अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प
रूस से कच्चा तेल खरीदने वाले देशों पर शुल्क लगाने की अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की चेतावनी के बाद सरकार स्थिति पर करीबी नजर रख रही है। एक अधिकारी ने यह जानकारी दी। यूक्रेन युद्ध के बाद से रूस भारत के लिए कच्चे तेल की आपूर्ति का सबसे बड़ा स्रोत बना हुआ है।
रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन की ओर से शांति वार्ता में धीमी प्रगति से निराश ट्रंप ने रविवार को रूस के खिलाफ द्वितीयक प्रतिबंधों की चेतावनी दी। उन्होंने संकेत दिया कि जब तक पुतिन यूक्रेन में युद्ध विराम के लिए सहमत नहीं होते तब तक अमेरिका रूस से तेल खरीदने वाले देशों के निर्यात पर 25 से 50 फीसदी तक शुल्क लगा सकता है। हाल में ट्रंप ने वेनेजुएला से तेल खरीदने वाले देशों पर 25 फीसदी शुल्क लगाने की घोषणा की थी, जो 2 अप्रैल से प्रभावी होगा।
एक अधिकारी ने कहा, ‘यह अमेरिका-रूस संबंधों में नया घटनाक्रम है। पहले से ही दोनों देशों के बीच अस्थिर कूटनीतिक परिदृश्य अब और अप्रत्याशित हो गया है। हम स्थिति का आकलन कर रहे हैं।’
ट्रंप की ताजा धमकी ने सरकारी अधिकारियों को परेशान कर दिया है क्योंकि वित्त वर्ष 2025 के पहले 9 महीनों में मूल्य के हिसाब से भारत के कच्चे तेल के आयात में रूस का हिस्सा 36.47 फीसदी था जो वित्त वर्ष 2024 की समान अवधि में 33.71 फीसदी और वित्त वर्ष 2023 में 16.72 फीसदी था। यूक्रेन युद्ध से पहले भारत के तेल आयात में रूस का हिस्सा 1 फीसदी से भी कम था मगर अब वह सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और कुवैत जैसे पारंपरिक देशों को पीछे छोड़कर सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बन गया है।
इस बीच अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात का अड्डा बना हुआ है। वित्त वर्ष 2025 की अप्रैल-दिसंबर अवधि में अमेरिका को कुल 60 अरब डॉलर मूल्य का निर्यात किया किया जो कुल निर्यात का 18.62 फीसदी है।
रूस से कच्चे तेल के आयात पर पहले से ही दबाव है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडन की अगुआई वाली सरकार ने 10 जनवरी को रूस के खिलाफ अपने अब तक के सबसे व्यापक प्रतिबंधों की घोषणा की थी जिसमें तेल उत्पादकों, शिपिंग फर्मों, व्यापारियों और बंदरगाहों को लक्षित किया गया था।
अमेरिका के वित्त विभाग ने रूसी की प्रमुख तेल और गैस कंपनियों गैजप्रोम नेफ्ट और सर्गुटनेफ्टेगास पर प्रतिबंध लगा दिए हैं। भारत के लिए चिंता की बात यह है कि अमेरिका ने रूसी कच्चे तेल का परिवहन करने वाले 183 जहाजों को भी काली सूची में डाल दिया है।
एक अधिकारी ने बताया कि तेल मार्केटिंग कंपनियों ने पहले भी अचानक नीतिगत बदलावों और भू-राजनीतिक व्यवधानों का सामना किया है। उन्होंने कहा, ‘हाल के महीनों और पिछले साल रूसी कच्चे तेल के आयात में कमी आई है। हमारे आयातक अन्य उत्पादक देशों के साथ लगातार बात कर रहे हैं।’