दूसरी छमाही तय करेगी दिशा

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 10, 2022 | 5:34 PM IST

जनवरी 2007 की शुरुआत के 6,537 अंकों के रिकॉर्ड उच्च स्तर से निफ्टी फिसलता ही जा रहा है। साल का न्यूनतम स्तर अक्टूबर के आखिरी में आया जब यह 2,252 अंकों पर आ गया। उच्चतम स्तर से न्यूनतम स्तर के बीच 64.5 प्रतिशत का फर्क देखा गया।


किसी भी मानक के हिसाब से देखा जाए तो यह बड़ी मंदी का दौर है। हालांकि, इसके बाद के दो महीनों में इसमें 800 अंकों की बढ़त हुई।

इसके बावजूद यह अपने उच्चतम स्तर से 53 प्रतिशत नीचे रहा। अभी तक भारतीय बाजार की यह सबसे बड़ी गिरावट रही है वह भी बाजार की सबसे बड़ी तेजी के बाद।

बाजार में मंदी का दौर कब तक जारी रह सकता है और गिरावट की हद क्या हो सकती है? हम वैश्विक आर्थिक मंदी की दौर से गुजर रहे हैं जिसका मतलब है कि वैश्विक धारणाएं सकारात्मक नहीं हैं और हाल-फिलहाल इसमें सुधार नहीं होने वाला है। नकदी के संकट से निपटने के लिए आर्थिक राहत पैकेज लाए गए।

भारत की ही बात करें तो जीडीपी आकलन और अधिकांश कंपनी आधारित आय के अनुमानों से लगता है कि वित्त वर्ष 2009-10 दुखी करने वाला होगा।

आम चुनाव होने वाले हैं और इसके साथ ही राजनीतिक अनिश्चतता की काली छाया सामने खड़ी है। बाजार को अनिश्चितता पसंद नहीं है और निवेशक अगली सरकार बनने तक निवेश में दिलचस्पी नहीं दिखाएंगे।

अगर, बहुमत की सरकार नहीं बनती है, जिसकी संभावना सबसे अधिक है, तो बाजार में मई 2004 जैसा ही माहौल देखने को मिल सकता है।

इसका मतलब है कि बाजार में गिरावट के लिए कई कारक होंगे। आवधिक गणनाएं और चार्ट के भविष्य संबंधी अनुमानों के अनुसार अगले छह महीनों की समयावधि में कीमतों में गिरावट देखने को मिल सकती है।

आगे के अनुमानों से पहले आइए कुछ स्तर और उनसे संबध्द रुझानों के बारे में जान लेते हैं। अगर, बाजार में मंदी का दौर जारी रहा तो 2250 का स्तर टूट जाएगा और न्यूनतम स्तर का एक नया पैटर्न तैयार होगा। अगर बाजार में तेजी का दौर लौटता है तो बाजार अपने 200 दिन के कारोबारी औसत (डीएमए) से ऊपर बढ़ना शुरू हो जाएगा।

200 डीएमए का लक्ष्य वर्तमान में 3800 से 4000 का है। तीसरी संभावना है कि बाजार 2250 के स्तर से ऊपर बना रहेगा लेकिन यह 200 डीएमए के लक्ष्य को पार नहीं कर पाएगा।

इस मामले में सीमित कारोबार एक दायरे में होता देखा जाएगा। बाजार की दिशा चाहे जो भी हो, इंट्रा-डे और सप्ताह दर सप्ताह अस्थिरता अधिक हो सकती है।

कारोबार की मात्रा वैसे ही घट चुकी है जैसा कि बाजार में मंदी के दौर में सामान्य तौर पर देखा जाता है। चढ़ने वाले शेयरों की संख्या कम है तो गिरने वाले शेयरों की ज्यादा।

प्राइमरी मार्केट अवरोध की दशा में है और बड़े आईपीओ आने की संभावना भी कम है। ये सब बाजार में मंदी के दौर को प्रदर्शित करने वाले कारक हैं लेकिन ये समाप्त भी हो सकते हैं।

अब हम बाजार की मंदी के संभावित लक्ष्य पर निगाह डालते हैं। 57 महीनों में (अप्रैल 2003 से जनवरी 2008) के दौरान बाजार में 325 अंकों से अधिक की बढ़त हुई। समय के हिसाब से देखें तो ऐसा तकरीबन 19 महीने या उससे अधिक समय (तेजी की अवधि का एक तिहाई) तक चल सकता है।

