म्युचुअल फंड

बाजार में उतार-चढ़ाव के दौर में निवेशकों को राहत दे सकते हैं Low Volatility फंड, कई AMCs ला रही हैं नई स्कीम

लो वोलैटिलिटी इंडेक्स में उन शेयरों को शामिल किया जाता है जिनकी कीमतों में उतार-चढ़ाव कम होता है।

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सर्वजीत के सेन   
Last Updated- April 04, 2025 | 8:17 AM IST

बाजार में पिछले कुछ महीनों से दिख रहे तेज उतार-चढ़ाव के कारण कई निवेशक ऐसे विकल्पों की तलाश में हैं जो अचानक आने वाले झटकों से सुरक्षा दें और साथ ही बाजार सुधरने पर फायदा कमाने का मौका भी दें। इस जरूरत को ध्यान में रखते हुए कई एसेट मैनेजमेंट कंपनियां (AMCs) लो वोलैटिलिटी इंडेक्स फंड्स और एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड्स (ETFs) लॉन्च करने की तैयारी कर रही हैं।

कौन-कौन ला रहे हैं ऐसे फंड?

निप्पॉन, एक्सिस, एसबीआई, ग्रो, और ICICI प्रु जैसी कंपनियों ने ऐसे फंड लॉन्च करने के लिए सेबी के पास आवेदन किया है। वहीं ICICI प्रु, कोटक, यूटीआई, मोतीलाल ओसवाल, HDFC और मिराए जैसी कंपनियां पहले से ही लो वोलैटिलिटी फंड्स की पेशकश कर रही हैं।

Wallet Wealth के CEO श्रीधरन का कहना है, “बढ़ती बाजार अनिश्चितता, जियोपॉलिटिकल रिस्क, ट्रेड टेंशन और निवेशकों की सोच में बदलाव की वजह से फंड हाउस अब बेहतर रिस्क-एडजस्टेड रिटर्न वाले स्कीम्स पर फोकस कर रहे हैं।”

क्या होता है Low Volatility Index?

लो वोलैटिलिटी इंडेक्स में उन शेयरों को शामिल किया जाता है जिनकी कीमतों में उतार-चढ़ाव कम होता है। उदाहरण के लिए, Nifty100 Low Volatility 30 Index में टॉप 100 कंपनियों में से सबसे कम उतार-चढ़ाव वाले 30 शेयर शामिल होते हैं।

मोतीलाल ओसवाल AMC में पैसिव फंड्स के हेड प्रतीक ओसवाल के मुताबिक, “Low Volatility फंड्स कुछ आसान नियमों के आधार पर स्थिर प्रदर्शन करने वाली कंपनियों में निवेश करते हैं। ये फंड बाजार के उतार-चढ़ाव के दौरान निवेशकों को स्थिरता देने में मदद कर सकते हैं।”

हर मार्केट साइकिल में अच्छा प्रदर्शन करते हैं ये फंड, कम जोखिम में बेहतर रिटर्न

अगर आप ऐसे फंड की तलाश में हैं जो हर तरह के बाजार माहौल में अच्छा प्रदर्शन करें, तो लो वोलैटिलिटी फंड एक अच्छा विकल्प हो सकते हैं।

बन्धन एएमसी में प्रोडक्ट हेड शिर्षेन्दु बासु कहते हैं, “ये फंड अस्थिर बाजार में घाटा कम करने में मदद करते हैं और स्थिर या धीमी रफ्तार से बढ़ते बाजार में भी संतुलित रिटर्न देते हैं। ऐसे निवेशक जो लगातार और रिस्क-एडजस्टेड ग्रोथ चाहते हैं, उनके लिए ये फंड एक मजबूत विकल्प हैं।”

मिराए एसेट इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स (इंडिया) में ईटीएफ प्रोडक्ट हेड और फंड मैनेजर सिद्धार्थ श्रीवास्तव के मुताबिक, “लो-वोलैटिलिटी फंड लंबे समय में बेहतर प्रदर्शन करते हैं क्योंकि इनमें गिरावट की आशंका कम होती है। ये डिफेंसिव स्ट्रैटेजी लंबे समय में मार्केट को भी पीछे छोड़ती है।”

