बाजार

भारत में फिर आने लगेगा FPI

Published by  
भास्कर दत्ता
- 29/01/2023 11:33 PM IST

भारत से बड़ी मात्रा में पूंजी बाहर निकलने के एक साल बाद 2023 में अब भारत के वित्तीय बाजारों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) आने की संभावना है। विश्लेषकों का कहना है कि इसके साथ ही घरेलू आर्थिक वृद्धि अभी सुस्त नजर आ रही है, लेकिन विश्व के कई देशों की तुलना में यह बेहतर रह सकती है। वैश्विक अर्थव्यवस्था की 2023 में वापसी होने की संभावना के बीच भारत तुलनात्मक रूप से बेहतर वृद्धि दर्ज कर सकता है।

उभरते देशों में विदेशी निवेश कम रहने की संभावना के बीच भारत फायदे में रह सकता है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा दरों में बढ़ोतरी सुस्त करने से भारत जैसे बाजारों को लाभ हो सकता है। डॉयचे बैंक के प्रबंध निदेशक और उभरते बाजारों व एपीएसी रिसर्च के प्रमुख समीर गोयल ने कहा, ‘दिलचस्प है कि महामारी को देखते हुए विकसित देशों के केंद्रीय बैंक बड़े पैमाने पर बैलेंस शीट में सुधार कर रहे थे, वहीं हमने ऐसा नहीं देखा है कि उभरते बाजारों में पहले की तरह धन लगाया गया है।’ उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि वृद्धि सुस्त रहने के बीच अर्थव्यवस्था में वृद्धि सबसे तेज होगी और इसकी संपत्तियों को लेकर कुछ अपील रहेगी।’

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के हाल के वैश्विक आर्थिक परिदृश्य के मुताबिक वैश्विक वृद्धि 2023 में 2.7 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जो 2022 में 3.2 प्रतिशत था। रिजर्व बैंक ने दिसंबर में कहा था कि उसे चालू वित्त वर्ष में भारत की वृद्धि दर 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान है। केंद्रीय बैंक का अनुमान है कि अगले वित्त वर्ष में घरेलू आर्थिक वृद्धि 6.5 प्रतिशत रहेगी, जिससे भारत सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक बना रहेगा।

यह भी पढ़ें: Market Cap: सेंसेक्स की टॉप 7 कंपनियों का बाजार पूंजीकरण 2.16 लाख करोड़ रुपये घटा

गोयल ने कहा, ‘जहां तक भारतीय संपत्तियों का मामला है, यह बहुत सकारात्मक है। इसके अलावा निश्चित रूप से ढांचागत रूप से सकारात्मक स्थिति है, चाहे वह भौगोलिक मामला हो या विनिर्माण एफडीआई हो, व्यापक नियामकीय सुधार का मसरा हो या डिजिटल बदलाव का।’ उन्होंने कहा कि इससे ज्यादा वैश्विक पूंजी प्रवाह देश में आ सकता है, जिससे तुलनात्मक रूप से सकारात्मक स्थिति बन रही है। रुपया भी उच्च प्रतिफल वाली मुद्रा है, जिससे पोर्टफोलियो निवेशक आकर्षित होंगे।

2022 में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक भारत के शेयरों के शुद्ध बिकवाल थे। पहले के कैलेंडर वर्ष में पोर्टफोलियो निवेश सबसे ज्यादा बाहर गया था और इसने 2008 में वैश्विक वित्तीय संकट में स्टॉक और बॉन्ड से बाहर निकले धन प्रवाह को पीछे छोड़ दिया।