इससे स्पष्ट होता है कि साल 2009 की दूसरी छमाही में बाजार की वापसी की उम्मीद की जा सकती है। कीमतों की बात करें तो 2250 अंकों का स्तर समर्थन की दृष्टि से महत्वपूर्ण होगा। अगर 2250 का स्तर टूटता है तो समर्थन का अगला स्तर 1900 से 2000 का होगा।

ध्यान देने योग्य महत्वपूर्ण कारकों में विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) भी शामिल होंगे। साल 2008 में इनकी गतिविधि नकारात्मक थी।

अगर एफआईआई के रवैये में बदलाव आता है या कम से कम बिकवाली में नरमी आती है तो बाजार पर दबाव कम होगा। तब कोई व्यक्ति यह आशा कर सकता है कि एफआईआई मंदी की बिकवाली कर चुके हैं।

घरेलू संस्थागत निवेशकों (डीएफआई) के व्यवहार में ज्यादा बदलाव आने की संभावना नहीं है। डीएफआई का रुख साल 2008 से सकारात्मक रहा है और संभावना है कि इनका व्यवहार बाजार के प्रति ऐसा ही रहेगा।

कुछ ऐसे सकारात्मक कारक हैं जो दीर्घावधि के निवेश के लिए आकर्षित कर सकते हैं। ट्रेजरी बिल में गिरावट के बाद ब्याज दरों के कम होने की संभावना बढ़ गई है।

इसके अतिरिक्त, कई शेयरों और प्रमुख सूचकांकों के मूल्यांकन ऐतिहासिक दृष्टि से आकर्षक स्तर पर हैं। ये दोनों ही बाजार की तेजी के कारक हैं। मुनाफे की दृष्टि से हर कोई बुरी खबर की अपेक्षा कर रहा है। इससे भी सकारात्मक  बदलाव की संभावना बढ़ती है।

चार्ट पैटर्न की बात करें तो पिछले तीन महीनों में हमें निचले स्तर का पैटर्न देखने को मिला है। ऐसा लगता है कि 2500 से 2800 के स्तर पर बाजार को ठोस समर्थन मिला और समर्थन का दूसरा स्तर 2250 अंकों पर देखा गया। मेरा मानना है कि जून या जुलाई 2009 तक बाजार 2500 से 3600 अंकों के बीच झूलता रहेगा।

इस चरण में अगर गिरावट आती है तो यहां 2500 अंकों के समर्थन स्तर की जांच होगी या यह शायद 2250 भी हो जाए। अगर, तेजी आती है तो 3600 के स्तर पर प्रतिरोध की जांच होगी

लेकिन इस स्तर पर पर्याप्त कारोबार होता नहीं दिखेगा। दोनों दिशाओं में कारोबारी दायरा वर्तमान मूल्य के लगभग 15 से 20 प्रतिशत के बीच रहेगा।

कारोबारियों के लिए पर्याप्त अवसर की पेशकश करता है। बाजार की दिशा क्या होगी, यह साल 2009 की दूसरी छमाही के बाद ही पता चल पाएगा।

अगर बाजार 200 डीएमए के स्तर को पार कर जाता है और कारोबार में तेजी आती है तो समझना चाहिए कि बुरे दिन गुजर चुके हैं। अगर, बाजार 2250 अंकों से नीचे जाता है तो अगले 9 से 10 महीनों तक हमलोगों को बाजार में मंदी का दौर देखने को मिल सकता है।

अल्पावधि के कारोबारियों को 10 डीएमए पर निगाह रखनी चाहिए। अल्पावधि में गिरावट के खतरे का पहला संकेत इस समर्थन स्तर का टूटना होगा। खतरे का दूसरा संकेत वैसी समयावधि होगी जब एफआईआई और डीएफआई दोनों ही बिकवाली कर रहे होंगे।

बाजार को मात

मुकुल पाल


निवेश मनोविज्ञान का पहला नियम है कि बाजार के बारे में जानना-समझना खुद के बारे में जानने से ज्यादा आसान है। व्यवहारविज्ञानी इसे जरा दूसरी तरह से देखते हैं। वे कहते हैं कि अगर अधिकांश लोग ऐसा नहीं कर सकते हैं तो बाजार को मात देने जैसी बात भ्रम ही है।

