भविष्य को देखने की क्षमता बिरले इंसानों के पास ही होती है। वैसे यह एक प्रकार का मिश्रित वरदान ही होता है। इस तरह के इंसानों को हम अपनी जिंदगी में देखते तो जरूर हैं, लेकिन उसे अच्छी तरह से पहचान नही पाते हैं।
व्यक्तिगत तौर पर ऐसी विलक्षण प्रतिभा के एक आदमी को मैंने भी देखा है, वे हैं- पेसी नारियलवाला। एक ऐसा दार्शनिक जो एकाउंट की हर बातों का सटीक अनुमान लगाता था, एक बेहतरीन वक्ता थे पेसी और उनकी दूर दृष्टि तो गजब की थी। वह इस बात को मानते थे कि अगर एकाउंटिंग को सार्वभौम भाषा के तौर पर सबको समझने लायक बनाना है, तो इसका कोड बनाना लाजिमी है।
अकेले दम पर उन्होंने चार्टर्ड एकाउंटेंट संस्थान के तकनीक महानिदेशालय को निर्देश देते हुए कई प्रोफेशनल मानदंड स्थापित किए। मिसाल के तौर पर निर्माण के वक्त आने वाले खर्च पर जो इन्होंने निर्देश दिए वह लाजबाव थे।
अगर हम 1970 के दशक में लौटते हैं, तो यह वह वक्त था जब अमेरिकी वित्तीय एकाउंटिंग मानक बोर्ड, अंतरराष्ट्रीय एकाउंटिंग मानक बोर्ड और अपने देश का एकाउंटिंक मानक बोर्ड का गठन किया जाना था। उन्होंने उस वक्त जो इस बाबत विशेष रिपोर्ट और प्रमाण पत्र ज्ञापित किए थे, वह आज भी प्रासंगिक हैं।
आज भी भारतीय एकाउंटेंट जब कोई प्रमाण पत्र जारी करते हैं या किसी आईपीओ के लिए जांच रिपोर्ट जारी करते हैं, तो उन्हीं दस्तावेजों का इस्तेमाल करते हैं, जो पेसी ने तैयार किए थे। उस वक्त जब यह काफी चर्चा में नही हुआ करता था, उस समय पेसी आईसीएआई के अध्यक्ष रहते हुए एकाउंटिंग मानक बोर्ड के गठन करने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई थी।
वास्तव में ऐसा करने में उन्हें काफी विरोध का भी सामना करना पड़ा था और चैंबर्स ऑफ कॉमर्स और आधारभूत सिद्धांत मानकीकरण चैंबर्स ने इस बात का विरोध किया था। आज जब उद्योग जगत और नियामक मानक के महत्त्व को स्वीकार कर चुके हैं, तो शायद ही कोई यह सोच रहा होगा कि अकेले व्यक्ति द्वारा जारी की गई कोशिश आज के समय में भी इतनी सार्थक है।
किसी को इस बात का अंदाजा भी नही होगा कि जिस मानक को आज सभी स्वीकार कर चुके हैं, उसको लागू करने के समय पेसी नरेलवाला को कितने ही विरोधों का सामना करना पडा था। कुछ समय पहले आईसीएआई के जर्नल में पेसी ने इस बात का समर्थन किया था कि एकाउंटिंग पेशे को लेकर उद्योग जगत में जो उदासीनता है, उससे लोग इस पेशे पर निशाना भी साध सकते हैं, जबकि इन मानकों को जब कर प्राधिकरण को दिया गया, तो नियामक और दूसरे समूहों को इसे स्वीकार करने और क्रियान्वित करने में काफी कठिनाई महसूस हो रही थी।
पेसी इस बात से पूरी तरह सहमत थे कि आईसीएआई की प्रवृतियों में उत्कृष्टता लाना काफी जरूरी है और इस बाबत यह भी जरूरी है कि इसके हर सदस्यों के बीच काम का बराबर बंटवारा किया जाए। हालांकि यह विचार बहुत ज्यादा प्रसिद्ध नही हुआ, लेकिन समय की नब्ज पर वही अस्तित्व में रहा, जो सही था। वह विकास दर को लेकर थोड़ा व्याख्यात्मक ख्याल रखते थे।
