जेफरीज के प्रबंध निदेशक महेश नंदूरकर
पिछले हफ्ते वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की दरों में कटौती से बाजारों में उत्साह दिखा। जेफरीज के प्रबंध निदेशक महेश नंदूरकर ने ईमेल साक्षात्कार में पुनीत वाधवा को बताया कि विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) का धन भारत में आए, इसके लिए या तो मूल्यांकन कम होने जरूरी हैं या फिर वृद्धि की उम्मीदों में सुधार होना आवश्यक है। मुख्य अंश:
क्या जीएसटी दर में कटौती अमेरिकी टैरिफ का असर कम करने के लिए पर्याप्त है?
जीएसटी दरों में कटौती निश्चित रूप से उपभोग के लिए सकारात्मक है, खासकर त्योहारों के करीब आने से। इसका लाभ यह है कि जीएसटी उपकर को जीएसटी में शामिल करने के कारण इन कटौतियों का राजकोषीय प्रभाव सीमित है। ये कटौती मुद्रास्फीति के परिदृश्य के लिए भी सहायक हैं जिससे दरों में कटौती की संभावना बढ़ जाती है। जहां टैरिफ से अमेरिका को भारत के करीब 50 अरब डॉलर निर्यात पर असर पड़ा है, वहीं जीएसटी से 15-20 अरब डॉलर का लाभ होने का अनुमान है जिससे व्यापार से जुड़ी चुनौतियों से आंशिक राहत मिलती है।
भारतीय बाजारों में एफआईआई की वापसी के लिए क्या नीतिगत पहल पर्याप्त हैं?
अगले 12 महीनों में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति का अनुमान करीब 4 फीसदी है और हाल में जीएसटी में कटौती से यह अनुमान बेहतर हुआ है, ऐसे में भारतीय रिजर्व बैंक के पास दरों में 25-50 आधार अंकों की कटौती की गुंजाइश है। एफआईआई के निवेश की वापसी के लिए या तो मूल्यांकन में नरमी जरूरी है या फिर वृद्धि की उम्मीदों में सुधार करना होगा।
क्या इक्विटी बाजारों में बुलबुले जैसी स्थिति बन रही है?
मुझे ऐसा नहीं लगता। हालांकि भारतीय शेयर बाजार के कुछ हिस्से महंगे मूल्यांकन पर कारोबार कर रहे हैं। वृद्धि धीमी हो रही है और कंपननियों की प्रति शेयर आय (ईपीएस) इस साल 8-9 फीसदी और अगले साल 12-13 फीसदी बढ़ने की उम्मीद है। इस लिहाज से 21.5 गुना का एक साल आगे का पी/ई अनुपात काफी ज्यादा लग रहा है। इस बीच, इक्विटी आपूर्ति का दबाव अगले 12 महीनों में बाजार रिटर्न को निचले एक अंक में रख सकता है। अगर पिछला रिटर्न फीका रहा तो घरेलू निवेश धीमा हो सकता है। इस जोखिम को ध्यान में रखने की जरूरत है।
कौन से क्षेत्र परेशान कर सकते हैं?
12-24 महीनों की अवधि के लिहाज से हम उपभोक्ता वस्तुओं और सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) सेवाओं को लेकर सतर्क बने हुए हैं। उपभोक्ता वस्तुओं का कारोबार 40-50 गुना पीई पर हो रहा है जबकि ईपीएस में एक अंक की ही वृद्धि है। इसी तरह आईटी सेवाओं की वृद्धि एक अंक में अटकी हुई है। फिर भी शेयर करीब 25 गुना पीई पर कारोबार कर रहे हैं। दोनों क्षेत्र एक से तीन वर्षों में कमजोर प्रदर्शन कर सकते हैं। हालांकि कम संस्थागत पोजीशन को देखते हुए अल्पकालिक तेजी मुमकिन है।
उभरते बाजारों (ईएम) के संदर्भ में भारतीय बाजारों पर अब जेफरीज का क्या रुख है?
पिछले 12 महीनों में भारतीय बाजार ने उभरते बाजारों के बेंचमार्क से 20 फीसदी से ज्यादा कमजोर प्रदर्शन किया है। पिछले 15-20 वर्षों में किसी भी 12 महीनों में भारत में यह सबसे ज्यादा कमजोर प्रदर्शन है। नतीजतन, सापेक्ष मूल्यांकन में नरमी आई है।
भारत के लिए चुनौती यह है कि यहां चीन, ताइवान और दक्षिण कोरिया जैसे उत्तर एशियाई बाजारों के विपरीत आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) के बारे में कोई आकर्षक जानकारी नहीं है। अगर वैश्विक निवेशकों के बीच एआई को लेकर जुनून कम होता है तो भारत को सापेक्षिक रूप से लाभ हो सकता है।
वित्त वर्ष 2025-26 और वित्त वर्ष 2026-27 के लिए आय का परिदृश्य कैसा है?
मजबूत ईपीएस वृद्धि और उच्च कॉरपोरेट रिटर्न ऑन इक्विटी के कारण भारत अन्य उभरते बाजारों की तुलना में प्रीमियम पर कारोबार करना जारी रखेगा। चीन और ब्राजील जैसे कई बड़े उभरते बाजारों के बेंचमार्क कम पीई कमोडिटीज या सरकारी उद्यमों पर केंद्रित हैं। इसके विपरीत भारत का सूचकांक निजी क्षेत्र की अधिक कुशल कंपनियों से संचालित होता है।
वित्त वर्ष 26 के लिए ईपीएस वृद्धि 8-9 फीसदी पर मामूली है। लेकिन हमें वित्त वर्ष 27 में सुधार की उम्मीद है। वित्त वर्ष 26 की पहली तिमाही में आय कमजोर रही। लेकिन काफी हद तक उम्मीदों के अनुरूप रही, जिसमें ऋणदाताओं और उपभोक्ता वस्तुओं में सबसे अधिक कटौती हुई।