खाद्य नियामक भारतीय खाद्य संरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने ‘रेडी टू ड्रिंक’ या ‘कम अल्कोहल वाले पेय’ की अलग श्रेणी बनाई है। इसमें अल्कोहल की मात्रा 0.5-8 फीसदी है। यह नई श्रेणी अल्कोहल वाले शीतल पेय पदार्थ के समूह में ही बनाई गई है। उस महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम के तहत कम अल्कोहल वाली ‘रेडी टू ड्रिंक’ के मानदंड, अवयव और परिभाषा तय की गई है। इसके अलावा अधिसूचना में देसी दारू के अवयव भी तय किए गए हैं।
नियामक के सूत्रों ने बताया कि खाद्य सुरक्षा के मानदंडों में 2018 से अल्कोहल वाले शीतल पेय पदार्थ थे। लेकिन हाल ही में ‘कम अल्कोहल वाले शीतल पेय पदार्थ / रेडी टू ड्रिंक उत्पादों’ को अलग से पारिभाषित व उनके खास सुरक्षा मानदंडों को शामिल किया गया है। प्राधिकरण के अधिकारियों ने स्पष्ट किया, ‘यह मानदंड में संशोधन है और इसमें मौजूद परिभाषाओं को नहीं बदला गया है।’
कुछ दिन पूर्व जारी अधिसूचना के मुताबिक रेडी-टू – ड्रिंक या कम अल्कोहल वाले शीतल पेय पदार्थ में कम अल्कोहल होना चाहिए। सुगंधित शीतल पेय में अल्कोहल एबीवी (अल्कोहल बाई वॉल्यूम) 0.5 से 8 फीसदी हो। इसे स्प्रिट या स्प्रिट के मिश्रण या वॉइन और बीयर के अलावा अन्य अल्कोहल वाले शीतल पेय पदार्थ से बनाया गया हो। इसका मूल आधार प्राकृतिक या प्राकृतिक रूप से चिह्नित या कृत्रिम स्वाद और/या में एफएसएस (एफपीएस ऐंड एफ) नियामक 2011 के तहत मंजूर खाद्य एडेटिव हों; और या चीनी/नमक युक्त व उनके बिना फलों या सब्जियों का रस और कार्वोनेट या बिना कार्वोनेट वाले रस हों।
इस उद्योग के दिग्गजों ने इस कदम का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि कम अल्कोहल वाले शीतल पेय पदार्थ और रेडी-टू-ड्रिंक उत्पादों की अलग से विशिष्ट श्रेणी बनाकर मूल्य श्रृंखला में शामिल हरेक के लिए कहीं अधिक स्पष्ट कर दिया गया है।
इसी अधिसूचना में एफएसएसएआई ने स्पष्ट किया कि देसी दारू या भारतीय शराब के क्या अवयव हों। इसमें पारिभाषित किया गया कि देसी दारू या भारतीय शराब अल्कोहल वाले पेय पदार्थ को खेत में उपजाए गए उत्पाद के फरमेंटिड कार्बोहाइड्रेट के डिस्टीलेशन से बने।
इसमें आगे स्पष्ट किया गया कि सादा देसी शराब या सादा भारतीय शराब वो है जिसे खांड, गुड़ के फरमेंटेशन के बाद एल्कोहलिक डिस्टीलेट, अनाज के मिश्रण, आलू, कसावा, फलों, नारियल के जूस और ताड़ के पत्ते, महूआ फूल या किसी अन्य कृषि उत्पाद को कार्बोहाइड्रेट करके बनाया हो।