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क्या वीआरएस लेने वालों को मिलेगा मुआवजा?

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 07, 2022 | 12:04 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते टीडीएम इन्फ्रास्ट्रक्चर (प्राइवेट) लिमिटेड बनाम यू ई डेवलपमेंट इंडिया (प्राइवेट) लिमिटेड मामले में फैसला सुनाया कि यदि कोई कंपनी भारत में पंजीकृत है और उसके निदेशक विदेश में बैठे हैं तो आर्बिट्रेशन और कॉन्सिलेशन कानून के तहत कंपनी को विदेशी ही समझा जाएगा।


टीडीएम इन्फ्रास्ट्रक्चर (प्राइवेट) लिमिटेड वैसे तो भारत में पंजीकृत है लेकिन उसके निदेशक मलयेशिया में रहते हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग विकास प्राधिकरण ने इस कंपनी को यू ई डेवलपमेंट इंडिया (प्राइवेट) लिमिटेड के साथ एक परियोजना का ठेका दिया था।

इन दोनों कंपनियों के बीच विवाद उस समय पैदा हो गया जब दोनों कंपनियां एक आर्बिट्रेटर पर सहमत नहीं हो पाईं। इसके बाद टीडीएम मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गई। इस कंपनी का कहना है कि इस मामले में अंतराराष्ट्रीय आर्बिट्रेटर की नियुक्ति की जानी चाहिए और केवल मुख्य न्यायाधीश ही इस मामले में आर्बिट्रेटर नियुक्त कर सकते हैं।

यू ई डेवलेपमेंट इस बात पर सहमत नहीं हुई। उनका कहना है कि जब कंपनी भारत में पंजीकृत है तो सुप्रीम कोर्ट कैसे उसके लिए आर्बिट्रेटर नियुक्त कर सकता है। यू ई का जोर था कि टीडीएम के निदेशकों के विदेशी मूल का होने के बावजूद कंपनी को भारतीय कानून के दायरे में ही रहना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने  इसकी व्याख्या ‘इंटरनेशनल कॉमर्शियल आर्बिट्रेशन’ के रूप में की। जिसका नतीजा यही निकला कि सुप्रीम कोर्ट ने आर्बिट्रेटर की नियुक्ति करने से मना कर दिया।

वीआरएस

क्या कोई स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) लेने वाला कर्मचारी अपनी कंपनी से छंटनी के एवज में मुआवजे की मांग कर सकता है? इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के दो पक्ष है। पहला पक्ष यह है कि जब कोई कर्मचारी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले लेता है तो उसके और नियोक्ता के बीच में कोई सबंध नहीं रह जाता है।

औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 33सी (2) के तहत वह मुआवजे के योग्य नहीं रह जाता है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का दूसरा पक्ष है कि स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के बाद भी कर्मचारी मुआवजे की मांग कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने इससे जुड़ा फैसला आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के एक फैसले को पलटते हुए दिया।

यह मामला सत्यनारायण बनाम पीठासीन अधिकारी से जुड़ा हुआ है। दरअसल सत्यनारायण जिस चीनी मिल में काम करते थो वह बीमारू हो गई और कंपनी ने छंटनी के लिए मुआवजे की घोषणा की। इसके बाद सरकार ने इसे निजी कंपनी को बेच दिया। सरकार ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की भी घोषणा की।

कुछ कर्मचारियों ने जिन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति को स्वीकार किया, बाद में मुआवजे की भी मांग करने लगे। आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने उनकी मांग को खारिज कर दिया। अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को एक बड़ी बेंच के सुपुर्द कर दिया है।

पंजाब एरोमेटिक

सुप्रीम कोर्ट ने ‘ लाल तेल’ को परिष्कृत करके उसे चंदन तेल बनाने की प्रक्रिया को एक नया उत्पाद नहीं माना है। इसके चलते सरकार इस पर खरीद कर नहीं लगा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला पंजाब एरोमेटिक्स बनाम केरल सरकार के मामले में दिया है। इस फैसले में माना गया है कि लाल तेल का स्वरूप और बुनियादी ढांचा  और परिष्करण की प्रक्रिया के बाद यह चंदन के तेल से अलग नहीं है।

जाफरानी जर्दा

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले सप्ताह बिहार और उत्तर प्रदेश के जाफरानी जर्दा उत्पादकों की अपील पर फैसला सुनाया। यह मामला इस बात से संबंधित है कि क्या जाफरानी जर्दा तंबाकू का तैयार उत्पाद है या नहीं और क्या इस पर बाजार शुल्क लगाया जाए?

उत्तर प्रदेश के केसरवानी जर्दा भंडार द्वारा दायर कुछ याचिकाओं पर सुनवाई करते फैसला दिया कि जाफरानी जर्दे को एक कृषि उत्पाद न मानते हुए एक तैयार उत्पाद ही माना है और निर्णय दिया कि इस पर कोई बाजार शुल्क की लेवी नहीं लगाई जा सकती। दूसरी ओर बिहार से (धर्मपाल सत्यपाल और प्रभात जर्दा फैक्ट्री) याचिकाओं पर यह तय करने के लिए कि जाफरानी जर्दा तंबाकू का तैयार उत्पाद है या नहीं ,कोर्ट ने मामले को पटना उच्च न्यायालय भेज दिया।

First Published : May 19, 2008 | 3:46 AM IST