बैंक में पर्याप्त राशि जमा न होने के बावजूद अगर कोई चेक जारी करता है, तो उसे तभी दोषी माना जाएगा जब चेक वित्तीय देनदारी या कर्ज चुकाने के लिए जारी किया गया हो।
कुमार एक्सपोर्ट बनाम शर्मा कारपेट के मामले में कुमार एक्सपोर्ट ने कारपेट खरीदने के लिए दो अग्रिम चेक जारी किए। हालांकि सामान का न तो उत्पादन हुआ और न ही उसकी आपूर्ति की गई। जब चेक बाउंस कर गया, तो कारपेट कंपनी ने निर्यातक कंपनी के खिलाफ मामला दर्ज कर दिया।
मजिस्ट्रेट ने इस शिकायत को खारिज कर दिया। लेकिन पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने निर्यातक को दोषी माना और मजिस्ट्रेट को दंड निर्धारित करने के लिए कहा।
निर्यातक कंपनी की अपील के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने यह व्यवस्था दी कि जब कारपेट की बिक्री नहीं हुई, तो निर्यातक कंपनी ने जो चेक जारी किया, उसे लेकर उस पर दोषारोपण करना जायज नहीं है।
क्योंकि इसमें निगोशिएबुल इंस्ट्रूमेंट ऐक्ट की धारा 138 का कोई उपयोग नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया की भी आलोचना की, जिसमें निर्यातक को दोषी करार दिया गया और मजिस्ट्रेट को सजा निर्धारित करने का आदेश दिया गया था।
गेंद बोर्ड के पाले में
सुप्रीम कोर्ट ने ‘फील्ड मार्शल’ ट्रेडमार्क मामले में तीन पक्षों के विवाद में दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया है। सर्वोच्च अदालत ने बौद्धिक संपदा अपील बोर्ड से फिर से इस मामले की जांच करने को कहा है। यह मामला तीन पक्षों के बीच फंसा हुआ है।
एक है ठुकराल मैकेनिकल वर्क्स, जो सेंट्रीफ्यूजल पंप्स और दूसरे कई उत्पाद बनाती है। दूसरी, आटा मिल और पंप्स बनाने वाली जैन इंडस्ट्रीज और तीसरी डीजल इंजन बनाने वाली पीएम डीजल्स (प्राइवेट) लिमिटेड है। यह विवाद पिछले दो दशकों से भी ज्यादा लंबा खिंच गया है।
इस पूरे मामले को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया। कोर्ट ने ट्रेड एंड मर्केंडाइज एक्ट की धारा 46(1)(बी) के तहत किसी भी कंपनी द्वारा पांच साल तक किसी विशेष ट्रेडमार्क का इस्तेमाल न करने की स्थिति में बोर्ड से फैसला करने को कहा है।
ए एंड जी को राहत
सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए ए ऐंड जी प्रोजेक्ट्स एंड टेक्नोलॉजीज लिमिटेड को केंद्रीय बिक्री कर में राहत दी है। कंपनी ने कर्नाटक पावर ट्रांसमिशन कॉर्पोरेशन लिमिटेड से तीन स्वतंत्र अनुबंध किए थे।
कंपनी ने तमिलनाडु के उत्पादकों और आपूर्तिकर्ताओं के साथ भी चार अनुबंध कर लिए। कर्नाटक सरकार ने राज्य के बाहर से आने वाली वस्तुओं पर बिक्री कर लगा दिया।
दूसरी ओर कंपनी ने केंद्रीय बिक्री कर अधिनियम की धारा 3 (ए) के तहत राज्य सरकार से इस मामले में कुछ रियायत मांगी। यह कानून एक राज्य से दूसरे राज्यों में वस्तुओं की आवाजाही से जुड़ा है। राज्य सरकार ने कंपनी की अर्जी ठुकरा दी।
कर्नाटक हाई कोर्ट का भी यही कहना है कि सरकार कर वसूल कर सकती है। इसके बाद कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और सुप्रीम कोर्ट ने उसे राहत भी दी।
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि इस मामले में तमिलनाडु सरकार को कर वसूलने का अधिकार मिलता है न कि कर्नाटक सरकार को।
केरल सरकार को देना होगा ब्याज भी
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि केरल सरकार सरस्वती अभारनसला नाम के सर्राफा कारोबारी से वसूले गए अधिक बिक्री कर को ब्याज सहित वापस करे। मामला यह है कि सर्राफा कारोबारी ने कॉर्पोरेशन बैंक से 42 करोड़ रुपये का सोना खरीदा। खरीदार के नाम पर बैंक ने ही कर अदा कर दिया।
लेकिन तभी सरकार ने कर को एक फीसदी से घटाकर 0.05 फीसदी कर दिया और इसे तत्काल प्रभाव से लागू भी कर दिया गया। हालांकि, बैंक ने सरकार को जो ज्यादा कर का भुगतान किया था, सरकार ने उसे वापस करने से मना कर दिया।
सरकार का कहना था कि जब एक बार कर जमा हो गया तब उसको वापस नहीं किया जाता। बैंक ने सुप्रीम कोर्ट में मामले को उठाया। सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार को आदेश दिया कि बैंक को न केवल ज्यादा जमा किया हुआ कर दिया जाए बल्कि 10 फीसदी ब्याज के साथ रकम वापस की जाए।
ब्याज शामिल होगा कर्ज की रकम में
सर्वोच्च न्यायालय ने यह व्यवस्था दी है कि अगर किसी राशि पर दी जाने वाली ब्याज दर अगर बकाया है, तो वह भी कर्ज जैसा ही होगा और इसे लेकर डिफॉल्टिंग कंपनी के खिलाफ वाइंडिंग अप याचिका दायर की जा सकती है।
विजय इंडस्ट्रीज बनाम एनएटीएल टेक्नोलॉजिज लिमिटेड के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कई उच्च न्यायालयों की दुविधा का समाधान किया। इस मामले में विजय इंडस्ट्रीज, जो कि एक छोटी इकाई है, दूसरी कंपनी को अरंडी के तेल की आपूर्ति करती थी।
इस आपूर्ति के लिए भुगतान किया जा रहा था, लेकिन बैलेंस को लेकर कुछ विलंब और विवाद कायम थे। इसलिए एनएटीएल टेक्नोलॉजिज के खिलाफ एक वाइंडिंग अप याचिका दायर की गई। आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने प्रथम दृष्टया इसे वाइंडिंग अप का मामला माना। लेकिन एक पीठ इस मामले पर राजी नहीं था।
इस अपील पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि एनएटीएल तेल आपूर्ति करने वाले को मुआवजा देने के लिए राजी है, तो मूलधन पर ब्याज देना भी आवश्यक है। कंपनी कानून की धारा 433 में यह कहा गया है कि कर्ज एक निश्चित राशि नहीं मानी जाती है।
इस निर्णय में उच्च न्यायालय के निर्णय को निरस्त करते हुए यह कहा गया कि ब्याज देने के बाद इसे नहीं चुकाना कर्ज की श्रेणी में रखा जाएगा।