बात में दम है, लेकिन बाजार गुरु तो अभी भी अपनी भविष्यवाणी करने की जगह पारंपरिक तकनीकी और फंडामेंटल शोध में दोष निकाल रहे हैं।

उनका यह भी कहना है कि बाजार का व्यवहार सिक्का उछालने जैसा है, बाजार में जोड़-घटाव नहीं हो सकता, ज्यादा जोखिम का मतलब अधिक प्रतिफल नहीं होता और बीटा मृत हो चुका है।

व्यवहारविज्ञानियों के पास साल 2009 के लिए या साल 2012 तक के लिए कोई नीति नहीं है। विषय अभी भी  जॉन पॉलसन सरीखे स्मार्ट निवेशकों के तरीकों की बजाए अधिकांश लोगों के भूल पर केंद्रित है।

जॉन पॉलसन संकट की घड़ी में भी एक अरब डॉलर अपनी जेब के हवाले करने वालों में से हैं। सबसे बड़ी बात कि वह अकेले ही ऐसे निवेशक नहीं थे।

रेनेसां टेक्नोलॅजीज के जिम साइमन्स ने साल 2008 के लिए 58 प्रतिशत का प्रतिफल दिया। जोखिम आर्बिट्रेज के विशेषज्ञ पॉलसन बाजार के सहसंबंधों को कम और लॉन्ग-शॉर्ट आर्बिट्रेज की नीति अपनाते हुए चार्ट में अव्वल स्थान पर रहे।

इनमें से कुछ फंड 40 प्रतिशत शुल्क के साथ भी अपना अस्तित्व बचाने में कामयाब रहे। साल 2007 में इसने 70 प्रतिशत से अधिक का वार्षिक प्रतिफल दिया।

सबसे धनी हेज फंडों पर ब्लूमबर्ग द्वारा की गई खबर यही प्रदर्शित करती है कि जब अधिकांश लोग संकट-संकट जप रहे होते हैं तब भी कुछ स्मार्ट निवेशक फल-फूल रहे होते हैं।

मेडालियन का स्वामित्व लगभग पूरी तरह रेनेसां के कर्मचारियों के हाथों में है। इसमें गणितज्ञ, तारा-भौतिकविद, सांख्यिकीविद और कंप्यूटर प्रोगामर्स शामिल हैं। अन्य की तरह ये भी पैटर्न की खोज करते हैं।

साल 2008 की शुरुआत हमने सेंसेक्स में एक दशक की तेजी के साथ की थी। 21 जनवरी तक बाजार में गिरावट देखी गई तब हमलोगों ने ‘गिरावट को समझें’ लिखा था। हमने 18,000 के स्तर को महत्वपूर्ण मोड़ के अनुमान के रूप में दर्शाया। 15332 से लेकर 18995 के स्तर तक कीमतों में तेजी रही।

उसके बाद 31 मार्च को हमने ‘थ्री लेग्ड बीयर’ के बारे में लिखा जिसमें हमने कहा था, ‘यद्यपि मामूली लेकिन मार्च में हमने अंतवर्ती निम् स्तर देखा है’।

16 मई तक कीमतों में लगभग स्थिरता बनी रही। इसके बाद आया 4 अगस्त। इस समय ‘लेट इकॉनोमिक साइकल’ लिखा गया, जिसमें हमने शुरुआती और मध्यवर्ती आर्थिक क्षेत्र के तत्वों से दूर रहने की बात की थी।

इसके बाद हमने निवेश की जगह ट्रेडिंग की तरफ अपना नजरिया बदला था और कुछ सप्ताहों की तेजी की बात करने के साथ-साथ साल 2009 की पहली तिमाही तक बाजार में फिर से तेजी आने की कम संभावना जताई थी। हमने कहा कि 18000 का स्तर सबसे अच्छा था। 15579 के स्तर तक कीमतों में तेजी रही और 11 सितंबर 2008 को इसका रुख पलट गया।

हमने ‘अक्टूबर की गिरावट’ के बारे में भी लिखा जिसमें हमने कहा  कि अक्टूबर के स्तर के साथ धारणाओं का संबंध है और यह संभावित न्यूनतम स्तर हो सकता है’।

15107 के स्तर से 7697 के स्तर तक न केवल कीमतों में 50 फीसदी की कमी आई बल्कि 27 अक्टूबर का स्तर बना रहा और कीमतों में 42 प्रतिशत की तेजी आई।