लेकिन यह भी मानते थे कि जितने संसाधन उपलब्ध हैं, उसी से सार्थक विकास की गाथा लिखना काफी जरूरी है और जिस भी प्रकार की सूचनाओं का आदान-प्रदान होता है, उसका सही समन्वय काफी जरूरी है। वे कभी कभी ऐसा भी कहा करते थे कि तकनीक विकास के जरिये सबों की मानसिकता को बदल देना काफी नही है, क्योंकि कोई व्यक्ति अपनी मानसिकता दिन भर में कई बार बदल सकता है, लेकिन किसी दूसरे आदमी की मानसिकता को अगर पूरी जिंदगी में भी एक बार बदल दिया जाए, तो यह बहुत बड़ी उपलब्धि मानी जाती है।
जब एकाउंटिंग प्रोफेशनल के द्वारा विज्ञापन देने की बात चल रही थी,तो उन्होंने कहा था कि उपभोक्ताओं की उत्पादों के बारे में जानकारी लेने की बात की आखिरकार जीत होगी और उसके खरीद करने की प्रवृति ही ऊपर आएगी। हाल ही में जो इस संबंध में संशोधन आए हैं, उससे उनकी दूरदर्शिता झलक रही है। वे एकाउंटिंग प्रोफेशनल के विज्ञापन के पक्ष में उसी समय थे, और आज यह बात लागू होने की स्थिति में है।
पेसी वैश्वीकरण के धुर समर्थक थे। वे इस बात से सहमत थे कि इससे थोडा बहुत देश की संप्रभुता का सिद्धांत प्रभावित होगा, लेकिन इन राष्ट्रीय और क्षेत्रीय विकास की होड़ में बाजार महत्वपूर्ण हो जाएगा। उन्होंने तर्क दिया कि हम लोग उड्डयन, पोषण और पर्यावरण के क्षेत्र में ऐसे मानक स्थापित कर सकते हैं कि यह अंतरराष्ट्रीय स्तर का हो जाए।
तब हमें इस बात की चिंता नही होगी कि इन क्षेत्रों की एकाउंटिंग और ऑडिट के जरिये यह पता लगाया जाए कि इस क्षेत्र ने अंतरराष्ट्रीय मानदंड स्थापित किया या नही। उन्होंने इस तथ्य का प्रतिपादन किया था कि एकाउंटिंग में अगर व्याख्याओं, प्रदर्शन मानकों और नियंत्रण मानकों के बीच में सामंजस्य स्थापित नहीं किया गया तो यह बहुत ही खतरनाक हो जाएगा।
जब तक इसमें शामिल लोगों और कानूनवेत्ताओं के बीच मानकों का सामंजस्य स्थापित नहीं किया जाएगा, तब तक इसे प्रसिद्धि के स्तर तक नही पहुंचाया जा सकता है। पेसी छात्र जीवन से काफी मेधावी थे। वे 1940 में कलकत्ता विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र और कानून की परीक्षा में रैंकधारी थे।
उन्होंने इंगलिश इंस्टीटयूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट में भी अपना रैंक सुनिश्चित किया था। अस्सी साल की उम्र में वे आईएफआरएस को संवारने का काम कर रहे। यह उस समय एक नई प्रोफेशनल मानकों के तहत बिल्कुल नया प्रयोग था और इसी पर बहस के दौरान वह अंतिम बार एक चैंबर ऑफ कॉमर्स की तकनीकी प्रशाखा की सभा में देखे गए थे।
उनकी दूरदर्शिता कमाल की थी। 1980 में एक सभा में बतौर वक्ता उन्होंने जो कहा था वह कुछ इस प्रकार था- इस व्यवसाय में आप लंबी दूरी का घोडा बन सकते हैं। 10 साल के बाद वह व्यक्ति प्रमुख एकाउंटिंग व्यवसाय का प्रमुख बना। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि वे कितने बड़े भविष्यद्रष्टा थे।
वे सख्त अनुशासन के पोषक थे। वे हर अखबार पढ़ा करते थे और उसे पढ़ने के बाद साढ़े दस बजे के करीब कूड़ेदान में डाल दिया करते थे। 8 अगस्त की सुबह उन्होंने अपनी सचिव को बुलाया और उससे यह लिखाया कि उनकी कुछ चीजों को उनके सहयोगियों और वफादार सहायकों में किस तरह बांटी जाए।
ये लोग उनके साथ कई अरसे से काम कर रहे थे। इसके बाद वह खाने की मेज पर बैठे और अपनी सचिव से खाने के बाद कहा कि एनी , अब मैं शांति से मर सकता हूं। रात में ठीक ऐसा ही हुआ- डिनर के बाद। एक अद्भुत दास्तान, एक अद्भुत इंसान की, एक बेहतरीन भविष्यद्रष्टा की।