत्तम हित में हैं। इसके अलावा किसी बाहरी पार्टी से मूल्यांकन या अन्य रिपोर्ट भी अनिवार्य होगी।
कंपनी सचिव गौरव पिंगले ने कहा कि आरपीटी कंपनी के हित में है, यह प्रमाणित करने के लिए प्रबंध निदेशक, पूर्णकालिक निदेशक या प्रबंधक को शामिल करना आवश्यक है क्योंकि कई कंपनियों के बोर्ड में प्रवर्तक या कार्यकारी निदेशक होते हैं। पहले, केवल सीईओ या सीएफओ को ही यह प्रमाणन देने की अनुमति थी।
इसके अलावा, सेबी ने अब प्रमाणपत्र की विषय-सामग्री भी तय कर दी है। ऑडिट कमेटी जरूरत पड़ने पर अतिरिक्त जानकारी मांग सकती है। इस जानकारी में संबंधित पक्ष के साथ पिछले लेन-देन के विवरण और इकाई के संबंध और स्वामित्व ढांचे की सूचना भी शामिल होगी।
पिंगले ने कहा, सेबी ने संबंधित पक्ष के लेन-देन पर प्रबंधन से अपेक्षित जानकारी को व्यवस्थित किया है और निर्णय के लिए प्रासंगिक विवरण शामिल किए हैं। रॉयल्टी भुगतान से जुड़े लेन-देन के अतिरिक्त विवरण को भी युक्तिसंगत बनाया गया है।
कंपनियों को ब्रांड नाम या ट्रेडमार्क, प्रौद्योगिकी की जानकारी, पेशेवर शुल्क आदि के लिए अलग से भुगतान की जाने वाली रकम के बारे में बताना होगा कि यह कुल रॉयल्टी का कितनी फीसदी है। इसके अलावा, अगर मूल कंपनी को रॉयल्टी का भुगतान किया जाता है तो अन्य समूह संस्थाओं में समूह संस्थाओं से प्राप्त रॉयल्टी के बारे में खुलासा करना आवश्यक होगा।
नवंबर 2024 में सेबी द्वारा किए गए पहले के एक अध्ययन में पाया गया था कि चार में से एक बार सूचीबद्ध फर्मों ने अपने शुद्ध लाभ का 20 फीसदी से अधिक संबंधित पक्षों को रॉयल्टी के रूप में दिया। अध्ययन में वित्त वर्ष 2014 से शुरू होकर 10 वर्षों की अवधि में 233 सूचीबद्ध कंपनियों का विश्लेषण किया गया था।
न्यूनतम सूचना की जरूरतें बताने वाले 29 पृष्ठ के दस्तावेज में सूचीबद्ध कंपनी या उसकी सहायक कंपनी द्वारा चालू वित्त वर्ष में संबंधित पक्ष के साथ किए गए सभी लेन-देन की कुल राशि का खुलासा करना जरूरी किया गया है। पिछले वित्त वर्ष के दौरान संबंधित पक्ष की किसी भी चूक का भी खुलासा करना होगा।
मानकों में स्पष्ट किया गया है कि ऑडिट कमेटी अपने विवेक से प्रबंधन की ओर से दी गई जानकारी पर टिप्पणी कर सकती है। ऐसी टिप्पणियां और आरपीटी को मंजूरी न देने का औचित्य ऑडिट कमेटी की बैठक के मिनट्स में दर्ज किया जाएगा।
केएस लीगल ऐंड एसोसिएट्स के मैनेजिंग पार्टनर सोनम चांदवानी ने कहा, यह संशोधन लिस्टिंग एग्रीमेंट के क्लॉज 49 के अनुरूप है और सेबी अधिनियम, 1992 की धारा 11बी के तहत जुर्माने के साथ तुरंत लागू किया जा सकता है। यहऑडिट कमेटियों और शेयरधारकों को बढ़ी हुई पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ सशक्त बनाता है। यह तुलनात्मकता को बढ़ावा देकर और पूरे उद्योग में हेरफेर वाले लेन-देन के जोखिम को कम करके कॉरपोरेट गवर्नेंस को भी मजबूत करता है।
मानकों में अलग-अलग तरह के आरपीटी की विभिन्न श्रेणियों के लिए जरूरी जानकारी के विभिन्न सेट बताए गए हैं और इन्हें सात श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है। बाजार नियामक ने महत्त्वपूर्ण आरपीटी के लिए आवश्यक न्यूनतम जानकारी के एक सेट का भी खाका दिया है। नये मानक व्यक्तिगत रूप से किए गये लेनदेन या 1 करोड़ रुपये से कम मूल्य के लेनदेन पर लागू नहीं होंगे।