हम जनवरी 2009 में हैं और अभी तक कोई बदलाव नहीं हुआ है। अगर आप किसी व्यवहारविज्ञानी से परिशुध्दता की परिभाषा के बारे में पूछें तो वे यही कहेंगे- फर्क की भविष्यवाणी की जा चुकी है और यथार्थ ही परिशुध्द है। फ्रैक्टल ज्योमेट्री के मुताबिक यह सूचना पूर्ण नहीं है।

यह तो आपके अध्ययन की समयावधि है जो परिशुध्दता को परिभाषित करेगा। समयावधि मतलब कई महीने, कई सप्ताह, कई दिन और कई घंटे। विभिन्न समयावधि की परिशुध्दता विभिन्न तरीकों से मापी जाती है। पिछले एक साल में 13 इंटरमेडिएट ट्रेंड (कई सप्ताहों के) और लगभग 40 माइनर ट्रेंड (मल्टी डे) हमलोगों ने देखा।

औसत इंटरमीडिएट गति 23 प्रतिशत की थी। साल 2008 के लिए सेंसेक्स की वास्तविक गति (ऊपर और नीचे की ओर इंटरमीडिएट ट्रेंड) 300 प्रतिशत से अधिक की रही।

बीएसई मेटल का प्रदर्शन सबसे बुरा 72 प्रतिशत ऋणात्मक का रहा। कम से कम साल 2009 की प्रथम तिमाही में इसके बेहतर प्रतिफल देने का हम अनुमान कर रहे हैं।

हमारा अनुमान यह भी है कि साल 2009 की पहली तिमाही में बीएसई ऑयल का प्रदर्शन सेंसेक्स की तुलना में बेहतर होगा। बीएसई 500 की लॉन्ग और सेंसेक्स का शॉर्ट पोजीशन साल 2009 की प्रथम तिमाही के लिए आकर्षक नजर आता है।

निष्कर्ष यह कि सारी समस्याओं के बावजूद ज्यादा नकारात्मक सोचने की जरूरत नहीं है और इस प्रकार की अधिकांश बातें मूर्खतापूर्ण हैं।

शीर्ष से नीचे की ओर निगाह डालें, पहले परखी गई प्रणाली को ज्यादा महत्व दें, चक्रों को समझें और व्याावहारिक फाइनैंस को पढ़ें। इससे आपका पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने में निश्चित तौर पर मदद मिलेगी।

(लेखक ऑर्फियस कैपिटल्स के मुख्य ककार्यकारी अधिकारी हैं।)

2009 होगा 2008 से बेहतर

विजय एल. भांबवानी

साल 2008 में कई कंपनियों ने एनएसई सूचकांकों पर गोता लगाया। एक समय एनएसई 6357 के उच्चतम स्तर पर रहा करता था, वही धराशायी होकर 2252 के निम् स्तर पर भी आ पहुंचा। स्तर की बात करना अगर छोड़ भी दें, तो पूरे साल कंपनियों के शेयरों पर जबरदस्त दबाव रहा।

इसलिए इन सभी कंपनियों को 2009 से काफी उम्मीदें हैं, क्योंकि पहले से ही इन्होंने काफी दबाव झेल लिया है, तो जाहिर सी बात है कि अब अच्छा होने के  बारे में ही सोचा जा सकता है।

अब जब बाजार के ऊपर जाने के  कयास लगाए जा रहे हैं, तो जाहिर सी बात है कि न लाभ और न घाटे के स्तर पर रहने वाले शेयरों को बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है।

वैसे बिकवाली के इस सिद्धांत को ओवरहेड सप्लाई कहा जाता है। उम्मीद की जा रही है कि 2009 ओवरहेड सप्लाई के मोर्चे पर बेहतर साबित होगा।

यह खासकर परिमाण के आधार पर कही जा रही है, जो अभी तक देखी नहीं गई है। इसकी एक और वजह यह है कि बाजार पिछले आधे दशक में इतना विशाल हो गया कि तेजड़िया की उम्मीदें बढ़ती चली गई।

