भारत के बाजार नियामक द्वारा HDFC Bank और HDFC विलय के बाद शेयर में अधिकतम निर्धारित निवेश सीमा के मानकों का उल्लंघन करने पर म्युचुअल फंडों के लिए विशेषय रियायत दिए जाने की संभावना नहीं है। इस मामले से अवगत दो अधिकारियों ने रॉयटर्स को इस बारे में जानकारी दी।
HDFC Bank और HDFC, दोनों में म्युचुअल फंडों की बड़ी भागीदारी रही है और अगले कुछ सप्ताहों में इनका विलय होने जा रहा है। इस विलय के साथ ही भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के बाद परिसंपत्तियों के लिहाज से भारत के दूसरे सबसे बड़े वित्तीय संस्थान की स्थापना हो जाएगी।
हालांकि म्युचुअल फंडों पर अपना निवेश घटाने के लिए दबाव से विलय के बाद गठित इकाई के शेयर पर गतिरोध पैदा हो सकता है।
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) के नियमों के अनुसार, कोई म्युचुअल फंड योजना एक शेयर में 10 प्रतिशत से ज्यादा निवेश नहीं कर सकती। हालांकि एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड और किसी खास क्षेत्र में निवेश करने वाले फंडों को इस सीमा के दायरे से अलग रखा गया है।
अनुमान जताया गया कि एचडीएफसी बैंक और एचडीएफसी में करीब 60 प्रतिशत म्युचुअल फंड योजनाओं का बुधवार तक संयुक्त निवेश 10 प्रतिशत की सीमा को पार कर जाएगा।
एचडीएफसी बैंक और सेबी ने इस संबंध में भेजे गए ईमेल संदेशों का जवाब नहीं दिया है।
एक अन्य अधिकारी ने कहा कि यदि बाजार पर ज्यादा प्रभाव पड़ता है तो नियामकीय दखल जरूरी है, जो मौजूदा मामले में नहीं देखा जा रहा है।
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म्युचुअल फंड उद्योग से जुड़े दो अधिकारियों के अनुसार, यह मामला मौजूदा समय में भारत में म्युचुअल फंडों के संगठन एम्फी को सौंप दिया गया है।
पिछले सप्ताह एम्फी (Amfi) के अधिकारियों और उद्योग प्रतिनिधियों ने इस विलय के प्रभाव का विश्लेषण किया और यह भी समझने का प्रयास किया कि एमएफ उद्योग को नियामकीय सीमा का पालन करने के लिए कितने शेयर बेचने की जरूरत होगी।
ब्रोकरेज फर्म केआरचोकसी होल्डिंग्स के संस्थापक देवेन चोकसी ने कहा, ‘नियामकीय बदलावों को ध्यान में रखते हुए कुछ म्युचुअल फंडों को बिकवाली करने की जरूरत होगी जिससे इस शेयर पर अल्पावधि दबाव पैदा होगा। हालांकि शेयर कीमतें घटने से छोटे और अन्य घरेलू निवेशकों के लिए खरीदारी के ज्यादा अवसर पैदा हो सकते हैं।’
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एक फंड हाउस के अधिकारी ने कहा कि फंडों को संयुक्त कंपनी के शेयर में 30-40 अरब रुपये का निवेश घटाना पड़ सकता है।