विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के सत्र में कहा कि विकासशील देशों की आवाज बुलंद होने के साथ-साथ बहुध्रुवीय दुनिया के उभरने से वैश्विक एजेंडा तय करने वाले कुछ देशों के दिन अब लद गए हैं जिनकी उम्मीद है कि सभी देश उनके एजेंडे का अनुसरण करें।
संयुक्त राष्ट्र महासभा के 78वें वार्षिक सत्र को संबोधित करते हुए जयशंकर ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में विविधता है और इसे इस विविधता को बनाए रखना चाहिए। भारत के खिलाफ कनाडा के आरोपों को लेकर अमेरिका और फ्रांस जैसे पश्चिमी सहयोगी देशों के रुख पर टिप्पणी करते हुए जयशंकर ने कहा कि हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि राजनीतिक सुविधा के हिसाब से आतंकवाद, उग्रवाद और हिंसा के खिलाफ कदम तय किए जाते हैं। भारत ने संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों से कहा कि वे आतंकवाद, उग्रवाद और हिंसा के खिलाफ कदम उठाते हुए या अपनी प्रतिक्रिया देते वक्त ‘राजनीतिक सहूलियत’ को तरजीह न दें।
कनाडा पर सीधी टिप्पणी करते हुए जयशंकर ने कहा, ‘क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान और आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना बेहतर अवसर पाने या लाभ पाने वाली कवायद नहीं हो सकती।
जयशंकर ने संकेत दिया कि इन कदमों ने ही विकासशील देशों को अलग-थलग कर दिया है। उन्होंने कहा, ‘जब बयानबाजी में हकीकत नहीं होती है तब हमें इसे बाहर निकालने का साहस होना चाहिए। असली एकजुटता के बिना वास्तविक तरीके से भरोसे की स्थिति नहीं बन सकती है। विकासशील देशों की यही धारणा है।’
जयशंकर ने हाल ही में नई दिल्ली में हुए जी20 शिखर सम्मेलन का भी जिक्र किया और दलील दी कि भारत ने 125 देशों विकासशील और अविकसित देशों की चिंताओं को एजेंडे में रखा। उन्होंने कहा, ‘ऐसे समय में जब पूर्वी-पश्चिमी देशों का ध्रुवीकरण इतनी तेजी से हो रहा है और उत्तर दक्षिण में अंतर इतना गहरा है तब भी नई दिल्ली जी-20 शिखर सम्मेलन ने दिखा दिया कि कूटनीति ही आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है।’
विदेश मंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि भारत ने अपने लिए जो घरेलू और विदेश नीति के लक्ष्य निर्धारित किए हैं उनकी वजह से यह उन देशों के मुकाबले अपना एक अलग मुकाम बनाएगा जिनका उभार इससे पहले हुआ है। उन्होंने कहा, ‘सभी देश अपने राष्ट्रीय हित को देखते हैं। भारत ने कभी इसे वैश्विक कल्याण के विपरीत नहीं देखा।’
जयशंकर ने पिछले कुछ वर्षों में भारत की कूटनीतिक पहुंच और इसके द्वारा दी गई आपातकालीन मदद का भी जिक्र किया। इसमें कोविड महामारी के दौरान गरीब देशों को टीके की आपूर्ति के लिए शुरू की गई ‘वैक्सीन मैत्री पहल’, अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन और ‘आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढांचे के लिए गठबंधन’ जैसे प्रयास शामिल हैं जिसके तहत तुर्किये और सीरिया में आपदा के दौरान दिया गया समर्थन और मदद भी है।
उन्होंने कहा, ‘दुनिया की सबसे अधिक आबादी और पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को इस बात का अंदाजा है कि इसकी प्रगति से दुनिया में वास्तविक तरीके से फर्क पड़ता है। खासतौर पर इसलिए कि इतने सारे देश हमारे इतिहास, भूगोल या सांस्कृतिक वजहों से हमसे जुड़ते हैं।’
उन्होंने कहा, ‘हमें टीके को लेकर भेदभाव जैसे अन्याय को फिर से नहीं दोहराना चाहिए। जलवायु परिवर्तन से जुड़े मुद्दे की कार्रवाई पर भी ऐतिहासिक जिम्मेदारियों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। बाजार की शक्ति का उपयोग भोजन और ऊर्जा को जरूरतमंदों से लेकर अमीर तक पहुंचाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।’