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आवासीय इकाइयों की बिक्री व निर्माण पर सेवा कर

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 07, 2022 | 12:04 AM IST

हरेकृष्णा डेवलपर्स के मामले में हाल में दी गई व्यवस्था से वह मुद्दा एक बार फिर चर्चा में आ गया है जिसका विभाग ने लगभग एक साल पहले निपटान कर दिया था।


इस दलील में यह कहा गया है कि एक रियल एस्टेट डेवलपर , जो अपने ग्राहक से बुकिंग राशि चार्ज करता है, खुद निर्माण करता है और उसके बाद ग्राहकों को आवासीय इकाई बेचता है, तो वह राशि भी आवासीय कॉम्प्लेक्स निर्माण सेवा के तहत सेवा कर के दायरे में आएगी।

इस व्यवस्था पर चर्चा करने से पहले बिल्डर्स और आवासीय कॉम्प्लेक्स निर्माण सेवा में सेवा कर आरोपित करने संबंधी विवाद पर एक नजर डालते हैं।इस तरह की सेवाओं को सेवा कर के दायरे में पहली बार 16 जून 2005 को लाया गया था।

के रहेजा डेवलपर्स के मामले में सर्वोच्च न्यायालय की सुनवाई के बाद सेवा कर महानिदेशक (डीजीएसटी) ने पहली बार बिल्डर्स और डेवलपर्स पर सेवा कर आरोपित करने का मुद्दा सामने आया था। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि बिल्डर या डेवलपर अगर किश्तों में राशि को प्राप्त करने के अंतर्गत किसी निर्माणाधीन फ्लैट को बेचता है तो किसी प्रकार का लेनदेन कार्य अनुबंध के दायरे में आएगा और उस पर वैट आरोपित किया जाएगा।

सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस मामले में सेवा कर का कोई मामला नहीं था। इस सुनवाई को आधार बनाते हुए डीजीएसटी ने एक सर्कुलर निकाला और उसमें यह उल्लेख किया कि इस तरह का लेनदेन कार्य अनुबंध के अंतर्गत आता है और कार्य अनुबंध भी सेवा कर के तहत ही आता है। इसलिए इस तरह के अनुबंध पर सेवा कर आरोपित होगा।

डीजीएसटी के इस सर्कुलर को बाद में बम्बई उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई। जबकि यह मामला लटका ही हुआ था कि सीबीईसी ने एक स्पष्टीकरण जारी किया जिसमें यह कहा गया था कि आवासीय कॉम्प्लेक्स बनाने वाले ऐसे बिल्डर्स या डेवलपर या प्रमोटर के पास अगर 12 इकाइयों से ज्यादा है और अगर वे इनके निर्माण कार्य में लगे हुए हैं तो यह एक प्रकार का कार्य अनुबंध होगा  और इसलिए इस तरह का क्रियाकलाप सेवा कर के दायरे में आएगा।

इस सर्कुलर में यह भी कहा गया है कि अगर कोई आदमी निर्माण के काम में व्यस्त नहीं हो और जहां निर्माण कार्य अपने आप चल रहा हो, तब सेवा प्रदाता और सेवा लेने वाले पर कर लगाने का कोई कारण नहीं बनता है। वैसे इस सर्कुलर की भाषा स्पष्ट नहीं थी, और तो और इस सर्कुलर से न तो व्यापार और उद्योग जगत खुश था और न ही सरकार इस तरह की मांग से संतुष्ट थी।

इसके अलावा जब आवासीय कॉम्प्लेक्स बनाने वाले ने आपत्ति जाहिर करते हुए अपील दायर की तो बम्बई उच्च न्यायालय में यह मामला लंबित हो गया। इस विवादों को शांत करने के लिए सरकार पिछले साल सेवा कर की नई श्रेणी लाई और उसका नाम कार्य अनुबंध सेवा किया गया और तब करों का दायरा निश्चित किया गया।

इस नई श्रेणी में आवासीय निर्माणों से संबंधित सेवाओं की भी समीक्षा की गई। आगे किसी भी प्रकार की आशंकाओं को दूर करने के लिए सेवाओं का समुचित वर्गीकरण किया गया और स्पष्ट किया गया कि कौन सा निर्माण कार्य अनुबंध के अंतर्गत आएगा । इस नई श्रेणी के अंतर्गत कार्य अनुबंधों को लेकर हो रही सारी आशंकाओं को दूर करने की बात की गई। इसके अंतर्गत कराधान की सारी आशंकाओं को भी दूर किया गया।

वैसे पहले की सुनवाई ने विवादों को हवा दे दी। इस सुनवाई में एक शब्द इस्तेमाल किया गया था- इससे जुड़ा हुआ। इसके अंतर्गत निर्माण कार्य से जुड़ा हुआ कोई सहयोगी गतिविधियों को सेवा कर के दायरे में लाया गया। वैसे इस सुनवाई के तहत यह स्पष्ट करने की कोशिश की गई कि कोई भी डेवलेपर या बिल्डर अपने खर्च पर ही इस तरह का निर्माण कर सकते हैं और वे उपभोक्ता के पैसे के आधार पर इस तरह के निर्माण कार्य को अंजाम न दें।

इसमें यह भी बात छिपी थी कि उपभोक्ता से ली गई  इस अग्रिम राशि को पाकर भी जब ये डेवलपर इन्हें मकान देंगे तो ऐसा बिल्कुल प्रतीत नहीं होना चाहिए कि वे उन्हें उपकृत कर रहे हैं। इस तरह अगर एक बना बनाया मकान बेचा जाएगा तो वह कर के दायरे में आएगा लेकिन ऐसे मकान जो पहले से बने हुए हैं और उसे सिर्फ बेचना हो तो वह कर के दायरे में नहीं आएगा।

प्राधिकरण ने एक और सवाल यह खड़ा किया कि सीबीईसी के स्पष्टीकरण में आशय स्पष्ट नहीं है और इससे स्थिति यह बन रही थी कि डेवलपर कर के दायरे में नहीं आते हैं। इसके बाद समस्या यह आ गई कि सेवा क्षेत्र और आवासीय निर्माण क्षेत्र का स्पष्ट वर्गीकरण किया जाए ताकि धारा 65 ए के अंतर्गत कर के निर्धारण को सुनिश्चित किया जा सके। इसमें इस बात पर जोर दिया गया कि इसे कार्य अनुबंध के भंवर जाल में न लाया जाए।

First Published : May 19, 2008 | 3:50 AM IST