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उत्तर भारत में धीमी हवा, वायु की गुणवत्ता हुई ‘खराब’

Published by
नितिन कुमार
Last Updated- December 27, 2022 | 12:02 AM IST

सिंधु और गंगा के मैदानी इलाकों में प्रदूषण का अधिक स्तर बरकरार है जबकि पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाएं कम हो गई हैं। मौसम के विशेषज्ञों के अनुसार बारिश नहीं होने के कारण उत्तर भारत में प्रदूषण का अधिक स्तर कायम है। इससे वायु गुणवत्ता सूचकांक खराब से गंभीर की श्रेणियों के इर्द-गिर्द घूम रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक हवा की स्थिर व धीमी गति ने प्रदूषण को बढ़ाने में योगदान दिया है।

विशेषज्ञों ने उत्तर भारत में प्रदूषण के लिए ‘सर्दी के हस्तक्षेप’ को जिम्मेदार करार दिया है। इसमें गर्म हवाओं के बीच ठंडी हवा फंस जाती है। इससे पृथ्वी की सतह के करीब प्रदूषण फैलाने वाले तत्त्व कैद हो जाते हैं और उन्हें वायुमंडल में फैलने की जगह नहीं मिल पाती है। यह घटना वायुमंडलीय कंबल की तरह होती है। स्काईमेट वेदर के मौसम विभाग व जलवायु परिवर्तन के वाइस प्रेजिडेंट महेश पलावत के अनुसार,’उत्तर पश्चिम की ठंडी हवाएं मैदानी इलाकों में पहुंचती हैं तो न्यूनतम तापमान में गिरावट आती है और यह गिरकर इकाई में आ जाता है।

ऐसे में वातावरण से प्रदूषक तत्वों का बिखरना बेहद मुश्किल हो जाता है। लिहाजा तापमान जितना ज्यादा गिरता है, उत्क्रमण परत (इंवर्जन लेयर) और मोटी हो जाती है। ऐसे में यह परत जितनी मोटी होती जाएगी, उतना ही सूर्य की रोशनी या हवा को उसके पार जाकर प्रदूषण के स्तर को कम करना मुश्किल होता जाता है।’ उत्क्रमण परत होने की स्थिति में समुद्र तल से ऊंचाई बढ़ने पर गर्मी भी बढ़ती जाती है।

प्रदूषण के स्तर को बढ़ाने में औद्योगिक गतिविधियां, वाहनों के प्रदूषण और वातावरण की स्थितियां भी जिम्मेदारी होती हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक प्रदूषण को फैलने में मदद करने के लिए शहरों को स्रोत पर उत्सर्जन में भारी कटौती करनी होगी। उनके मुताबिक बारिश की कमी को हिमालय क्षेत्र में पश्चिमी विक्षोभ की अनुपस्थिति से जोड़कर देखा गया है। इसके कारण पश्चिमी हिमालय के क्षेत्रों में अलग-अलग जगहों पर बर्फबारी हुई और आसपास के क्षेत्रों में बारिश हुई। दिसंबर में कमजोर पश्चिमी विक्षोभ नजर आ रहा है और इसका मौसम पर असर नहीं पड़ा है।

भारत के मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार नवंबर में उत्तर भारत से पांच पश्चिमी विक्षोभ गुजरे थे। इनमें से केवल दो विक्षोभ (2 से 5 नवंबर और 6 से 9 नवंबर) के दौरान पश्चिमी हिमालय में छिटपुट जगहों पर बारिश या बर्फबारी हुई और उसके आसपास के इलाकों में बारिश हुई। उसके अनुसार अन्य तीन विक्षोभ कमजोर पड़ गए थे (13-15, 18-21 और 22-24 नवंबर) और उनका क्षेत्र पर कोई असर नहीं पड़ा।

विशेषज्ञों के मुताबिक पश्चिमी विक्षोक्षों के अलावा प्रशांत महासागर के ऊपर होने वाली वायुमंडलीय घटना ला नीना ने भी हालिया मौसम के पैटर्न में योगदान दिया है। भारतीय तकनीकी संस्थान कानपुर के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर एसएन त्रिपाठी के अनुसार,’बड़ी पर्यावरणीय गतिविधियों जैसे ली नीना ने भी परिसंचरण (सरकुलेशन) को धीमा किया है। हमें वायु गुणवत्ता की भविष्यवाणी के लिए और ‘पूर्व चेतावनी के सिस्टम’ की जरूरत है। इन सिस्टमों की मदद से हम यह जान पाएंगे कि मौसम की गतिविधियों में कम योगदान देने वाले कौन से कारक हैं।’ भारत के मौसम विभाग ने 26 दिसंबर तक दिल्ली के लिए येलो अलर्ट जारी किया था। अनुमान यह है कि गहरी धुंध छायी रहेगी और अधिकतम व न्यूनतम तापमान में गिरावट आएगी।

First Published : December 26, 2022 | 10:02 PM IST