उन्होंने बताया कि 31 मार्च 2025 तक 10 साल की अवधि में निफ्टी 50 इंडेक्स ने 12.1% का सालाना कंपाउंड रिटर्न (CAGR) दिया, जबकि निफ्टी100 लो वोलैटिलिटी इंडेक्स का CAGR 13.7% रहा। वहीं, निफ्टी100 लो वोलैटिलिटी 30 इंडेक्स की सालाना वोलैटिलिटी 14% रही, जो कि निफ्टी50 की 16.5% वोलैटिलिटी से कम है।

तेजी वाले बाजार में पिछड़ सकते हैं ये फंड्स

तेजी वाले बाजार में कुछ फंड्स पिछड़ सकते हैं। खासतौर से लो-वोलैटिलिटी फंड्स तेज बढ़त वाले फेज में कमजोर प्रदर्शन करते हैं। एक्सपर्ट बासु का कहना है, “जब शेयर बाजार में जबरदस्त तेजी आती है, तब ये फंड्स हाई-ग्रोथ स्टॉक्स से मिलने वाले बड़े मुनाफे से चूक जाते हैं। लॉन्ग टर्म में इसका बहुत असर नहीं होता, लेकिन शॉर्ट टर्म में FOMO यानी ‘मुनाफा चूक जाने का डर’ निवेशकों को ज़्यादा रिस्क वाले ग्रोथ फंड्स की तरफ मोड़ सकता है।”

इसके अलावा कंसन्ट्रेशन रिस्क भी एक बड़ी चिंता है। एक्सपर्ट ओसवाल बताते हैं कि “ये फंड्स ऐसे स्टॉक्स में निवेश करते हैं जिनमें प्राइस वोलैटिलिटी कम हो। इससे ये फंड्स कुछ सीमित सेक्टर्स, जैसे डिफेंसिव सेक्टर्स, में ज़्यादा इन्वेस्ट करने लगते हैं। इससे डाइवर्सिफिकेशन कम हो जाता है और अगर इन सेक्टर्स में कोई दिक्कत आती है, तो फंड को बड़ा नुकसान हो सकता है।”

लंबे समय में स्थिर रिटर्न चाहते हैं? इन फंड्स में करें निवेश

अगर आप लंबी अवधि में स्थिर रिटर्न चाहते हैं, तो ये फंड्स आपके लिए बेहतर विकल्प हो सकते हैं। श्रीधरन का कहना है, “इन स्कीम्स में निवेश करने वाले इन्वेस्टर्स का नजरिया कम से कम पांच साल या उससे ज्यादा का होना चाहिए। ये फंड्स रिटायर्ड लोगों के लिए फायदेमंद हैं जो स्थिरता और लॉन्ग टर्म कंपाउंडिंग चाहते हैं। साथ ही, ऐसे कंजर्वेटिव इन्वेस्टर्स के लिए भी बेहतर हैं जो जोखिम को कम रखना चाहते हैं। कोई भी निवेशक अपने पोर्टफोलियो का 10–20% हिस्सा इन स्कीम्स में लगा सकता है।”

श्रीवास्तव के मुताबिक, “ये फंड्स किसी भी निवेशक के कोर पोर्टफोलियो का हिस्सा हो सकते हैं। जो निवेशक फैक्टर इन्वेस्टिंग के रिस्क और उसके साइक्लिकल नेचर को समझते हैं, वे इन्हें जरूर शामिल करें।”

अगर आप एक एग्रेसिव इन्वेस्टर हैं और पहले से मिड-कैप या स्मॉल-कैप फंड्स में बड़ा निवेश किया हुआ है, तब भी इन फंड्स में निवेश करना संतुलन बनाए रखने में मदद कर सकता है।

First Published : April 4, 2025 | 8:17 AM IST