एचएएल व बीडीएल ओएफएस को एलआईसी, एसबीआई का सहारा

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 14, 2022 | 10:26 PM IST

चालू वित्त वर्ष में सरकार की विनिवेश अभियान की शुरुआत को भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) और भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) जैसे संस्थानों से सहारा मिला है। अगर एलआईसी और एसबीआई)जैसे सरकारी संस्थान आगे नहीं आए होते तो सरकार के लिए मुश्किलें बढ़ सकती थीं। सरकार ने इस वित्त वर्ष में विनिवेश कार्यक्रम की शुरुआत हिंदुस्तान एयरोनॉटिकल्स (एचएएल) के 4,900 करोड़ रुपये के ऑफर फॉर सेल के साथ की थी। इसके बाद भारत डायनामिक्स (बीडीएल) का 770 करोड़ रुपये का ओएफएस बाजार में आया था।
रक्षा क्षेत्र की इन दोनों कंपनियों की शेयरधारिता आंकड़ों से पता चलता है कि एलआईसी और एसबीआई दोनों सरकार के लिए संकटमोचक बन कर सामने आए। एलआईसी ने एचएएल ओएफएस में करीब 50 प्रतिशत शेयरों की खरीदारी की, जबकि एलआईसी और एसबीआई दोनों ने मिलकर बीडीएल ओएफएस में करीब 3 चौथाई शेयर खरीद लिए। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि एलआईसी इसकी जैसी दूसरी सरकार इकाइयां सार्वजनिक उपक्रमों में विनिवेश प्रक्रिया में प्रमुख भूमिका में रही है। हालांकि विशेषज्ञ सरकार के 2 लाख करोड़ रुपये के विनिवेश लक्ष्य पर सवाल खड़े करने लगे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि जब अपेक्षाकृत छोटे निर्गम भी निवेशकों को आकर्षित नहीं कर पा रही है तो ऐसे में सरकार के लिए लक्ष्य हासिल करना मुश्किल होगा।
प्राइम डेटाबेस के संस्थापक पृथ्वी हल्दिया ने कहा, ‘एक बार फिर इतिहास दोहराया जा रहा है। हमने पहले भी देख चुके हैं कि किस तरह आईपीओ और अनुवर्ती निर्गमों के लिए एलआईसी खेवनहार बनकर सामने आई। इससे इतना तो साफ है कि सरकार कीमतों को लेकर सही आकलन नहीं कर पा रही है। सरकार को आईपीओ की कीमतें तय करने पर दोबारा विचार करना होगा।’ वित्त वर्ष 2021 की पहली छमाही में बाजार में अनुकूल परिस्थितियों के बावजूद लक्ष्य का एक छोटा हिस्सा ही प्राप्त किया जा सका। केजरीवाल रिसर्च ऐंड इन्वेस्टमेंट सर्विसेस के संस्थापक अरुण केजरीवाल ने कहा, ‘कोविड-19 के दुष्प्रभावों के बीच भी बाजार में तेजी जारी थी और रकम जुटाने का सिलसिला भी नए स्तर पर पहुंच गया था। लेकिन सार्वजनिक उपक्रमों के शेयरों को लेकर निवेशक थोड़े उदासीन लग रहे हैं।’ केंद्र सरकार का मानना है कि इस वित्त वर्ष एलआईसी का आईपीओ काफी हद तक कमी की भरपाई कर देगा। हालांकि अभी तक आईपीओ के दस्तावेज भी तैयार नहीं हुए हैं, इसलिए इस वर्ष इसका आना संदिग्ध लग रहा है।
विशेषज्ञों ने कहा कि सरकार को जल्द ही उन कंपनियों के नाम तय करने होंगे, जिनमें वह हिस्सेदारी बेचना चाहती है। केजरीवाल ने कहा, ‘पहली छमाही में अपेक्षाकृत छोटे स्तर पर हिस्सेदारी बिक्री से बहुत अंतर नहीं आएगा। जब सरकार किसी बड़ी कंपनी में हिस्सेदारी नहीं बेचेगी तब तक विनिवेश का लक्ष्य पाना मुश्किल लग रहा है। बीपीसीएल सरकार के लिए विकल्प हो सकती है, जिसके लिए सरकार अभिरुचि पत्र आमंत्रित कर चुकी है। अगर यह सौदा आगे बढ़ा तो सरकार को इससे बड़ी मदद मिलेगी।’ हल्दिया ने कहा कि वित्तीय तंत्र में नकदी की कोई कमी नहीं है और सरकार को इसका लाभ लेने के लिए सही कीमतें निर्धारित करने के साथ उपयुक्त समय का चयन करना होगा।

First Published : October 19, 2020 | 11:30 PM IST