उच्च शिक्षण संस्थानों में पेशेवर विशेषज्ञों की ‘प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस’ के रूप में चयन की प्रक्रिया को सुगम बनाने के लिए शुरू किये गए पोर्टल पर पहले तीन सप्ताह में 91 उच्च शिक्षण संस्थानों और 3,029 विशेषज्ञों ने पंजीकरण कराया है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने उच्च शिक्षण संस्थानों में ‘प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस’ के रूप में पेशेवर विशेषज्ञों के चयन की प्रक्रिया को सुगम बनाने के लिए 16 मई को एक पोर्टल की शुरूआत की थी।
UGC के ‘प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस’ संबंधी पोर्टल के आंकड़ों के अनुसार, अब तक 91 उच्च शिक्षण संस्थानों और 3,029 विशेषज्ञों ने इस पर पंजीकरण कराया है। UGC ने इस संबंध में पिछले वर्ष एक नया पद ‘प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस’ सृजित करते हुए उनकी सेवाएं लेने के लिये दिशानिर्देश जारी किए थे।
इसका मकसद देशभर में विभिन्न क्षेत्रों में मौजूद बड़ी संख्या में विशेषज्ञों के अनुभवों का लाभ उठाना था। इस संबंध में जारी अधिसूचना में कहा गया था कि विश्वविद्यालय एवं उच्च शिक्षण संस्थान अब प्रतिष्ठित विशेषज्ञों को ‘प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस’ के रूप में नियुक्त कर सकते हैं। इस श्रेणी के लिये औपचारिक अकादमिक पात्रता और प्रकाशन संबंधी शर्तें बाध्यकारी नहीं होंगी।
इसके तहत उच्च शिक्षा संस्थान में स्वीकृत पदों में से 10 फीसदी तक ‘प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस’ यानी विषय के विशेषज्ञों को नियुक्त करने की बात कही गई थी। UGC के अनुसार, ‘प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस’ के पद पर प्रारंभ में एक वर्ष के लिए भर्ती की जा सकेगी। इस पद पर सेवा की अधिकतम अवधि तीन वर्ष होगी। हालांकि अपवाद स्वरूप इस अवधि को एक वर्ष के लिए बढ़ाया जा सकता है। लेकिन किसी भी परिस्थिति में यह अवधि चार वर्ष से अधिक नहीं होगी।
‘प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस’ को कई प्रकार से शामिल किया जा सकता है और इसके लिए उद्योगों से वित्तपोषण हो सकता है, उच्च शिक्षण संस्थान अपने संसाधनों से वित्त पोषण कर सकते हैं या ‘प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस’ मानद रूप में हो सकते हैं।
‘प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस’ संबंधी पोर्टल पर विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों के पंजीकरण कराने और अपना बायोडाटा डालने की व्यवस्था है। इस पर विभिन्न विश्वविद्यालय भी अपना पंजीकरण कर सकते हैं और इसके माध्यम से जरूरत के अनुरूप ‘प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस’ का चयन किया जा सकेगा।