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अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के आयातित ब्रांडेड या पेटेंट वाली दवाओं पर 100 फीसदी आयात शुल्क (टैरिफ) लगाने के फैसले से भारतीय दवा कंपनियों पर असर पड़ने की संभावना कम है क्योंकि वे ज्यादातर जेनेरिक दवाओं की आपूर्ति ही अमेरिका को करती हैं। विश्लेषकों के अनुसार, अमेरिका के ब्रांडेड दवाओं के बाजार में सन फार्मा, बायोकॉन, अरबिंदो फार्मा और अन्य भारतीय कंपनियों को थोड़ा नुकसान हो सकता है।
ट्रंप ने सोशल मीडिया मंच ट्रुथ सोशल पर टैरिफ की घोषणा की जिसके बाद शुक्रवार को निफ्टी फार्मा सूचकांक 2.14 प्रतिशत गिर गया। उन्होंने कहा कि जिन फार्मास्यूटिकल कंपनियों ने अमेरिका में अपने संयंत्र का निर्माण शुरू कर दिया है या जो बनाने की तैयारी में हैं उन पर शायद यह टैरिफ न लगे। कुछ हफ्ते पहले ही ट्रंप ने यूरोप में बनने वाली ब्रांडेड दवाओं पर भी 15 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा की थी।
जानकारों का कहना है कि उनकी नई घोषणा से ब्रांडेड दवाइयों पर लगने वाले टैरिफ को लेकर काफी भ्रम की स्थिति बन गई है। नुवामा के विश्लेषकों के एक नोट में उन भारतीय कंपनियों के नाम की सूची है जिनकी अमेरिका के ब्रांडेड दवा बाजार में मौजूदगी है। इनमें सन फार्मा (इनोवेटिव मेडिसिंस डिविजन, वित्त वर्ष 2025 में 1.1 अरब डॉलर), बायोकोन (ब्रांडेड बायोसिमिलर 45 करोड़ डॉलर से कम) और अरबिंदो (कैंसर की ब्रांडेड दवाएं, 10 करोड़ डॉलर का राजस्व) शामिल हैं।
बंबई स्टॉक एक्सचेंज में सन फार्मा के शेयरों में 2.5 फीसदी की गिरावट आई वहीं बायोकॉन के शेयर लगभग 5 फीसदी और अरबिंदो के शेयर 0.72 फीसदी तक गिर गए।
क्रिसिल के वरिष्ठ निदेशक अनुज सेठी ने कहा, ‘कुछ घरेलू दवा बनाने वाली कंपनियों की ब्रांडेड और पेटेंटे वाली दवाओं के क्षेत्र में अच्छी पकड़ है लेकिन इन दवाइयों का उनकी कमाई में योगदान कम है। इसके अलावा, दवाएं एकदम जरूरी चीजों की श्रेणी में आती हैं ऐसे में टैरिफ का अधिकांश बोझ ग्राहकों पर डाला जा सकता है। कुछ घरेलू कंपनियों के अमेरिका में विनिर्माण संयंत्र भी हैं, जिससे उन्हें नए कर से छूट मिल जाएगी।’
नुवामा के विश्लेषकों का कहना है कि जुबिलैंट फार्मा को इससे फायदा हो सकता है, क्योंकि वॉशिंगटन के पास स्पोकेन में उसकी एक सीडीएमओ इकाई है। एक और भारतीय दवा कंपनी एल्केम भी अमेरिका में एक छोटी सीडीएमओ इकाई लगा रही है ऐसे में उसे भी ट्रंप के टैरिफ से राहत मिल सकती है।
दवा निर्यात करने वाली बड़ी कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने वाले इंडियन फार्मास्यूटिकल अलायंस (आईपीए) का कहना है कि उसे घरेलू कंपनियों पर ज्यादा असर नहीं दिख रहा है।