लेकिन जब दबाव बढ़ना शुरू हुआ, तो भी सब कुछ नकारात्मक नहीं रहा। अभी भी बाजार में काफी मजबूती कायम है और उम्मीद की जा रही है कि बाजार के उठते ही तेजड़ियों की चाहत फिर से पूरी हो सके। 2008 की तेज गिरावट के बाद मैं उम्मीद करता हूं कि 2009 में बाजार में तेजी से सुधार होगा।

इसलिए मासिक या साप्ताहिक चार्ट में वी आकार के बजाय यू आकार में परिवर्तन देखने को मिलेगा। आने वाले साल में संभलने की प्रक्रिया में नीचे से शुरूआत करनी होगी।

पश्चिम एशिया तनाव, भारत पाकिस्तान तनाव आदि की वजह से अगर किसी प्रकार की विध्वंसकारी घटना नहीं घटती है या कोई प्राकृतिक आपदा घटित नहीं होती है, तो उम्मीद की जा सकती है कि बाजार में सूचकांकों का प्रक्षेपण ऊपर की दिशा में देखने को मिलेगा। परिणाम और वेग दोनों आधार पर बाजार की प्रवृति को पहचानने का वक्त आ गया है।

अगर 2009 के शुरूआती दौर में निफ्टी 50 की बात की जाए, तो इसने 3800 के स्तर को भी छुआ, जो इस बात की ओर इशारा करता है कि लगातार गिरने के बाद यह बेहतर संकेत है।

अगर सारी रुकावटें खत्म हो जाती है, तो 4350 के स्तर को प्राप्त करना बाजार का अगला लक्ष्य होगा, जिस वजह से बाजार में बिकवाली का दबाव भी देखने को मिल सकता है।

बाजार में बेहतरी का रुख सिर्फ और सिर्फ तब देखा जा सकता है, जब निफ्टी निरंतर बेहतर प्रदर्शन करता रहे और यह इतना बेहतर हो जाए कि 4350 के स्तर को छू ले। अगर सचमुच ऐसा संभव होता है, तो बाजार की भावनाओं को एक बार फिर से हवा मिल जाएगी और बाजार आसमान की छलांगे लगाना शुरू कर देगा।

कुछ लोग यह भी कयास लगा रहे हैं कि 2009 में 2003 वाली खुशहाली फिर से बहाल हो सकती है। रियल एस्टेट, ब्रोकरेज, बुनियादी ढांचा कुछ ऐसे क्षेत्र हैं, जहां अगर बेहतरी देखने को मिलती है, तो बाजार का संभलना संभव हो पाएगा। शिक्षा, इलेक्ट्रॉनिक्स, बैंकिंग और ऊर्जा भी ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें आशाएं जग सकती हैं।

समय और मूल्य के तराजू पर अगर बाजार के भविष्य को तौलने की कोशिश की जाए, तो काफी निराशावादी स्थिति में यह कहा जा सकता है कि अक्टूबर 2010 तक बाजार तेज हो सकता है।

(लेखक बीएसपीएलइंडिया डॉट कॉम के सीईओ हैं और ऊपर बताई गई श्रेणियों की इक्विटी में इनका निवेश है।)

ध्यान देने योग्य महत्वपूर्ण कारकों में विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) भी शामिल होंगे। साल 2008 में इनकी गतिविधि नकारात्मक थी।

अगर एफआईआई के रवैये में बदलाव आता है या कम से कम बिकवाली में नरमी आती है तो बाजार पर दबाव कम होगा।

देवांग्शु दत्ता
तकनीकी विश्लेषक

साल 2009 की पहली तिमाही में बीएसई ऑयल का प्रदर्शन सेंसेक्स की तुलना में बेहतर होगा। बीएसई 500 की लॉन्ग और सेंसेक्स की शॉर्ट पोजीशन साल 2009 की प्रथम तिमाही के लिए आकर्षक नजर आती है।

मुकुल पाल
सीईओ, ऑर्फियस कैपिटल्स

रियल एस्टेट, ब्रोकरेज, बुनियादी ढांचा कुछ ऐसे क्षेत्र हैं, जहां अगर बेहतरी देखने को मिलती है, तो बाजार का संभलना संभव हो पाएगा। शिक्षा, इलेक्ट्रॉनिक्स, बैंकिंग और ऊर्जा भी ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें आशाएं जग सकती हैं।

विजय एल भांबवानी
सीईओ, बीएसपीएलइंडियाडॉटकॉम

First Published : January 4, 2009 | 10:09 PM IST